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07:54, 12 दिसम्बर 2010 का अवतरण

साँचा:प्रांगण

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♦ यहाँ आप भारतीय संस्कृति से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
♦ भारतीय संस्कृति विश्व की प्रधान संस्कृति है, यह कोई गर्वोक्ति नहीं, बल्कि वास्तविकता है। भारतीय संस्कृति को देव संस्कृति कहकर सम्मानित किया गया है।

दर्शन मुखपृष्ठ

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♦ भारत के अनेकों धर्मों तथा परम्पराओं और उनका आपस में संमिश्रण ने विश्व के अनेकों स्थानों को भी प्रभावित किया है।
♦ हजारों वर्षों से भारत की सांस्कृतिक प्रथाओं, भाषाओं, रीति-रिवाजों आदि में विविधता बनी रही है जो कि आज भी विद्यमान है, और यही अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की महान विशेषता है।

विशेष आलेख
वेद
  • 'वेद' हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई।
  • ऐसी मान्यता है कि इनके मन्त्रों को परमेश्वर ने प्राचीन ऋषियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था। इसलिए वेदों को श्रुति भी कहा जाता है
  • मानव जाति के लौकिक (सांसारिक) तथा पारमार्थिक अभ्युदय-हेतु प्राकट्य होने से वेद को अनादि एवं नित्य कहा गया है।
  • ब्रह्म का स्वरूप 'सत-चित आनन्द' होने से ब्रह्म को वेद का पर्यायवाची शब्द कहा गया है। इसीलिये वेद लौकिक एवं अलौकिक ज्ञान का साधन है।
  • वेद के मन्त्र विभाग को संहिता कहते हैं। संहितापरक विवेचन को 'आरण्यक' एवं संहितापरक भाष्य को 'ब्राह्मणग्रन्थ' कहते हैं।
  • वेदों के ब्राह्मणविभाग में 'आरण्यक' और 'उपनिषद' का भी समावेश है। ब्राह्मणग्रन्थों की संख्या 13 है, जैसे ऋग्वेद के 2, यजुर्वेद के 2, सामवेद के 8 और अथर्ववेद के 1 है। .... और पढ़ें
चयनित लेख
सांख्य दर्शन
  • सांख्य शब्द की निष्पत्ति संख्या शब्द से हुई है। संख्या शब्द 'ख्या' धातु में सम् उपसर्ग लगाकर व्युत्पन्न किया गया है जिसका अर्थ है 'सम्यक् ख्याति'।
  • 'सांख्य' शब्द की निष्पत्ति गणनार्थक 'संख्या' से भी मानी जाती है। ऐसा मानने में कोई विसंगति भी नहीं है।
  • महाभारत में शान्तिपर्व के अन्तर्गत सृष्टि, उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय और मोक्ष विषयक अधिकांश मत सांख्य ज्ञान व शास्त्र के ही हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि उस काल तक वह एक सुप्रतिष्ठित, सुव्यवस्थित और लोकप्रिय एकमात्र दर्शन के रूप में स्थापित हो चुका था।
  • एक सुस्थापित दर्शन की ही अधिकाधिक विवेचनाएँ होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप व्याख्या-निरूपण-भेद से उसके अलग-अलग भेद दिखाई पड़ने लगते हैं।
  • डॉ. आद्याप्रसाद मिश्र लिखते हैं- ऐसा प्रतीत होता है कि जब तत्त्वों की संख्या निश्चित नहीं हो पाई थी तब सांख्य ने सर्वप्रथम इस दृश्यमान भौतिक जगत की सूक्ष्म मीमांसा का प्रयास किया था। .... और पढ़ें
कुछ चुने हुए लेख
दर्शन श्रेणी वृक्ष
चयनित चित्र

वैदिक परंपरा

वैदिक परंपरा

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