चैत्यक पहाड़ी
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चैत्यक पहाड़ी का उल्लेख महाभारत में हुआ है। महाभारत के अनुसार यह पहाड़ी गिरिब्रज या राजगृह (बिहार) के निकट है।[1]
- मगध के जरासंध के वध के लिए गिरिब्रज आए हुए श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन ने पहले इसी पर आक्रमण करके इसके शिखर को गिरा दिया था-
'वैहारो विपुल: शैलो वराहो वृषभस्तथा, तथा ऋषिगिरिस्तात शुभश्चैत्यकपंचमा:। भड्क्त्वा भेरीत्रयंतेऽपिचैत्र्यं-प्राकारमाद्रवन्, द्वारतोभिसूखा: सर्वे ययुर्नानाऽऽ युधास्तदा। मागधानां सुरुचिरंचैत्यकं तं समाद्रवन् शिरसीव समाध्नन्तो जरासंधं जिघांसव: स्थिरं सुविपुलं श्रृंगं सुमहत् तत् पुरातनम्, अर्चितं गंधमाल्यैश्च सततं सुप्रतिष्ठित्, विपुलैर्वाहुभि वींरास्तेऽभिहत्याभ्यपातयत्, ततस्ते मागधं ह्रष्टा: पुरं प्रविविशुस्तदा'[2]
- महाभारत, सभापर्व[3] दक्षिणात्य पाठ में भी इसका उल्लेख है।
- चैत्यक का वर्तमान नाम छत्ता है, जो चैत्य का ही अपभ्रष्ट रूप है।
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