मारवाड़

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मारवाड़ उत्तर मुग़ल काल में राजस्थान का एक विस्तृत राज्य था। मारवाड़ संस्कृत के मरूवाट शब्द से बना है जिसका अर्थ है मौत का भूभाग। मारवाड़ को मरुस्थल, मरुभूमि, मरुप्रदेश आदि नामों से भी जाना जाता है। भौगोलिक दृष्टिकोण से मारवाड़ राज्य के उत्तर में बीकानेर, पूर्व में जयपुर, किशनगढ़ और अजमेर, दक्षिण-पूर्व में अजमेर व उदयपुर, दक्षिण में सिरोहीपालनपुर एवं उत्तर-पश्चिम में जैसलमेर से घिरा हुआ है। 13वीं शताब्दी में राठौर मारवाड़ प्रान्तर में आये तथा अपनी वीरता के कारण उन्होंने यहां अपने राज्य की स्थापना की।

मारवाड़ राज्य के अधीन प्रमुख महकमों का विवरण

प्रधानमंत्री के अधीन महकमें

महकमा खास

यह राज्य का मुख्य महकमा है। ई. सन् 1922 और 1928 में इसे नवीन ढ़ग पर लाने के लिए इसके प्रबन्धन में और भी सुधार किया गया। ई. सन् 1930 के सितम्बर में राजकीय काउंसिल के प्रत्येक सदस्यों के लिए एक-एक सचिव (सेक्रेटरी) नियुक्त किया गया। इससे सदस्यों का काम बहुत कुछ हलका हो गया और उन्हें विशेष महत्त्व के मामलों की तरफ ध्यान देने का समय मिल गया। न्याय के कार्य को और भी उन्नत बनाने के लिए ई. सन् 1935 में कानूनी सलाहकार का पद नियत किया गया और इस सम्बन्ध के कागजात उसकी सलाह के साथ काउंसिल में पेश होने का नियम बनाया गया। ई. सन् 1937 में महकमा खास के प्रबन्ध में फिर संशोधन किया गया। इस समय पोलिटिकल डिपार्टमेन्ट और काउंसिल के कार्य-संचालन के लिए एक-एक एसिस्टेन्ट सेक्रटरी का भी प्रावधान रखा गया।[1]

पुलिस का महकमा

इसमें 1 इन्सपेक्टर जनरल और 1 डिप्टी इन्सपेक्टर जनरल के अलावा 9 डिस्ट्रिक्ट सुपरिन्टेन्डेन्ट, 1 डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट, 22 इन्सपेक्टर, 6 पब्लिक प्रोसीक्यूटर, 112 सब-इन्सपेक्टर, 6 सब कोर्ट इन्सपेक्टर, 476 हेड कॉन्स्टेबल, 2076 कॉन्स्टेबल, 80 चौकीदार और 67 नम्बरदार थे।

जोधपुर रेलवे

जोधपुर-सुरसागर, परबतसर, समदड़ी-रानीवाड़ा, और मारवाड़ जंक्शन-फुलाद शाखाओं के और भी खुल जाने से जोधपुर रेलवे का विस्तार 767 मील के करीब पहुंच गया। इनके 48 स्टेशन बिटिश - भारत के सिंध और बलूचिस्तान प्रान्त में पड़ते थे। इस रेलवे की कुचामन रोड से खोखरोपारवाली, लूनी जंक्शन से फुलादवाली और जोधपुर से सूरसागरवाली शाखाओं पर और राई-का-बाग तथा मण्डोर के स्टेशनों पर 'कण्ट्रोल-सिस्टम' से काम हुआ करता था। जोधपुर-रेलवे के कारखाने में बिजली से चलने वाली नए ढंगकी मशीनें लगाई गई और इस रेलवे के अन्य विभागों में भी यथा साध्य उन्नति की गई। पहले जोधपुर और बीकानेर की रेलवे साथ ही काम करती थी। परन्तु ई० सं० 1924 की 1 नवम्बर (विक्रम संवत 1981 की कार्तिक सुदि 5) से इन दोनों का प्रबन्धन कर दिया गया और बीकानेर - रेलवे बीकानेर-दरबार को सौंप दी गई।

मुख्य जेल

इस महकमे के प्रबन्धन में अच्छी उन्नति हुई। कैदियों को दिए जाने वाले भोजन और सुविधाओं में भी सुधार हुआ। ई. सन् 1924 में खास-खास उत्सवों पर छोड़े जाने वाले कैदियों के नियम बनाए गए और ई. सन् 1932 में मारवाड़-जेल के कानून अंगीकृत हुए। इस समय तक जेल फैक्टरी में कैदियों द्वारा बनाई जाने वाली उपयोगी वस्तुओं - जैसे रेशमी व सूती कपड़ों, दरियों, निवारों, रस्सियों, तौलियों, लोइयों, बेत क कुर्सियों आदि की राज्य में तथा दूसरी रियासतों में मांग बढ़ने लगी।

स्टेट होटल

जोधपुर में हवाई अड्डा बन जाने से आर्थिक रुप से सम्पन्न लोगों का आवागमन बढ़ गया। इनकी सुविधा के लिए ई. सन् 1931 में 'यूरोपियन गेस्ट हाउस' की एवज में आधुनिक सुविधाओं से पूर्ण 'स्टेट होटल' की स्थापना की गई।

दस्तरी का महकमा

इसमें राज्य सम्बन्धी खास-खास घटनाओं का विवरण लिखा जाता था।

अर्थ सचिव के अधीन महकमे

खजाने का महकमा

ई० स० १९२३ (वि० सं० १९८०) में मिस्टर जे० डब्ल्यू० यंग ने आकर इस महकमे का आधुनिक ढंग पर प्रबन्ध किया था। इसी से आजकल राजकीय महकमों के आय-व्यय के सालाना बजट चालू वर्ष के ११ महीने के असली और १ महीने के अन्दाजन आय-व्यय के आधार पर तैयार किए जाते थे। और नवीन वर्ष के आरम्भ होते ही प्रत्येक महकमे को, उसके लिए अंगीकृत हुए बजट (तखमीने) की सूचना भेज दी जाती थी। बजट का आधा खर्च जोधपुर-रेलवे और बिजली-घर पर लगाया जाने से राज्य की आमदनी में भी अच्छी वृद्धि हुई। राज्य का सारा हिसाब 'प्री ऑडिट' के तरीके पर होता था और राज्य के कुछ खास जिम्मेदार करार दिए हुए महकमों को छोड़कर बाकी सबका हिसाब राजकीय हिसाब के दफ्तर (ऑडिट ऑफ़िस) में और महकमा खास के 'फाइनेन्स और बजट' के विभाग में हुआ करता था।

  • मारवाड़ रियासत में जोधपुर के मुख्य खजाने के (जिसका सारा काम ई० स० १९२७ से यहां की 'इम्पीरियल बैंक' की शाखा करती है) अलावा राज्य के भिन्न-भिन्न परगनों में २२ खजाने और भी थे, जहाँ पर सरकारी रकम जमा होती थी और राज्य कर्मचारियों का वेतन आदि और भारत-सरकार के फौजी विभाग से पेंशन पाने वाले मारवाड़ निवासियों की पेंशन दी जाती थी।
  • प्रत्येक महकमे में होने वाली आमदनी और खर्च की जांच के लिए 'लोकल ऑडिट स्टाफ' नियत किया गया था। यह सालाना प्रत्येक महकमे और खजाने में होने वाली आमदनी और खर्च की जांच कर 'आॅडीटर' के पास अपनी रिपोर्ट पेश करता था। और आवश्यकता होने पर ठीक तौर से हिसाब रखने के लिए उचित सलाह भी दिया करता था।
  • 'ऑडिट ऑफिस मैन्युअल' और 'जोधपुर गवर्नमेंट सर्विस रेगूलेशन' आदि के प्रकाशित हो जाने से राज्य - कर्मचारियों को बड़ी सुविधा हो गई।
  • राज्य के अफसरों और अहलकारों के लिए जिस 'प्रोविडेंट फंड' और छोटे दर्जे के कर्मचारियों के लिए जिस 'ग्रेच्यूटी' (Gratuity) का प्रबन्ध किया गया उसका हिसाब भी यही महकमे में रखता था। इसके अलावा राज्य-कर्मचारियों को मकान आदि बनवाने के लिए कम सूद पर रुपये देने का प्रबन्ध भी यहीं से होता था। बाद में इस महकमे के उद्योग से राज्य-कर्मचारियों के लिए एक सहयोग-समिति भी बन गई और शीघ्र ही उनके लिए गक बीमा विभाग भी स्थापन किया गया।
  • इस अर्थ विभाग द्वारा राज्य के वार्षिक आय-व्यय का चिट्ठा इस खूबी से तैयार किया जाता रहा तथा राज्य का सारा काम सुचारु रुप से चलता रहा। इस महकमे का खास दफ्तर 'इम्पीरियल बैंक' के पास बने नए 'सिलवर जुबिली ब्लॉक' में हुआ करता था।
सहयोग समिति

ई० स० १९२६ (वि० सं० १९८३) में पहले-पहल मारवाड़ में 'को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी' की स्थापना की गई। इसके बाद ई० स० १९३७ (वि० सं० १९९४) में राज-कर्मचारियों के विधा के लिए 'उम्मेद को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी' कायम हुई। इसी प्रकार पंचायत-कानून पर भी विचार किया गया। अब तक कर्ज के भीषण परिणाम से बचने के लिए केवल जागीरदार ही दिवाले के कानून की शरण ले सकते थे। परन्तु बाद में दूसरों के लिए भी ऐसा ही कानून बना दिया गया।[1]

गृह सचिव के अधीन महकमे

सायर महकमा

जोधपुर रियासत की सायर की आमदनी इस समय बढ़कर २७,००,००० तक पहुंच गई है और ई० स० १९३८ में इस विषय पर कुछ कानून-कायदे बनाए गए इसमें सायर की आमदनी में वृद्धि होने के साथ-साथ व्यापार को भी बढ़ावा मिला।

चिकित्सा विभाग

ई० स० १९३२ की ९ सितंबर (वि० सं० १९८९ की भादों सुदि १०) को १५,१८,००० रुपयों की लागत से विढम अस्पताल का उद्घाटन किया गया। धीरे-धीरे इसका विकास हुआ। इसमें एक अच्छी 'लैबोरेटरी' और एक 'एक्सरे' विभाग भी जुड़ गया। ई० स० १९३६ (वि० सं०) से यहां पर स्वास्थ्य-विभाग की भी स्थापना हो गई और अब चेचक के टीके आदि का प्रबन्ध यही महकमा करता रहा।

  • स्रियों की शिक्षा के लिए ११,१९,००० रुपये की लागत से एक जनाना (उम्मेद फीमेल) अस्पताल भी बनाया गया। इसका उद्घाटन ई० स० १९३८ को किया गया था। पहले मारवाड़ के शफाखानों की निगरानी रैजीडेंसी-सर्जन किया करता था। परन्तु ई० स० १९२५ (वि० सं० १९८२) से दरबार ने अपना निजका 'प्रिंसिपल मेडिकल ऑफ़ीसर' नियत कर दिया है।
  • छूतवाली बीमारियों के रोगियों के लिए चैनसुख के बेरे पर एक अच्छा अस्पताल (Isolation Hospital) बनाया गया। इसी प्रकार कोढियों के इलाज के लिए, नीवे की कुष्ठ-रोगियों की बस्ती (Leper Asylum) में, एक शफाखाना खोला गया। बहुत समय से पागलों का इलाज जेल के अस्पताल में ही हुआ करता था। परन्तु बाद में उनके लिए भी एक अलग खास शफाखाना (Mental Hospital) बनाया गया।
  • ई० स० १९३६-३७ में मारवाड़ में कुष्ठ रोग की जांच (Leprosy survey) की गई।
जंगलात का महकमा

इस महकमे ने भी अच्छी उन्नति की और इस विभाग के माध्यम से जोधपुर के चारों तरफ की पुरानी और नई सड़कों के दोनों किनारों पर वृक्ष लगाने का प्रयत्न किया गया।

राजकीय छापाखाना

'जोधपुर गवर्नमेन्ट-प्रेस' भी बराबर उन्नति करता रहा और जोधपुर राज्य और जोधपुर-रेलवे की छपाई आदि का सारा काम यहीं होने से इसकी आय दिनानुदिन बढ़ती गई।

जवाहर-खाना और टकसाल

सरकारी जवाहरात पहले किले पर के फतहमहल में रखे हुए थे। परन्तु वहां पर जगह कम होने से इन्हें वहीं पास ही के दौलतखाने के महल में सजाकर रखा गया। जोधपुर की टकसाल में सोने के अलावा अन्य धातु के सिक्के बनाने का काम बहुत दिनों से बंद था। परन्तु ई० स० १९३५ (वि० सं० १९९३) में मारवाड़ में एक ही प्रकार के तोल और नाप के प्रचार के लिए कानून बनाया गया जिसे जोधपुर नगर में प्रचलित कर दिया गया।

पंजीकरण

ई० स० १९३४ (वि० सं० १९९१) में नया मारवाड पंजीकरण कानून पास हुआ और ई० स० १९३६ की जनवरी (वि० सं० १९९२ के पौष) से उन जागीरदारों को, जिन्हें अदालती इखतियारात मिले हुए हैं, जोधपुर सरकार के साधारण स्टाम्पों को लागत कीमत पर खरीद कर, अपनी जागीर की रियाया की आवश्यकताओं के लिए, पूरी कीमत पर बेचने का अधिकार दिया गया।

पशुवर्धन विभाग

ई० स० १९३५ (वि० सं० १९९२) से, जोधपुर-दरबार ने मारवाड़ के दूध देनेवो और खेती के उपयोग में आने वाले पशुओं की नस्ल सुधारने और उनमें होने वाले रोगों को निवारण करने के लिए इस महकमे की स्थापना की थी।

मारवाड़ सोल्जर्स बोर्ड

यह बोर्ड राजपूताना प्रोविंशियल बोर्ड से संबद्ध था। ई० सन् १९१९ में वर्तमान और भूतपूर्व सैनिकों की ओर उनके कुटुम्बियों की सहायता के लिए इसकी स्थापना की गई थी।

वॉल्टर राजपूत-हितकारिणी सभा

इस सभा की स्थापना, ई० सन् १८८८ में, उस समय के राजपूताना के ए०जी०जी० कर्नल वॉल्टर की अध्यक्षता में अजमेर में की गई थी और इसका उद्देश्य राजपूतों और चारणों के यहाँ की शादी और गमी में होने वाले खचाç में कमी करना था। जोधपुर की वॉल्टर सभा भी उसी उपर्युक्त सभा की एक शाखा थी और यह राजपूतों तथा चारणों की शादी-ग़मी के खर्चा और लड़के-लड़कियों की विवाहोचित आयु आदि का नियम करती थी। इस स्थानीय सभा की कमेटी में ६ सरदार होते थे। यह कमेटी इस सभा के नियमों का उल्लंघन करनेवालों पर जुर्माना कर सकती थी और इसके हुक्म की अपील सीधी महकमा खास में होती थी। जुर्माने की रकम गरी जागीरदारों के उपयोगी कार्यों में ही खर्च की जाती थी।[1]

जनतोपयोगी कार्य सचिव के अधीन महकमे

पब्लिक वर्क्स का महकमा

इस महकमे द्वारा स्कूल, अस्पताल, स्टेट होटल आदि भवन तैयार किये जाते थे। इस महकमे ने आनेजाने के सुविधा के लिए मारवाड़ में अनेक सड़कें बनाई। नगर के आम रास्तों के अलावा गलियों में भी हरसाल पत्थर की पक्की सड़कों का विस्तार किया जाता रहा।

  • सुमेर-समंद, पिचियाक, सरदारसमंद आदि के बांधों से होने वाली सिंचाई में भी इस महकमें का खास योगदान रहा।
  • नगर में पानी की कमी दूर करने के लिए पहले पाताल-फोड़ कुओं के लिए उद्योग किया गा था। परन्तु उसमें विशेष सफलता न होने से 'सुमेर-समंद वाटर सप्लाई चैनल' नाम की नहर तैयार की गई, इससे जोधपुर-नगर में पानी का अभाव दूर हो गया और चांदपोल जैसे पहाड़ पर बसे नगर के पुराने और ऊँचे हिस्से में भी नलों द्वारा पानी पहुँचा दिया गया। यह पानी पूरी तौर से फिल्टर करके दिया जाता था।
  • इसी प्रकार गाँवों के जलाशयों का जीर्णोद्धार करके गाँव वालों के लिए पानी का प्रबन्ध करने में भी हर साल एक बड़ी रकम खर्च की जाती थी। नगर की सफाई के लिए भूगर्भस्थ नालियों का प्रबन्ध था।
  • जोधपुर के हवाई अड्डे का प्रबन्धन भी इसी महकमे के अधिकार में था। हवाई जहाजों की सुविधा के लिए गवर्नमेन्ट की तरफ से एक बेतार के तार का स्टेशन भी बना था।
  • इस महकमें की नगर-विस्तार में विशेष भूमिका रही। बागात का महकमा भी अच्छी तरक्की कर रहा है। बालसमंद और मंडोर के बगीचों को आधुनिक ढंग पर तब्दील किया गया हैर इसके बाद जनता के उपयोग के लिए पब्लिक-पार्क या विलिंग्डन गार्डन बनाया गया। साथ ही लोगों के मनोरंजन के लिए इसी में चिड़ियाघर, अजायबघर और पब्लिक लाइब्रेरी भी स्थापित की गई।
बिजलीघर

यह महकमा ई० स० १९१७ में खोला गया था। और उस समय इसमें दो-दो सौ किलोवॉट की दो मशनें और ४ ब्वायलर लगाए गए थे। ई० स० १९२६ में ४०० किलोवॉट की एक मशीन बढ़ाई गई और ई० स० १९२८ में एक हजार किलोवॉट की एक नई मशीन और एक व्वायलर और जोड़ा गया। इसके बाद ई० स० १९३२ में पहले के चार ब्वायलरों में सुधार किया गया।

  • ई० स० १९१८ में केवल दो मुख्य रास्तों पर ही बिजली की रोशनी लगाई गई थी। परन्तु समय के साथ शहर के खास-खास रास्तों और इर्द-गिर्द के सड़कों आदि के अलावा बहुत सी गलियों तक में बिजली की रोशनी लगा दी गई।
  • ई० स० १९३८ में सुमेर समंद से जोधपुर नगर में पानी लाने का जो प्रबन्ध किया गया उसके लिए मार्ग में ८ पंपिंग स्टेशन बनाए गए और इनके चलाने के लिए ११ किलोवॉट की करीब १० मील लंबी बिजली की लाइन बनाई गई।
  • ई० स० १९१७ में बिजली के केवल ६ सब-स्टेशन थे। परन्तु बाद में ८ स्टेशनों के अलावा ३१ सब-स्टेशनों में काम होने लगा।
  • पहले पहल ई० स० १९१७ में यहाँ पर टेलीफोन का १०० लाइन का बोर्ड लगाया गया था। बाद में इसकी संख्या दिनानुदिन बढ़ती गई।
  • सुमेरसमंद से नगर में पानी लाने के लिए जो नहर बनाई गई उसके पंपिंग स्टेशनों की सुविधा के लिए टेलीफोन की १० १/२ मील लंबी नई लाइन तैयार की गई।
  • पहले शहर का मैला भैंसों द्वारा खींची जाने वाली गाड़ियों में ले जाया जाता था। परन्तु बाद में मेले की गाड़ियां इंजिन द्वारा लोहे की पटरी पर खींची जाती थी।
  • शहर के वाटर वक्र्स (नलों द्वारा पानी देने) का काम भी पहले इसी महकमे के अधिकार में था। परन्तु ई० स० १९३१ से यह पब्लिक वक्र्स महकमे को सौंप दिया गया।
पुरातत्व विभाग और सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी

ई० स० १९०९ (वि० सं० १९६६) में ब लॉर्ड किचनर जोधपुर आए, जब उन्हें दिखलाने के लिए मारवाड़ में बनने वाली वस्तुओं का एक स्थान पर संग्रह किया गया। उसका नाम इण्डस्ट्रियल म्यूजियम रखा गया। इसके बाद ई० स० १९१४ (वि० सं० १९७१) में पहले पहल इस म्यूजियम (अजायबघर) का प्रबन्ध आधुनिक ढंग से किया गया और इसमें प्राचीन और ऐतिहासिक वस्तुओं को भी स्थान दिया गया।

  • इसके बाद ई० स० १९१६ (वि० सं० १९१९७२) में भारत सरकार ने इसका नाम स्वीकृत अजायबघरों की सूची में दर्ज कर लिया। फिर ई० स० १९१७ (वि० सं० १९७३) में इसका नाम बदल स्वर्गवासी महाराजा सरदार सिंहजी के नाम पर सरदार म्यूजियम दिया गया। ई० स० १९१५ (वि० सं० १९७२) में इसके साथ ही एक पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना की गई। बाद में इसका नाम बदलकर महाराजा सुमेरसिंहजी के नाम पर सुमेर पब्लिक लाइब्ररी रख दिया गया। पहले ये दोनों महकमे सूरसागर के बगीचे में थे। परन्तु शहर से दूर होने के कारण ई० स० १९२६ (वि० सं० १९८३) में इन्हें शहर से नजदीक लाया गया। जोधपुर दरबार ने यहाँ पुरातत्व विभाग की स्थापना की और अजायबघर, इतिहास कार्यालय, पुस्तक प्राश और चण्डू-पंचांग के महकमे उसमें मिला दिए।
  • ई० स० १९३६ की १७ मार्च (वि० सं० १९९२ की चैत्र वदि ९) को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड विलिंग्डन ने अजायबघर और लाइब्रेरी के नए भवन का उद्घाटन किया। यह भवन विलिंग्डन गार्डन में बनाया गया।
खानों और कला-कौशल का महकमा

इस महकमे की तरफ से मारवाड़ में धरु कला-कौशल को उन्नत करने के लिए कम सूद पर कर्ज देने का प्रबंध किया गया है और समय-समय पर प्रदर्शनियों के द्वारा भी उसको उत्तेजन दिया जाता है। पहले यह महकमा जंगलात के महकमे के साथ था। परन्तु प्रबन्ध की सुविधा के लिए ई० स० १९२९ में यह उससे अलग कर दिया गया। इसके बाद ई० स० १९३० से जागीर के गाँवों में प्राप्त होने वाले खनिज पदार्थों पर भी दरबार का हक मान लिया गया। यहां की खानों से प्रमुख रुप से संगमरमर, साधारण पत्थर, चूने और कली का पत्थर, खड़िया, मेट (मुल्तानी), वुल्फ्रेम और पैंटोनाइट आदि निकाले जाते थे।[1]

आय सचिव के अधीन महकमे

हवाला

पहले पहल राज्य की सरहद और खालसे के गाँवों का लगा निश्चित करने के लिए ई० स० १८८५ से १८९५ तक मारवाड़ की पैमाइश की गई थी। ई० स० १९२१ से १९२६ तक जिस समय मारवाड़ के खालसे (राज्य) के गाँवों का दुबारा सेटलमेंट (पैमाइश) किया गया, उस समय उनके सारे ही रकबे को मुस्तकिल हिससों मेंबांट दिया गया और बापीदारों और गौर बापीदारों के अधिकार तथा उनके लगान का निर्णय कर दिया गया। इस प्रबन्ध से लगान की आय बढ़ गई। इसके साथ ही बगैर लगान की, शासन आदि में दी हुई, भूमि की भी जांच की गई। इसके बाद लगान-वसूली का काम परगनों के हाकिमों को सौपा गया, परन्तु उनके कागजात का काम हवाले के महकमे के पास ही रहा। इसके इलावा हवाले के काम की सुविधा के लिए खालसे के कुल गांव १६ सर्कलों में बांट दिए गए और उनकी देखभाल के लिए एक-एक दारोगा नियुक्त किया गया। साथ ही हवलदारों की संख्या बढ़ा दी गयी। और हवाले के तमाम अफसरों के काम के और रिकार्ड के लिए अलग-अलग फॉर्म निश्चित कर दिए गए।

  • ई० स० १९२३ की शाही सिलवर जुबिली के उत्सव पर दरबार ने करीब ३ लाख रुपये ट्रिब्यूट के और २,२३,५४८ रुपये हवाले के, लगान व तकावी आदि के, माफ कर दिए।
  • ई० स० १९३६ में दरबार की तरफ से जागीरों और खालसे के गांवों पर लगने वाली टीके आदि की अनेक लगाने भी माफ कर दी गई।
  • ई० स० १९३० से ही देश में नाज की कीमत गिर रही थी। इससे ई० स० १९३४ में उपर्युक्त नई सेटलमेंट के द्वारा निश्चित किए भूमि के लगान में तीन वर्ष के लिए फी रुपये तीन आने की छूट दी गई, और ई० स० १९३७ (वि० सं० १९९४) में एक वर्ष के लिए यह छूट और भी जारी रखी गई।
ट्रिब्यूट का महकमा

इस महकमे ने भी अच्छी उन्नति की और जागीरदारों की जागीर की आय पर लिए जाने वाले रेख और चाकरी नामक करों का हिसाब साफ रखने के लिए उन्हें बैंकों की सी पासबुक दी गई थीं। जागीरों से सम्बन्ध रखने वाली वसूली आदि का सारा काम इसी महकमे के द्वारा होता था, क्योंकि रेख, चाकरी, हजूरी दफ्तर, हकूमतों की लाग-बाग और जब्ती का काम भी इसी के अधी कर दिया गया।

आबकारी महकमा

मारवाड़ के अन्य सारे ही प्रान्तों में पहले से ही आबकारी का कानून जारी था, परन्तु मल्लानी परगने के जसोल, सिधरी, गुड़ा और नगर में इसका प्रचार ई० स० १९२०-२१ (वि० सं० १९७७) से किया गया। ई० स० १९२२ (वि० सं० १९९७९) में इस विषय (आबकारी) का नया कानून बना। इसके बाद ई० स० १९२३ (वि० सं० १९८०) में नमक और आबकारी का महकमा शामिल कर दिया गया और ई० स० १९२४ (वि० सं० १९८१) में शराब तैयार करने के लिए एक आधुनिक ढंग का कारखाना (Distillery) बनाया गया।

  • जोधपुर - दरबार को मिलने वाला नमक पहले नीलाम के जरिये बेचा जाता था। परन्तु ई० स० १९३० (वि० सं० १९८७) से वह ठेके के जरिये बेचा जाने लगा जिससे राज्य को फायदा हुआ। ठेका लेने वाले को प्रत्येक स्थान पर वहां के लिए नियत किए भाव पर ही नमक बेचने का अधिकार होने से जनता को इस प्रबन्ध से किसी प्रकार की असुविधा नहीं हुई।
कोर्ट ऑफ़ वार्डस और हैसियत

ई० स० १९१८ में कोर्ट ऑफ़ वार्ड् औ हैसियत कोर्ट दोनों एक साथ कर दी गई कोर्ट ऑफ़ वाड्र्स नाबालिग जागीरदारों की जागीरों का प्रबन्ध करने वाला महकमा था। हैसियत कोर्ट में कर्जदार जागीरदारों की जागीरों का प्रबन्ध किया जाता था। इसके बाद ई० स० १९२२ में कोर्ट ऑफ़ वाड्र्स एक्ट बनाया गया और इसी के अनुसार उपर्युक्त महकमे के प्रबन्ध में उन्नति की गई।

  • पहले कोर्ट ऑफ़ वाड्र्स के सुपरिण्टेण्डेण्ट और उसके सहकारी का वेतर नाबालिगों की जागीरों की अमदनी से दिया जाता था। परन्तु ई० स० १९२५-२६ से वह राज्य से दिया जाने लगा और इससे उक्त महकमे के कर्मचारियों को भी प्रोविडेंट फण्ड का लाभ मिलने लगा।
  • ई० स० १९२६-२७ में नाबालिगों की शादी के फण्ड का प्रबन्ध किया गया और इस महकमे की और वाल्टर-कृत सभा की आय से गरीब जागीरदारों के नजदीकी रिश्तेदारों की शादियों में सहायता व कर्ज देने का तरीका जारी किया गया।
  • ई० स० १९३१-३२ में कोर्ट ऑफ़ वाड्र्स और हैसियत की निगरानी के गांवों की हल्केबंदी की जाकर प्रबन्ध में और भी उन्नति की गई।
  • पहले अक्सर छोटे-छोटे जागीरदार कर्जदारों से बचने के लिए हैसियत के महकमे की शरण ले लेते थे और उक्त महकमा उनकी जागीर से केवल नियत वार्षिक रुपया वसूल करके कर्जदारों में बांट दिया करता था। परन्तु ई० स० १९२३ में कर्जदार जागीरदारों की जागीरों का कानून बनाया गया और इसके अनुसार इस महकमे के निरीक्षण में आनेवाला जागीरदार आवश्यकतानुसार ३० वर्षों तक के लिए अपनी जागीर के प्रबन्ध से वंचित कर दिया जाने लगा।
सहयोग समिति

इसकी स्थापना मारवाड़ में सहयोग समितियों का प्रचार कर ग्रामीण वर्ग को आर्थिक सहायता पहुंचाने और उन्हें महाजनों के ॠण से मुक्त करने क उद्देश्य से की गई है।[1]

मारवाड़ चित्रशैली

मारवाड़ के राठौड़ौ का मूल पुरुष 'राव सीहा' था जिसने सन् 1246 के लगभग मारवाड़ की धरती पर अपना पैर जमाया। इसी के वंश में रणमल के पुत्र जोधा ने 1459 ई. में 'चिड़ियाटूक' पहाड़ी पर एक नए गढ़ की नींव रखी और उसकी तलहटी में अपने नाम से जोधपुर नगर बसाया। राव जोधा ने जोधपुर को अपनी राजधानी बनाया। यह नगर 26.18' उत्तरी अक्षांश ओर 73.1' पूर्वी देशांतर पर स्थित है। 1610 ई. में राजा गज सिंह ने यहां का शासन संभाला। गजसिंह (1610 -1630 ई.) के पश्चात् जसवंत सिंह प्रथम (1638 - 1678 ई.) शासक हुए, जो महानकला प्रेमी थे। उनके शासन काल में कृष्णलीला विषयक चित्रों का सृजन हुआ। इनके पश्चात् क्रमशः अजीत सिंह 1724 ई. तक, अभय सिंह (1724 - 1748 ई.) तथा बख्त सिंह (1724 - 1752 ई.) के समय क्रमशः जोधपुर में अनेक सुन्दर चित्रों का निर्माण हुआ। बख्त सिंह के पुत्र विजय सिंह (1753 - 1766 ई.) के समय राधा-कृष्ण एवं नायक-नायिका भेद विषयक चित्रों का सृजन हुआ, यह परम्परा भीमसिंह (1766 - 1803 ई.) के समय तक अनवरत चलती रही। महाराजा मानसिंह (1803 - 1843 ई.) के समय रामायण, दुर्गा सप्तशती, शिव पुराण, नाथ चरित्र, ढोलामारु आदि विषयों से संबंधित अनेक पोथी चित्रों का निर्माण हुआ। तख्त सिंह (1843 -1873 ई.) तथा जसवंत सिंह द्वितीय (1873 - 1895 ई.) के समय कृष्ण चरित्र का विशेष अंकन हुआ।[2]




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 1.4 कुमार, प्रेम। मारवाड़ - राज्य के अधीन प्रमुख महकमों (विभागों) का विवरण (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) IGNCA। अभिगमन तिथि: 5 जनवरी, 2013।
  2. मारवाड़ (जोधपुर) चित्रशैली (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) IGNCA। अभिगमन तिथि: 4 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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