"रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे": अवतरणों में अंतर
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'''रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे''' (जन्म- [[3 जुलाई]] [[1886]], मृत्यु- [[6 जून]], [[1957]]) | {{सूचना बक्सा साहित्यकार | ||
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'''रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ramachandra Dattatrya Ranade'',जन्म- [[3 जुलाई]], [[1886]], बगलकोट ज़िला ([[कर्नाटक]]; मृत्यु- [[6 जून]], [[1957]]) [[संस्कृत]] के विद्वान एवं दर्शनशास्त्री थे। वे [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] में दर्शन विभाग के अध्यक्ष और प्रोफेसर के पद पर रहे। इसके बाद इसी विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी बने। | |||
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रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे का जन्म 3 जुलाई 1886 को हुआ था। शिक्षा पूरी करने के बाद | रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे का जन्म 3 जुलाई 1886 को जमखंडी नामक स्थान पर, बगलकोट ज़िला ([[कर्नाटक]]) में हुआ था। इनके [[पिता]] दत्तात्रेय रानाडे रामदुर्ग छोड़कर जमखिंडी में आ बसे थे। शिक्षा पूरी करने के बाद रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे [[पूना]] के फर्ग्यूसन कॉलेज में पहले [[अंग्रेजी]] के और फिर तत्वज्ञान के प्राध्यापक नियुक्त हुए। बाद में आपने यह कार्य छोड़कर 'अध्यात्म विद्यापीठ' नामक संस्था की स्थापना की। दिसम्बर 1927 ई. में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दर्शन विभाग के अध्यक्ष और प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति हुई।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=729|url=}}</ref> | ||
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रानाडे की अध्यात्मिक विषयों पर शोध करना और उनके प्रचार-प्रसार करने में रुचि थी। आपने [[सांगली]] में 'अध्यात्म विद्या मंदिर' की स्थापना की। अंग्रेजी और [[मराठी]] में [[1922]] और [[1927]] के बीच आपने [[भारतीय दर्शन]] और [[अध्यात्म]] पर 13 मानक ग्रंथों की रचना की। आपने 'अध्यात्म विद्यापीठ' नामक संस्था की स्थापना की। इसका उद्देश्य 16 खंडों में भारतीय दर्शन का इतिहास प्रकाशित करना था। इस क्रम में कुछ खंड प्रकाशित हो चुके थे। | रानाडे की अध्यात्मिक विषयों पर शोध करना और उनके प्रचार-प्रसार करने में रुचि थी। आपने [[सांगली]] में 'अध्यात्म विद्या मंदिर' की स्थापना की। अंग्रेजी और [[मराठी]] में [[1922]] और [[1927]] के बीच आपने [[भारतीय दर्शन]] और [[अध्यात्म]] पर 13 मानक ग्रंथों की रचना की। आपने 'अध्यात्म विद्यापीठ' नामक संस्था की स्थापना की। इसका उद्देश्य 16 खंडों में भारतीय दर्शन का इतिहास प्रकाशित करना था। इस क्रम में कुछ खंड प्रकाशित हो चुके थे। | ||
====मराठी रचनाएँ==== | |||
रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे के मराठी में लिखे ग्रंथ निम्न हैं- | |||
#ज्ञानेश्वर वचनामृत | |||
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इसके सिवा दर्जनों स्फुट लेख और [[निबंध]] पत्र-पत्रिकाओं में दार्शनिक विचारों पर प्रकाशित हुए हैं। [[1922]] से [[1927]] तक निंवाद में रहकर अनेक दार्शनिक ग्रंथों का उन्होंने निर्माण किया। निंबाद में उन्होंने अध्यात्म विद्यापीठ स्थापित किया था। [[दिसंबर]], 1927 को दर्शन विभाग के अध्यक्ष तथा प्रोफेसर के रूप में [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] में नियुक्त हुए। बीस साल तक इस पद को उन्होंने विभूषित किया। बाद में वे वाइस चांसलर भी बने। निवृत्त हो जाने पर [[26 अक्टूबर]], [[1947]] में सांगली में अध्यात्म विद्या मंदिर की स्थापना की। | |||
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रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे का [[6 जून]], [[1957]] ई. को निधन हो गया। | रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे का [[6 जून]], [[1957]] ई. को निधन हो गया। |
08:25, 3 जुलाई 2018 के समय का अवतरण
रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे
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पूरा नाम | रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे |
जन्म | 3 जुलाई, 1886 |
जन्म भूमि | बगलकोट ज़िला (कर्नाटक |
मृत्यु | 6 जून, 1957 |
अभिभावक | पिता- दत्तात्रेय रानाडे |
कर्म भूमि | भारत |
प्रसिद्धि | संस्कृत विद्वान एवं दर्शनशास्त्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | रानाडे की अध्यात्मिक विषयों पर शोध करना और उनके प्रचार-प्रसार करने में रुचि थी। आपने सांगली में 'अध्यात्म विद्या मंदिर' की स्थापना की थी। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे (अंग्रेज़ी: Ramachandra Dattatrya Ranade,जन्म- 3 जुलाई, 1886, बगलकोट ज़िला (कर्नाटक; मृत्यु- 6 जून, 1957) संस्कृत के विद्वान एवं दर्शनशास्त्री थे। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दर्शन विभाग के अध्यक्ष और प्रोफेसर के पद पर रहे। इसके बाद इसी विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी बने।
परिचय
रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे का जन्म 3 जुलाई 1886 को जमखंडी नामक स्थान पर, बगलकोट ज़िला (कर्नाटक) में हुआ था। इनके पिता दत्तात्रेय रानाडे रामदुर्ग छोड़कर जमखिंडी में आ बसे थे। शिक्षा पूरी करने के बाद रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे पूना के फर्ग्यूसन कॉलेज में पहले अंग्रेजी के और फिर तत्वज्ञान के प्राध्यापक नियुक्त हुए। बाद में आपने यह कार्य छोड़कर 'अध्यात्म विद्यापीठ' नामक संस्था की स्थापना की। दिसम्बर 1927 ई. में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दर्शन विभाग के अध्यक्ष और प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति हुई।[1]
रचना कार्य
रानाडे की अध्यात्मिक विषयों पर शोध करना और उनके प्रचार-प्रसार करने में रुचि थी। आपने सांगली में 'अध्यात्म विद्या मंदिर' की स्थापना की। अंग्रेजी और मराठी में 1922 और 1927 के बीच आपने भारतीय दर्शन और अध्यात्म पर 13 मानक ग्रंथों की रचना की। आपने 'अध्यात्म विद्यापीठ' नामक संस्था की स्थापना की। इसका उद्देश्य 16 खंडों में भारतीय दर्शन का इतिहास प्रकाशित करना था। इस क्रम में कुछ खंड प्रकाशित हो चुके थे।
मराठी रचनाएँ
रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे के मराठी में लिखे ग्रंथ निम्न हैं-
- ज्ञानेश्वर वचनामृत
- संतवचनामृत
- तुकाराम वचनामृत
- रामदासवचनामृत
- एकनाथ वचनामृत
इसके सिवा दर्जनों स्फुट लेख और निबंध पत्र-पत्रिकाओं में दार्शनिक विचारों पर प्रकाशित हुए हैं। 1922 से 1927 तक निंवाद में रहकर अनेक दार्शनिक ग्रंथों का उन्होंने निर्माण किया। निंबाद में उन्होंने अध्यात्म विद्यापीठ स्थापित किया था। दिसंबर, 1927 को दर्शन विभाग के अध्यक्ष तथा प्रोफेसर के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में नियुक्त हुए। बीस साल तक इस पद को उन्होंने विभूषित किया। बाद में वे वाइस चांसलर भी बने। निवृत्त हो जाने पर 26 अक्टूबर, 1947 में सांगली में अध्यात्म विद्या मंदिर की स्थापना की।
मृत्यु
रामचंद्र दत्तात्रेय रानाडे का 6 जून, 1957 ई. को निधन हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 729 |
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