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ज़कात अरबी भाषा का शब्द है, मुसलमानों द्वारा देय एक अनिवार्य कर, इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक। ज़कात संपत्ति की पांच श्रेणियों – खाद्यान्न; फल; ऊंट, मवेशी, भेड़े-बकरियाँ; सोना-चांदी और चल संपत्ति – पर लगाया जाता है, जो एक वर्ष के स्वामित्व के बाद प्रतिवर्ष देय होता है। धार्मिक क़ानून के हिसाब से आवश्यक कराधान वर्ग के अनुसार, परिवर्तनीय है। ज़कात से लाभान्वित होने वालों में ग़रीब और ज़रूरतमंद, इसके संग्राहक और ‘वे जिनके दिलों पर मरहम लगाना आवश्यक है’- उदाहरणार्थ, असंतुष्ट कुटुंबी, कर्ज़दार, जिहादी (धर्मयोद्धा) और तीर्थयात्री शामिल हैं।

ख़िलाफ़त के तहत ज़कात का संग्रहण और व्यय राज्य का कार्य था, लेकिन धर्म निरपेक्ष कराधान के बढ़ने के साथ ज़कात को नियंत्रित और संपूर्णत: संगृहीत करना उत्तरोत्तर कठिन होता गया। सऊदी अरब जैसे देशों को छोडकर, जहां शरीयत (इस्लामी क़ानून) का सख्ती से पालन होता है, आधुनिक इस्लामी विश्व में इसे व्यक्ति विशेष पर छोड़ दिया गया है ।

क़ुरान और हदीस (मुहम्मद साहब के वचन) सदक़ा अथवा स्वैच्छिक दान पर भी बल देते हैं, जो ज़कात की ही तरह, ज़रुरतमंदों के लिए होता है।


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