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*नवीन गुजराती (19वीं शताब्दी के बाद)।  
 
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नागरी लिपि का नया प्रवाही स्वरूप नवीन गुजराती को इंगित करता है।  
 
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==सामंजस्य प्रणाली==
 
==सामंजस्य प्रणाली==
इस भाषा में एक जटिल सामंजस्य (समझौता) प्रणाली है, जो इस तथ्य पर आधारित है कि इसमें तीन लिंग हैं और इसमें ऐरगेटिव केस, जिसमें सकर्मक क्रियाओं के कर्ता व अकर्मक क्रियाओं के कर्म को एक ही भाषाशास्त्रीय स्वरूप के ज़रिये इंगित किया जाता है भी है। गुजराती भाषा में अन्य नवीन भारतीय–आर्य भाषाओं की अपेक्षा कर्मवाच्यों का अधिक उपयोग होता है और कृदंतों के कारण जटिल वाकय विन्यास प्रस्तुत होता है।  
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इस भाषा में एक जटिल सामंजस्य (समझौता) प्रणाली है, जो इस तथ्य पर आधारित है कि इसमें तीन लिंग हैं और इसमें ऐरगेटिव केस<ref>जिसमें सकर्मक क्रियाओं के कर्ता व अकर्मक क्रियाओं के कर्म को एक ही भाषाशास्त्रीय स्वरूप के ज़रिये इंगित किया जाता है</ref> भी है। गुजराती भाषा में अन्य नवीन भारतीय–आर्य भाषाओं की अपेक्षा कर्मवाच्यों का अधिक उपयोग होता है और कृदंतों के कारण जटिल वाकय विन्यास प्रस्तुत होता है।  
 
==बोलियाँ==
 
==बोलियाँ==
विद्वानों ने भौगोलिक सीमाओं के आधार पर तीन प्रमुख बोलीगत वर्गों का उल्लेख किया है–काठियावाड़ी (सौराष्ट्री), उत्तरी गुजराती और दक्षिणी गुजराती। धर्म, जाति, जातीयता, व्यवसाय, शिक्षा और वर्ग में भिन्नता के कारण एक जटिल बोलीगत स्थिति उत्पन्न होती है, क्योंकि ये सभी कारक एक-दूसरे को आच्छादित करते हैं और बोली की कोई निश्चित विभाजक सीमा नहीं खींची जा सकती है। लेकिन यह उल्लेखनीय है कि कंठ स्वर यंत्रीय आयाम से सम्बन्धित सबसे प्रबल ध्वन्ययात्मक विशेषता ने सभी स्वर विज्ञानियों को आकर्षित किया है। यह विशेषता स्पष्ट रूप से दो प्रमुख बोली समूहों को इंगित करती है; संसक्त ध्वनि उच्चारण बोलियाँ (जिन्हें उच्च कंठ के साथ बोला जाता है), और बड़बड़ाहट वाली बोलियाँ (जिसे बोलने में बीच–बीच में कंठ स्वर नीचा होता है)। इसके अलावा गुजराती में दो स्पष्ट जातीय बोलियाँ भी हैं–पारसी गुजराती और बोहरी गुजराती।  
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विद्वानों ने भौगोलिक सीमाओं के आधार पर तीन प्रमुख बोलीगत वर्गों का उल्लेख किया है–काठियावाड़ी (सौराष्ट्री), उत्तरी गुजराती और दक्षिणी गुजराती। धर्म, जाति, जातीयता, व्यवसाय, शिक्षा और वर्ग में भिन्नता के कारण एक जटिल बोलीगत स्थिति उत्पन्न होती है, क्योंकि ये सभी कारक एक-दूसरे को आच्छादित करते हैं और बोली की कोई निश्चित विभाजक सीमा नहीं खींची जा सकती है। लेकिन यह उल्लेखनीय है कि कंठ स्वर यंत्रीय आयाम से सम्बन्धित सबसे प्रबल ध्वन्ययात्मक विशेषता ने सभी स्वर विज्ञानियों को आकर्षित किया है। यह विशेषता स्पष्ट रूप से दो प्रमुख बोली समूहों को इंगित करती है; संसक्त ध्वनि उच्चारण बोलियाँ<ref>जिन्हें उच्च कंठ के साथ बोला जाता है</ref>, और बड़बड़ाहट वाली बोलियाँ<ref>जिसे बोलने में बीच–बीच में कंठ स्वर नीचा होता है</ref>। इसके अलावा गुजराती में दो स्पष्ट जातीय बोलियाँ भी हैं–पारसी गुजराती और बोहरी गुजराती। हालाँकि गुजराती का उपयोग विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा के लिए होता है, लेकिन यह उच्च स्तरीय वैज्ञानिक संचार के उपयुक्त नहीं है।  
हालाँकि गुजराती का उपयोग विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा के लिए होता है, लेकिन यह उच्च स्तरीय वैज्ञानिक संचार के उपयुक्त नहीं है।  
 
 
   
 
   
 
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06:38, 9 अगस्त 2010 का अवतरण

भारत की प्रमुख क्षेत्रीय भाषाओं में से एक, जिसे भारतीय संविधान की मान्यता प्राप्त है। यह मुख्यतः गुजरात क्षेत्र में तथा भारत के अन्य प्रमुख नगरों में लगभग तीन करोड़ से अधिक लोगों के द्वारा बोली जाती है। गुजराती भाषा नवीन भारतीय–आर्य भाषाओं के दक्षिण–पश्चिमी समूह से सम्बन्धित है। इतालवी विद्वान तेस्सितोरी ने प्राचीन गुजराती को प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी भी कहा, क्योंकि उनके काल में इस भाषा का उपयोग उस क्षेत्र में भी होता था, जिसे अब राजस्थान राज्य कहा जाता है। अन्य नवीन भारतीय–आर्य भाषाओं की तरह गुजराती की उत्पत्ति भी एक प्राकृत भाषा से हुई है। इस भाषा के विकास को कुछ भाषाशास्त्रीय विशेषताओं में परिवर्तन के आधार पर तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है,

  • प्राचीन गुजराती (12वीं-15वीं शताब्दी),
  • मध्य गुजराती (16वीं-18वीं शताब्दी), और
  • नवीन गुजराती (19वीं शताब्दी के बाद)।

नागरी लिपि का नया प्रवाही स्वरूप नवीन गुजराती को इंगित करता है।

सर्वनाम

पुरुषवाचक

गुजराती हिन्दी गुजराती हिन्दी गुजराती हिन्दी
હું मैं મેં मैंने મને मुझे
આપણે, અમે हम આપણે, અમે हमने આપણને, અમને हमें
તું तू તેં तूने તને तुझे
તમે तुम તમે तुमने તમને तुम्हें
આપ आप આપે आपने આપને आपको
यह, ये આણે इसने, इन्होंने આને इस्स, इन्हें
તે वह તેણે उसने તેને उस्से
તેઓ वे તેઓએ, તેમણે उन्होंने તેઓન, તેમને उन्हें

सामंजस्य प्रणाली

इस भाषा में एक जटिल सामंजस्य (समझौता) प्रणाली है, जो इस तथ्य पर आधारित है कि इसमें तीन लिंग हैं और इसमें ऐरगेटिव केस[1] भी है। गुजराती भाषा में अन्य नवीन भारतीय–आर्य भाषाओं की अपेक्षा कर्मवाच्यों का अधिक उपयोग होता है और कृदंतों के कारण जटिल वाकय विन्यास प्रस्तुत होता है।

बोलियाँ

विद्वानों ने भौगोलिक सीमाओं के आधार पर तीन प्रमुख बोलीगत वर्गों का उल्लेख किया है–काठियावाड़ी (सौराष्ट्री), उत्तरी गुजराती और दक्षिणी गुजराती। धर्म, जाति, जातीयता, व्यवसाय, शिक्षा और वर्ग में भिन्नता के कारण एक जटिल बोलीगत स्थिति उत्पन्न होती है, क्योंकि ये सभी कारक एक-दूसरे को आच्छादित करते हैं और बोली की कोई निश्चित विभाजक सीमा नहीं खींची जा सकती है। लेकिन यह उल्लेखनीय है कि कंठ स्वर यंत्रीय आयाम से सम्बन्धित सबसे प्रबल ध्वन्ययात्मक विशेषता ने सभी स्वर विज्ञानियों को आकर्षित किया है। यह विशेषता स्पष्ट रूप से दो प्रमुख बोली समूहों को इंगित करती है; संसक्त ध्वनि उच्चारण बोलियाँ[2], और बड़बड़ाहट वाली बोलियाँ[3]। इसके अलावा गुजराती में दो स्पष्ट जातीय बोलियाँ भी हैं–पारसी गुजराती और बोहरी गुजराती। हालाँकि गुजराती का उपयोग विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा के लिए होता है, लेकिन यह उच्च स्तरीय वैज्ञानिक संचार के उपयुक्त नहीं है।


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जिसमें सकर्मक क्रियाओं के कर्ता व अकर्मक क्रियाओं के कर्म को एक ही भाषाशास्त्रीय स्वरूप के ज़रिये इंगित किया जाता है
  2. जिन्हें उच्च कंठ के साथ बोला जाता है
  3. जिसे बोलने में बीच–बीच में कंठ स्वर नीचा होता है

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