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'''बेलवन''' [[कृष्ण|श्री कृष्ण]] की प्रकट लीला के समय इस वन में बेल के पेड़ों की प्रचुरता रहने के कारण कहते हैं। श्रीकृष्ण सखाओं के साथ गोचारण करते हुए इस परम मनोहर बेलवन में विविध प्रकार की क्रीड़ाएँ करते तथा पके हुए फलों का आस्वादन करते हैं। यहाँ श्रीलक्ष्मी जी का मन्दिर है। | |||
तप: सिद्धि प्रदायैव नमो बिल्ववनाय च । | तप: सिद्धि प्रदायैव नमो बिल्ववनाय च । | ||
जनार्दन नमस्तुभ्यं बिल्वेशाय नमोस्तु ते | जनार्दन नमस्तुभ्यं बिल्वेशाय नमोस्तु ते ॥ - भविष्योत्तर पुराण | ||
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08:16, 26 जुलाई 2016 का अवतरण
बेलवन
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विवरण | यहाँ श्रीलक्ष्मी जी का मन्दिर है। इस वन में कृष्ण के प्राकट्य के समय बेल के पेड़ों की प्रचुरता रहने के कारण बेलवन कहते हैं। |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | मथुरा |
प्रसिद्धि | हिन्दू धार्मिक स्थल |
कब जाएँ | कभी भी |
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बस, कार, ऑटो आदि |
कहाँ ठहरें | गैस्ट हाउस, धर्मशाला आदि |
संबंधित लेख | काम्यवन, कोकिलावन, वृन्दावन, बरसाना, नन्दगाँव, गोकुल, बिहारवन, ब्रज, महावन, बिहारवन
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अद्यतन | 13:46, 26 जुलाई 2016 (IST)
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बेलवन श्री कृष्ण की प्रकट लीला के समय इस वन में बेल के पेड़ों की प्रचुरता रहने के कारण कहते हैं। श्रीकृष्ण सखाओं के साथ गोचारण करते हुए इस परम मनोहर बेलवन में विविध प्रकार की क्रीड़ाएँ करते तथा पके हुए फलों का आस्वादन करते हैं। यहाँ श्रीलक्ष्मी जी का मन्दिर है।
तप: सिद्धि प्रदायैव नमो बिल्ववनाय च ।
जनार्दन नमस्तुभ्यं बिल्वेशाय नमोस्तु ते ॥ - भविष्योत्तर पुराण [1]
प्रसंग
एक समय नारद जी के मुख से ब्रजेन्द्र नन्दन श्रीकृष्ण की मधुर रासलीला और गोपियों के सौभाग्य का वर्णन सुनकर श्रीलक्ष्मी के हृदय में रासलीला दर्शन की प्रबल उत्कण्ठा हुई। अनन्य प्रेम की स्वरूपभूता विशुद्ध प्रेम वाली गोपियों के अतिरिक्त और किसी का भी रास में प्रवेश करने का अधिकार नहीं है। वह प्रवेश केवल महाभाव-स्वरूपा कृष्ण कान्ता शिरोमणि राधिका और उनकी स्वरूपभूता गोपियों की कृपा से ही सुलभ है। अत: यहीं पर उन्होंने कठोर तपस्या की, फिर भी उन्हें रासलीला में प्रवेश संभव नहीं हो सका। वे आज भी रास में प्रवेश के लिए यहाँ तपस्या कर रही हैं।
श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध में इसका वर्णन किया गया है। कालिय नाग की पत्नियाँ श्री कृष्ण की स्तुति करती हुई कह रही हैं-' भगवत! हम समझ नहीं पातीं कि यह इसकी (कालिय नाग की) किस साधना का फल है, जो यह आपके श्री चरणों की धूलि पाने का अधिकारी हुआ है। आपके श्री चरणों की रज इतनी दुर्लभ है कि उसके लिए आपकी अर्द्धांंगिनी श्री लक्ष्मी जी को भी बहुत दिनों तक समस्त भोगों का त्याग करके तथा नियमों का पालन करते हुए तपस्या करनी पड़ी थी फिर भी वह दुर्लभ श्री चरणरज प्राप्त नहीं कर सकीं।'[2]
यहाँ पास में ही कृष्ण कुण्ड और श्री वल्लभाचार्य जी की बैठक भी है।
रामकृष्ण सखा सह ए बिल्ववनेते ।
पक्का बिल्वफल भुञ्जे महाकौतुकेते ॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख