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ओसियां [[जोधपुर]] नगर से 32 मील उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित हे। ओसियां में 9वीं शती से 12वीं शती ई. तक के स्थापत्य की सुन्दर कृतियां मिलती हैं। प्राचीन देवालयों में [[शिव]], [[विष्णु]], [[सूर्य]], [[ब्रह्मा]], [[अर्धनारीश्वर]], [[हरिहर]], नवग्रह, [[कृष्ण]], तथा महिषमर्दिनी देवी आदि के मन्दिर उल्लेखनीय हैं।  
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[[चित्र:Sachiya-Mata-Temple-Osiyan.jpg|thumb|250px|सचिया माता मन्दिर, ओसियां]]
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'''ओसियां''' [[जोधपुर]] नगर से 32 मील{{मील|मील=32}} उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित हे। ओसियां में 9वीं शती से 12वीं शती ई. तक के स्थापत्य की सुन्दर कृतियां मिलती हैं। प्राचीन देवालयों में [[शिव]], [[विष्णु]], [[सूर्य]], [[ब्रह्मा]], [[अर्धनारीश्वर]], हरिहर, नवग्रह, [[कृष्ण]], तथा महिषमर्दिनी देवी आदि के मन्दिर उल्लेखनीय हैं।  
 
==अन्य नाम==
 
==अन्य नाम==
 
स्थानीय प्राचीन अभिलेखों से सूचित होता है कि ओसियां के कई नाम मध्ययुग तक प्रचलित थे, जो ये हैं- उकेश, उपकेश, अकेश आदि। किंवदंती है कि इसकी प्राचीन काल में मेलपुरपत्तन तथा नवनेरी भी कहते थे। ओसवाल जैनों का मूल स्थान ओसियां ही है।
 
स्थानीय प्राचीन अभिलेखों से सूचित होता है कि ओसियां के कई नाम मध्ययुग तक प्रचलित थे, जो ये हैं- उकेश, उपकेश, अकेश आदि। किंवदंती है कि इसकी प्राचीन काल में मेलपुरपत्तन तथा नवनेरी भी कहते थे। ओसवाल जैनों का मूल स्थान ओसियां ही है।
 
==दर्शनीय स्थल==
 
==दर्शनीय स्थल==
ओसियां की कला पर गुप्तकालीन शिल्प का पर्याप्त प्रभाव दिखाई देता है। ग्राम के अंदर जैन तीर्थंकर महावीर का एक सुन्दर मन्दिर है जिसे वत्सराज (770-800) ने बनवाया था। यह परकोटे के भीतर स्थित है। इसके तोरण अतीव भव्य हैं तथा स्तंभों पर तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं यहीं एक स्थान पर 'सं0. 1075 आषाढ़ सुदि 10 आदित्यवार स्वातिनक्षत्रे' यह लेख उत्कीर्ण है और सामने विक्रम संवत् 1013 की एक प्रशस्ति भी एक शिला पर खुदी है जिससे ज्ञात होता है कि यह मंदिर प्रतिहार नरेश वत्सराज के समय में बना था तथा 1013 वि0 सं0= 956 ई0 में इसके मंडप का निर्माण हुआ था। निकटवर्ती पहाड़ी पर एक और मंदिर विशाल परकोटे से घिरा हुआ दिखलाई पड़ता है। यह सचियादेवी या शिलालेखों की सच्चिकादेवी से संबधित है जो महिषमर्दिनी देवी का ही एक रूप है। यह भी जैन मंदिर है। मूर्ति पर एक लेख 1234 वि0 सं0 का भी है जिससे इसका जैन धर्म से संबंध स्पष्ट हो जाता है। इस काल में इस देवी की पूजा [[राजस्थान]] के जैन-सम्प्रदाय में अन्यत्र भी प्रचलित थी। इस विषय का ओसियां नगर से संबंधित एक वादविवाद, जैन ग्रंथ उपकेश गच्छ पट्टावलि में वर्णित है (उपकेश-ओसियां का संस्कृत रूप है)। इसी मंदिर के निकट कई छोटे-बड़े देवालय है। इसके दाईं ओर सूर्यमंदिर के बाहर अर्धनारीश्वर शिव की मूर्ति, सभा-मंडप की छत में वंशीवादक तथा गोवर्धन कृष्ण की मूर्तियां उकेरी हुई हैं। गोवर्धन-लीला की यह मूर्ति [[राजस्थानी कला]] की अनुपम कृति मानी जा सकती है।  
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ओसियां की कला पर गुप्तकालीन शिल्प का पर्याप्त प्रभाव दिखाई देता है। ग्राम के अंदर [[जैन]] [[तीर्थंकर]] [[महावीर]] का एक सुन्दर मन्दिर है जिसे वत्सराज (770-800) ने बनवाया था। यह परकोटे के भीतर स्थित है। इसके तोरण अतीव भव्य हैं तथा स्तंभों पर तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं यहीं एक स्थान पर 'सं. 1075 आषाढ़ सुदि 10 आदित्यवार स्वातिनक्षत्रे' यह लेख उत्कीर्ण है और सामने विक्रम संवत् 1013 की एक प्रशस्ति भी एक शिला पर खुदी है जिससे ज्ञात होता है कि यह मंदिर प्रतिहार नरेश वत्सराज के समय में बना था तथा 1013 वि. सं.= 956 ई. में इसके मंडप का निर्माण हुआ था। निकटवर्ती पहाड़ी पर एक और मंदिर विशाल परकोटे से घिरा हुआ दिखलाई पड़ता है। यह सचियादेवी या शिलालेखों की सच्चिकादेवी से संबधित है जो महिषमर्दिनी देवी का ही एक रूप है। यह भी जैन मंदिर है। मूर्ति पर एक लेख 1234 वि. सं. का भी है जिससे इसका [[जैन धर्म]] से संबंध स्पष्ट हो जाता है। इस काल में इस देवी की पूजा [[राजस्थान]] के जैन-सम्प्रदाय में अन्यत्र भी प्रचलित थी। इस विषय का ओसियां नगर से संबंधित एक वादविवाद, जैन ग्रंथ उपकेश गच्छ पट्टावलि में वर्णित है (उपकेश-ओसियां का संस्कृत रूप है)। इसी मंदिर के निकट कई छोटे-बड़े देवालय है। इसके दाईं ओर सूर्यमंदिर के बाहर अर्धनारीश्वर शिव की मूर्ति, सभा-मंडप की छत में वंशीवादक तथा गोवर्धन कृष्ण की मूर्तियां उकेरी हुई हैं। गोवर्धन-लीला की यह मूर्ति [[राजस्थानी कला]] की अनुपम कृति मानी जा सकती है।  
 
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ओसियां से जोधपुर जाने वाली सड़क पर दोनों ओर अनेक प्राचीन मंदिर हैं। इनमें त्रिविक्रमरूपी विष्णु, नृसिंह तथा हरिहर की प्रतिमाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। कृष्ण-लीला से संबंधित भी अनेक मूर्तियां हैं।  
 
ओसियां से जोधपुर जाने वाली सड़क पर दोनों ओर अनेक प्राचीन मंदिर हैं। इनमें त्रिविक्रमरूपी विष्णु, नृसिंह तथा हरिहर की प्रतिमाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। कृष्ण-लीला से संबंधित भी अनेक मूर्तियां हैं।  
 
  
 
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10:48, 29 जून 2012 का अवतरण

सचिया माता मन्दिर, ओसियां

ओसियां जोधपुर नगर से 32 मील (लगभग 51.2 कि.मी.) उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित हे। ओसियां में 9वीं शती से 12वीं शती ई. तक के स्थापत्य की सुन्दर कृतियां मिलती हैं। प्राचीन देवालयों में शिव, विष्णु, सूर्य, ब्रह्मा, अर्धनारीश्वर, हरिहर, नवग्रह, कृष्ण, तथा महिषमर्दिनी देवी आदि के मन्दिर उल्लेखनीय हैं।

अन्य नाम

स्थानीय प्राचीन अभिलेखों से सूचित होता है कि ओसियां के कई नाम मध्ययुग तक प्रचलित थे, जो ये हैं- उकेश, उपकेश, अकेश आदि। किंवदंती है कि इसकी प्राचीन काल में मेलपुरपत्तन तथा नवनेरी भी कहते थे। ओसवाल जैनों का मूल स्थान ओसियां ही है।

दर्शनीय स्थल

ओसियां की कला पर गुप्तकालीन शिल्प का पर्याप्त प्रभाव दिखाई देता है। ग्राम के अंदर जैन तीर्थंकर महावीर का एक सुन्दर मन्दिर है जिसे वत्सराज (770-800) ने बनवाया था। यह परकोटे के भीतर स्थित है। इसके तोरण अतीव भव्य हैं तथा स्तंभों पर तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं यहीं एक स्थान पर 'सं. 1075 आषाढ़ सुदि 10 आदित्यवार स्वातिनक्षत्रे' यह लेख उत्कीर्ण है और सामने विक्रम संवत् 1013 की एक प्रशस्ति भी एक शिला पर खुदी है जिससे ज्ञात होता है कि यह मंदिर प्रतिहार नरेश वत्सराज के समय में बना था तथा 1013 वि. सं.= 956 ई. में इसके मंडप का निर्माण हुआ था। निकटवर्ती पहाड़ी पर एक और मंदिर विशाल परकोटे से घिरा हुआ दिखलाई पड़ता है। यह सचियादेवी या शिलालेखों की सच्चिकादेवी से संबधित है जो महिषमर्दिनी देवी का ही एक रूप है। यह भी जैन मंदिर है। मूर्ति पर एक लेख 1234 वि. सं. का भी है जिससे इसका जैन धर्म से संबंध स्पष्ट हो जाता है। इस काल में इस देवी की पूजा राजस्थान के जैन-सम्प्रदाय में अन्यत्र भी प्रचलित थी। इस विषय का ओसियां नगर से संबंधित एक वादविवाद, जैन ग्रंथ उपकेश गच्छ पट्टावलि में वर्णित है (उपकेश-ओसियां का संस्कृत रूप है)। इसी मंदिर के निकट कई छोटे-बड़े देवालय है। इसके दाईं ओर सूर्यमंदिर के बाहर अर्धनारीश्वर शिव की मूर्ति, सभा-मंडप की छत में वंशीवादक तथा गोवर्धन कृष्ण की मूर्तियां उकेरी हुई हैं। गोवर्धन-लीला की यह मूर्ति राजस्थानी कला की अनुपम कृति मानी जा सकती है।

प्रतिमाएं

ओसियां से जोधपुर जाने वाली सड़क पर दोनों ओर अनेक प्राचीन मंदिर हैं। इनमें त्रिविक्रमरूपी विष्णु, नृसिंह तथा हरिहर की प्रतिमाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। कृष्ण-लीला से संबंधित भी अनेक मूर्तियां हैं।


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