"बीना राय का फ़िल्मी कॅरियर": अवतरणों में अंतर

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साल [[1950]] में उस ज़माने के मशहूर निर्माता-निर्देशक और अभिनेता किशोर साहू फिल्म ‘काली घटा’ के लिये नयी अभिनेत्रियों की तलाश में थे। इस सिलसिले में उन्होंने सभी बड़े अख़बारों में विज्ञापन छपवा कर नयी प्रतिभाओं को आमन्त्रित किया था। बीना राय उस वक़्त 12वीं में पढ़ रही थीं। प्रेमकिशन जी के मुताबिक़ [[बीना राय]] अपने भाई के साथ [[मुम्बई]] आकर किशोर साहू से मिलीं, ऑडिशन हुआ और उन्हें फिल्म ‘काली घटा’ की मुख्य भूमिका के लिये चुन लिया गया। ये फ़िल्म [[1951]] में प्रदर्शित हुई थी। किशोर साहू ने ही उन्हें उनके असली नाम 'कृष्णा सरीन' के स्थान पर फ़िल्मी नाम 'बीना राय' दिया।
साल [[1950]] में उस ज़माने के मशहूर निर्माता-निर्देशक और अभिनेता किशोर साहू फिल्म ‘काली घटा’ के लिये नयी अभिनेत्रियों की तलाश में थे। इस सिलसिले में उन्होंने सभी बड़े अख़बारों में विज्ञापन छपवा कर नयी प्रतिभाओं को आमन्त्रित किया था। बीना राय उस वक़्त 12वीं में पढ़ रही थीं। प्रेमकिशन जी के मुताबिक़ [[बीना राय]] अपने भाई के साथ [[मुम्बई]] आकर किशोर साहू से मिलीं, ऑडिशन हुआ और उन्हें फिल्म ‘काली घटा’ की मुख्य भूमिका के लिये चुन लिया गया। ये फ़िल्म [[1951]] में प्रदर्शित हुई थी। किशोर साहू ने ही उन्हें उनके असली नाम 'कृष्णा सरीन' के स्थान पर फ़िल्मी नाम 'बीना राय' दिया।
==कॅरियर==
==कॅरियर==
फिल्म ‘काली घटा’ की दो अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाओं के लिये जो दो और अभिनेत्रियां चुनी गयीं, वह थीं आशा माथुर और इन्दिरा पांचाल। आशा माथुर ने आगे चलकर निर्माता-निर्देशक मोहन सहगल से [[विवाह]] किया तो इन्दिरा पांचाल प्रख्यात उद्योगपति महिन्द्रा परिवार की बहू बनीं। फिल्म ‘काली घटा’ के बाद फिल्मिस्तान स्टूडियो की फिल्म ‘अनारकली’ ([[1953]]) ने कामयाबी के नये रिकॉर्ड बनाये। इस फ़िल्म में बीना राय के हीरो [[प्रदीप कुमार]] थे।
फिल्म ‘काली घटा’ की दो अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाओं के लिये जो दो और अभिनेत्रियां चुनी गयीं, वह थीं आशा माथुर और इन्दिरा पांचाल। आशा माथुर ने आगे चलकर निर्माता-निर्देशक मोहन सहगल से [[विवाह]] किया तो इन्दिरा पांचाल प्रख्यात उद्योगपति महिन्द्रा परिवार की बहू बनीं। फिल्म ‘काली घटा’ के बाद फिल्मिस्तान स्टूडियो की फिल्म ‘अनारकली’ ([[1953]]) ने कामयाबी के नये रिकॉर्ड बनाये। इस फ़िल्म में बीना राय के हीरो [[प्रदीप कुमार]] थे।<ref>{{cite web |url=http://beetehuedin.blogspot.in/2015/02/ |title=बीना राय |accessmonthday=20 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=beetehuedin.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref>


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12:22, 20 जून 2017 का अवतरण

साल 1950 में उस ज़माने के मशहूर निर्माता-निर्देशक और अभिनेता किशोर साहू फिल्म ‘काली घटा’ के लिये नयी अभिनेत्रियों की तलाश में थे। इस सिलसिले में उन्होंने सभी बड़े अख़बारों में विज्ञापन छपवा कर नयी प्रतिभाओं को आमन्त्रित किया था। बीना राय उस वक़्त 12वीं में पढ़ रही थीं। प्रेमकिशन जी के मुताबिक़ बीना राय अपने भाई के साथ मुम्बई आकर किशोर साहू से मिलीं, ऑडिशन हुआ और उन्हें फिल्म ‘काली घटा’ की मुख्य भूमिका के लिये चुन लिया गया। ये फ़िल्म 1951 में प्रदर्शित हुई थी। किशोर साहू ने ही उन्हें उनके असली नाम 'कृष्णा सरीन' के स्थान पर फ़िल्मी नाम 'बीना राय' दिया।

कॅरियर

फिल्म ‘काली घटा’ की दो अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाओं के लिये जो दो और अभिनेत्रियां चुनी गयीं, वह थीं आशा माथुर और इन्दिरा पांचाल। आशा माथुर ने आगे चलकर निर्माता-निर्देशक मोहन सहगल से विवाह किया तो इन्दिरा पांचाल प्रख्यात उद्योगपति महिन्द्रा परिवार की बहू बनीं। फिल्म ‘काली घटा’ के बाद फिल्मिस्तान स्टूडियो की फिल्म ‘अनारकली’ (1953) ने कामयाबी के नये रिकॉर्ड बनाये। इस फ़िल्म में बीना राय के हीरो प्रदीप कुमार थे।[1]

बीना राय ने शादी के बाद भी फिल्मों में काम करना जारी रखा। शादीशुदा अभिनेत्री के कॅरियर को लेकर उस ज़माने में भी तमाम तरह की आशंकायें जतायी जाती थीं। लेकिन बीना राय के मामले में ऐसी तमाम आशंकायें झूठी साबित हुईं, क्योंकि सही मायनों में उनके कॅरियर ने गति शादी के बाद ही पकड़ी। ‘गौहर’, ‘शोले’, ‘मीनार’, ‘इन्सानियत’, ‘मदभरे नैन’, ‘मैरीन ड्राईव’, ‘सरदार’, ‘चन्द्रकांता’, ‘हमारा वतन’, ‘दुर्गेशनन्दिनी’, ‘बंदी’, ‘हिल स्टेशन’, ‘मेरा सलाम’, ‘तलाश’, ‘घूंघट’, ‘वल्लाह क्या बात है’, ‘ताजमहल’ और ‘दादी मां’ जैसी कुल अट्ठाईस फिल्मों में उन्होंने अशोक कुमार, दिलीप कुमार, देव आनन्द, भारत भूषण, किशोर कुमार, प्रदीप कुमार और शम्मी कपूर जैसे अपने समय के सभी जाने माने नायकों के साथ अभिनय किया। फिल्म ‘घूंघट’ (1960) के लिये उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार हासिल किया था।

फ़िल्म निर्माण

शादी के बाद बीना राय ने पति के साथ मिलकर ‘पी.एन.फ़िल्म्स’ के बैनर में ‘शगूफा’ (1953), ‘गोलकुण्डा का क़ैदी’ (1954) और ‘समुन्दर’ (1957) जैसी फिल्मों का निर्माण किया। साथ ही पति-पत्नी की इस जोड़ी ने इन फिल्मों में अभिनय भी किया। घर-गृहस्थी सम्भालने के साथ साथ बीना जी के अभिनय करते रहने के पीछे की एक बड़ी वजह शायद आर्थिक मजबूरियां भी थीं। इसीलिये फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ (1966) से प्रेमनाथ का लड़खड़ाता कॅरियर सम्हला तो पति के स्टार बनते ही उन्होंने अभिनय को अलविदा कह दिया।

अंतिम फ़िल्म

साल 1968 में बनी ‘अपना घर अपनी कहानी’ बीना राय की अन्तिम प्रदर्शित फिल्म थी, जिसके बाद फिल्मोद्योग से नाता तोडकर वह पूरी तरह घर-गृहस्थी में रम गयीं। शुरू में इस फ़िल्म का नाम ‘प्यास’ रखा गया था। इस फिल्म का संगीत भी ‘प्यास’ के नाम से ही रिलीज़ किया गया था। लेकिन प्रदर्शन के समय इसे ‘प्यास’ से बदलकर ‘अपना घर अपनी कहानी’ कर दिया गया था। बीना राय के बेटे और सिनेविस्टाज़ कम्पनी के मालिक प्रेमकिशन, जो आज टेलीविजन कार्यक्रमों के बड़े निर्माताओं में गिने जाते हैं, उनके अनुसार- "रिटायरमेण्ट के बाद मम्मी मीडिया और प्रशंसकों समेत किसी भी अपरिचित व्यक्ति से मिलने से बचती रहीं। लेकिन साल 1992 में पापा (प्रेमनाथ) के गुज़रने के बाद से उन्होंने खुद को पूरी तरह से घर की चहारदीवारी में कैद कर लिया था।"


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बीना राय (हिंदी) beetehuedin.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 20 जून, 2017।

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