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'''बिलहरी''' [[मध्य प्रदेश]] राज्य में [[कटनी ज़िला|कटनी]] से 9 मील {{मील|मील=9}} की दूरी पर स्थित है। यहाँ से [[कलचुरी वंश]] का 10वीं शताब्दी का एक [[अभिलेख]] प्राप्त हुआ है। यह अभिलेख कलचुरी शासक युवराज द्वितीय (980-990 ई.) से सम्बन्धित है। इस अभिलेख से कलचुरी वंश की उत्पत्ति एवं प्रारम्भिक शासकों पर प्रकाश पड़ता है। इस अभिलेख से युवराज प्रथम (915-945 ई.) के सैंनिक अभियानों का भी अभिज्ञान होता है।
*[[कलचुरी वंश]] का 10 वीं शताब्दी का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है।  
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*यह अभिलेख कलचुरी शासक युवराज द्वितीय (980-990 ई.) से सम्बन्धित है।  
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*इस अभिलेख से कलचुरी वंश की उत्पत्ति एवं प्रारम्भिक शासकों पर प्रकाश पड़ता है।  
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एक किंवदंती के अनुसार बिलहरी को प्राचीन 'पुष्पावती' बताया जाता है और इसका संबंध माधवानल और कामकंढला की प्रेम गाथा से जोड़ा गया है। यह कथा [[पश्चिम भारत]] में 17वीं शती तक काफ़ी प्रख्यात थी, किंतु इस कथा में पुष्पावती [[गंगा]] तट पर बताई गई है, जो बिलहरी से अवश्य ही भिन्न थी। अभिज्ञान के अनुसार वाचक कुशललाभ रचित माधवानल कथा में वर्णित पुष्पावती [[बुलंदशहर]] ([[उत्तर प्रदेश]]) में गंगा के तट पर बसी हुई प्राचीन नगरी 'पूठ' है। किंतु बिलहरी का भी नाम पुष्पावती हो सकता है, क्योंकि तरणतारण स्वामी के अनुयायी भी बिलहरी को अपने गुरु का जन्म स्थान पुष्पावती मानते हैं।
*इस अभिलेख से युवराज प्रथम (915-945 ई.) के सैंनिक अभियानों का अभिज्ञान होता है।
 
*बिलहरी में प्रवेश करते ही एक विशाल जलाशय तथा एक प्राचीन गढ़ी दिखायी देती है।  
 
*यह जलाशय-लक्ष्मणसागर, नाहेला, देवी के पुत्र कलचुरी शासक [[लक्ष्मणराज]] (945-970 ई.) ने बनवाया था।
 
*बिलहरी से प्राप्त एक अभिलेख से ज्ञात होता है।
 
*यह अभिलेख अब [[नागपुर]] संग्रहालय में सुरक्षित है।  
 
*लक्ष्मणराज का बनवाया हुआ एक मठ भी यहाँ का उल्लेखनीय स्मारक है।
 
*बिलहरी में कलचुरी कालीन सैकड़ों सुन्दर मूर्तियाँ हैं, जो हिन्दू धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों से सम्बन्धित हैं।  
 
  
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बिलहरी में प्रवेश करते ही एक विशाल जलाशय तथा एक प्राचीन गढ़ी दिखायी देती है। यह जलाशय [[कलचुरी वंश|कलचुरी]] शासक [[लक्ष्मणराज]] (945-970 ई.) ने बनवाया था, जैसा कि बिलहरी से प्राप्त एक अभिलेख से ज्ञात होता है। गढ़ी सुदृढ़ बनी हुई है और लोकोक्ति के अनुसार [[चंदेल वंश|चंदेल]] नरेशों के समय की है। बिलहरी तथा इसके निकटवर्ती प्रदेश पर कलचुरियों की शक्ति क्षीण होने पर चंदेलों का राज्य स्थापित हुआ था। [[1857]] के [[भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन|स्वतंत्रता संग्राम]] में इस गढ़ी पर सैंकड़ों गोले पड़ने पर भी इसका बाल भी बांका नहीं हुआ।
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11:19, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

बिलहरी मध्य प्रदेश राज्य में कटनी से 9 मील (लगभग 14.4 कि.मी.) की दूरी पर स्थित है। यहाँ से कलचुरी वंश का 10वीं शताब्दी का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है। यह अभिलेख कलचुरी शासक युवराज द्वितीय (980-990 ई.) से सम्बन्धित है। इस अभिलेख से कलचुरी वंश की उत्पत्ति एवं प्रारम्भिक शासकों पर प्रकाश पड़ता है। इस अभिलेख से युवराज प्रथम (915-945 ई.) के सैंनिक अभियानों का भी अभिज्ञान होता है।

इतिहास

एक किंवदंती के अनुसार बिलहरी को प्राचीन 'पुष्पावती' बताया जाता है और इसका संबंध माधवानल और कामकंढला की प्रेम गाथा से जोड़ा गया है। यह कथा पश्चिम भारत में 17वीं शती तक काफ़ी प्रख्यात थी, किंतु इस कथा में पुष्पावती गंगा तट पर बताई गई है, जो बिलहरी से अवश्य ही भिन्न थी। अभिज्ञान के अनुसार वाचक कुशललाभ रचित माधवानल कथा में वर्णित पुष्पावती बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) में गंगा के तट पर बसी हुई प्राचीन नगरी 'पूठ' है। किंतु बिलहरी का भी नाम पुष्पावती हो सकता है, क्योंकि तरणतारण स्वामी के अनुयायी भी बिलहरी को अपने गुरु का जन्म स्थान पुष्पावती मानते हैं।

बिलहरी में प्रवेश करते ही एक विशाल जलाशय तथा एक प्राचीन गढ़ी दिखायी देती है। यह जलाशय कलचुरी शासक लक्ष्मणराज (945-970 ई.) ने बनवाया था, जैसा कि बिलहरी से प्राप्त एक अभिलेख से ज्ञात होता है। गढ़ी सुदृढ़ बनी हुई है और लोकोक्ति के अनुसार चंदेल नरेशों के समय की है। बिलहरी तथा इसके निकटवर्ती प्रदेश पर कलचुरियों की शक्ति क्षीण होने पर चंदेलों का राज्य स्थापित हुआ था। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इस गढ़ी पर सैंकड़ों गोले पड़ने पर भी इसका बाल भी बांका नहीं हुआ।

स्थापत्य

लक्ष्मणराज का बनवाया हुआ एक मठ भी यहाँ का उल्लेखनीय स्मारक है, किंतु कुछ विद्वानों के मत में यह मुग़ल काल का है। बिलहरी में कलचुरिकालीन सैंकड़ों सुंदर मूर्तियाँ प्राप्त हुईं हैं। ये हिन्दू धर्म के सभी संप्रदायों से संबंधित हैं। एक विशिष्ट अभिलेख बिलहरी से प्राप्त हुआ है, वह है 'मधुच्छत्र', जो एक लंबे वर्ग पट्ट के रूप में है। इसके बीच में कमल की सुंदर आकृति है, जिसके चार विस्तृत भाग हैं। इस पर सूक्ष्म तक्षण किया हुआ है। विचार किया जाता है कि यह छत्र शायद पहले किसी मंदिर की छत में अधार रूप से लगा होगा। इसे महाकोसल की महान् प्राचीन शिल्पकृति माना जाता है। यह अभिलेख अब नागपुर के संग्रहालय में सुरक्षित है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख