"कोबाल्ट": अवतरणों में अंतर
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कोबाल्ट एक रासायनिक [[तत्व]] है। कोबाल्ट का संकेत '''Co''', [[परमाणु संख्या]] 27, [[परमाणु भार]] 59.94 है। प्राचीन काल के रंगीन कांच के विश्लेषण से पता लगता है कि कोबाल्ट के [[खनिज]] का उपयोग तब ज्ञात था। ऐग्रिकोला ने 1530 ई. में कुछ खनिजों और अयस्कों के लिए कोबाल्ट शब्द का प्रयोग किया था। 1742 ई. में ब्रांट ने पहले पहल अशुद्ध रूप में इस [[धातु]] को प्राप्त किया था। उन्होंने इसके चुंबकीय गुण और ऊँचे [[द्रवणांक]] का भी पता लगाया था। कुछ खनिजों के पिघलाने से नीले रंग के बनने का कारण यही तत्व था। इस धातु का प्रारंभिक अध्ययन बैर्गमैन ने किया। कोबाल्ट अन्य धातुओं के खनिजों, विशेषत: [[लोहा|लोहे]] और सीसे के खनिजों के साथ मिला हुआ पाया जाता है। | कोबाल्ट एक रासायनिक [[तत्व]] है। कोबाल्ट का संकेत '''Co''', [[परमाणु संख्या]] 27, [[परमाणु भार]] 59.94 है। प्राचीन काल के रंगीन कांच के विश्लेषण से पता लगता है कि कोबाल्ट के [[खनिज]] का उपयोग तब ज्ञात था। ऐग्रिकोला ने 1530 ई. में कुछ खनिजों और अयस्कों के लिए कोबाल्ट शब्द का प्रयोग किया था। 1742 ई. में ब्रांट ने पहले पहल अशुद्ध रूप में इस [[धातु]] को प्राप्त किया था। उन्होंने इसके चुंबकीय गुण और ऊँचे [[द्रवणांक]] का भी पता लगाया था। कुछ खनिजों के पिघलाने से नीले रंग के बनने का कारण यही तत्व था। इस धातु का प्रारंभिक अध्ययन बैर्गमैन ने किया। कोबाल्ट अन्य धातुओं के खनिजों, विशेषत: [[लोहा|लोहे]] और सीसे के खनिजों के साथ मिला हुआ पाया जाता है। | ||
11:35, 16 जुलाई 2011 का अवतरण
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कोबाल्ट एक रासायनिक तत्व है। कोबाल्ट का संकेत Co, परमाणु संख्या 27, परमाणु भार 59.94 है। प्राचीन काल के रंगीन कांच के विश्लेषण से पता लगता है कि कोबाल्ट के खनिज का उपयोग तब ज्ञात था। ऐग्रिकोला ने 1530 ई. में कुछ खनिजों और अयस्कों के लिए कोबाल्ट शब्द का प्रयोग किया था। 1742 ई. में ब्रांट ने पहले पहल अशुद्ध रूप में इस धातु को प्राप्त किया था। उन्होंने इसके चुंबकीय गुण और ऊँचे द्रवणांक का भी पता लगाया था। कुछ खनिजों के पिघलाने से नीले रंग के बनने का कारण यही तत्व था। इस धातु का प्रारंभिक अध्ययन बैर्गमैन ने किया। कोबाल्ट अन्य धातुओं के खनिजों, विशेषत: लोहे और सीसे के खनिजों के साथ मिला हुआ पाया जाता है।
खनिजों से धातु प्राप्त करने की विधि खनिजों की प्रकृति और उनमें उपस्थित धातुओं पर निर्भर करती है। धातु कर्म वस्तुत: कुछ पेचीदा होता है। इस खनिज को दलकर भट्ठियों में भूनते हैं। इससे वाष्पशील अंश बहुत कुछ निकल जाता है। फिर नमक के साथ उत्तप्त करते हैं, जिससे चाँदी अविलेय सिल्वर क्लोराइड में परिणत हो जाती हैं। जलविलेय निष्कर्ष में कोबाल्ट के अतिरिक्त निकल और ताँबा रहते हैं। लौह धातु के उपचार से ताँबे को अवक्षिप्त करके अलग कर लेते हैं। अवशेष को अब हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में घुलाते हैं। विलयन को चूना पत्थर से उदासीन बनाकर, लोहे को हाइड्राम्क्साइड के रूप में अवक्षिप्त कर लेते हैं। निस्यंद को अब बिरंजक चूने के उपचार से कोबाल्ट का काले कोबाल्ट हाइड्रॉक्साइड के रूप में अवक्षेप निकल जाता है और निकल विलयन में रह जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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