गुप्त लिपि

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गुप्त लिपि चौथी-छठी शताब्दी की उत्तर भारतीय वर्णमाला से विकसित भारतीय वर्णमाला लेखन पद्धतियों के समूह में से कोई भी लिपि थी।[1] उस समय शासन कर रहे गुप्त राज्य ने इसे अपना नाम दिया था।[2]

  • यह प्राचीन ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई थी और गुप्त साम्राज्य तथा उनके द्वारा जीते गए इलाक़ों में इसका विस्तार हुआ। परिणामस्वरूप गुप्त वर्णमाला बाद में अधिकांश भारतीय लिपियों की पूर्वज बनी।[3]
  • मूल गुप्त वर्णमाला में पांच स्वर सहित 37 अक्षर थे और यह बायीं से दायीं और लिखी जाती था।
  • मूल वर्णमाला से गुप्त लिपि के चार उप-प्रकार विकसित हुए- 'पूर्वी', 'पश्चिमी', 'दक्षिणी' और 'मध्य एशियाई'।
  • मध्य एशियाई गुप्त लिपि को 'मध्य एशियाई वक्र गुप्त लिपि' और इसके 'ऐग्नियन' और 'कुचियन' प्रकार तथा मध्य एशियाई 'प्रवाही गुप्त लिपि' या 'खोतानी' में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • पूर्वी गुप्त लिपि की पश्चिमी शाखा से 'सिद्धमातृका लिपि' का जन्म हुआ (500 ई.), जिससे देवनागरी लिपि का विकास हुआ (700 ई.), जो आधुनिक भारतीय लिपियों में सबसे अधिक व्यापक है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जिन्हें कभी-कभी एक ध्वनि के बदले शब्दांश चिह्नित करने के लिए संशोधित किया गया।
  2. भारत ज्ञानकोश, खण्ड-2 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 95 |
  3. अधिकांशत: देवनागरी के माध्यम से।

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