"इबने अरबी": अवतरणों में अंतर
('{{पुनरीक्षण}} {{tocright}} '''शेख अबू बकर मोईउद्दीन बिन अली''' (जन...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "सन्न्यासी" to "संन्यासी") |
||
(5 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 16 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{ | {{सूचना बक्सा प्रसिद्ध व्यक्तित्व | ||
|चित्र=Ibn-Arabi.jpg | |||
'''शेख अबू बकर मोईउद्दीन बिन अली' | |चित्र का नाम=इबने अरबी | ||
|पूरा नाम=शेख अबू बकर मोईउद्दीन बिन अली | |||
इबने अरबी के सम्बन्ध में लोगों की अलग-अलग धारणाएं हैं। कुछ व्यक्तियों के विचार से वे संन्यासी (वली कामिल) थे और अध्यात्म् पर उनका पूर्ण अधिकार था, जिसमें किसी की कोई आपत्ति नहीं हो सकती। दूसरी ओर एक ऐसा समुदाय भी था, जो उन्हें नास्तिक समझता था। इबने अरबी की पुस्तकों के सम्बन्ध में आज भी ऐसी ही परस्पर विरोधी धारणाएं प्रचलित हैं। | |अन्य नाम=शेखुल अकबर | ||
|जन्म=[[28 जुलाई]], 1165 ई. | |||
|जन्म भूमि=मरसिया, स्पेन | |||
|मृत्यु=[[10 नवंबर]], 1240 ई. | |||
|मृत्यु स्थान=दमिश्क, सीरिया | |||
|अभिभावक= | |||
|पति/पत्नी= | |||
|संतान= | |||
|गुरु= | |||
|कर्म भूमि= | |||
|कर्म-क्षेत्र=सूफी कवि, साधक और विचारक | |||
|मुख्य रचनाएँ=इनकी कृतियों की विश्वसनीय संख्या आमतौर पर अधिक से अधिक 150 के क़रीब मानी जाती है। | |||
|विषय= | |||
|खोज= | |||
|भाषा= | |||
|शिक्षा= | |||
|विद्यालय= | |||
|पुरस्कार-उपाधि= | |||
|प्रसिद्धि=दार्शनिक | |||
|विशेष योगदान= | |||
|नागरिकता= | |||
|संबंधित लेख= | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|शीर्षक 3= | |||
|पाठ 3= | |||
|शीर्षक 4= | |||
|पाठ 4= | |||
|शीर्षक 5= | |||
|पाठ 5= | |||
|अन्य जानकारी=इबने अरबी के मतानुसार पूर्ण मनुष्य वह दर्पण है, जिसमें सारी खुदाई प्रतिबिम्बित होती है। वह सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सार है, इस [[पृथ्वी]] पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और एक ऐसी हस्ती है, जिसे ईश्वर के रूप में ढाला गया है। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''इबने अरबी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ibn Arabi'', पूरा नाम:'शेख अबू बकर मोईउद्दीन बिन अली', जन्म: [[28 जुलाई]], 1165 ई.; मृत्यु: [[10 नवंबर]], 1240 ई.) [[अरबी भाषा|अरबी]] के प्रसिद्ध सूफी [[कवि]], साधक और विचारक थे। इबने अरबी के सम्बन्ध में लोगों की अलग-अलग धारणाएं हैं। कुछ व्यक्तियों के विचार से वे संन्यासी (वली कामिल) थे और अध्यात्म् पर उनका पूर्ण अधिकार था, जिसमें किसी की कोई आपत्ति नहीं हो सकती। दूसरी ओर एक ऐसा समुदाय भी था, जो उन्हें नास्तिक समझता था। इबने अरबी की पुस्तकों के सम्बन्ध में आज भी ऐसी ही परस्पर विरोधी धारणाएं प्रचलित हैं। ये 'शेखुल अकबर' के नाम से भी प्रसिद्ध है। | |||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
17 [[रमजान]] सन् 560 [[हिजरी संवत|हिजरी]] (28 जुलाई, 1165 ई.) मरसिया में पैदा हुए थे, जो उन्दलुस के दक्षिण पूर्व में स्थित है। उनका सम्बन्ध [[अरब देश|अरब]] के एक प्राचीन कबीले 'तय' से था। | 17 [[रमजान]] सन् 560 [[हिजरी संवत|हिजरी]] (28 जुलाई, 1165 ई.) मरसिया में पैदा हुए थे, जो उन्दलुस के दक्षिण पूर्व में स्थित है। उनका सम्बन्ध [[अरब देश|अरब]] के एक प्राचीन कबीले 'तय' से था। जगत् विख्यात दानी 'हातिमताई' इसी कबीले के थे। सन 568 हिजरी में इबने अरबी (अशबीलिया) चले गए, जो उन दिनों विद्या और [[साहित्य]] का बहुत बड़ा केन्द्र था। यहाँ वे तीस साल तक उस समय के जाने माने विद्वान् से ज्ञान प्राप्ति करते रहे। 38 वर्ष की आयु में वे पूर्वी देश चले गए और वहाँ से फिर कभी स्वदेश नहीं लौटे। सबसे पहले वे [[मिस्र]] पहुँचे और कुछ समय वहाँ व्यतीत किया। फिर समीपस्थ पूर्व और एशियाई कोचक ([[तुर्क|तुर्की]]) की लम्बी यात्रा में व्यस्त हो गए और इस सिलसिले में बैतुलमकदिस (पोरशलम) [[मक्का (अरब)|मक्का]], [[बगदाद]] और हलब गए। अन्त में उन्होंने दमिश्क में स्थाई रूप से रहना प्रारम्भ कर दिया और वहीं पर सन् 638 हिजरी (1240 ई.) में उनका देहान्त हो गया। उन्हें कासीउन पर्वत में दफन कर दिया गया। | ||
== | ==रचनाएँ== | ||
इबने अरबी की रचनाओं की संख्या और उनके खंडों के बारे में कुछ भी ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता। अब्दुर्रहमान जामी ने, एक बगदाद वासी वृद्ध सज्जन के कथनानुसार, इबने अरबी की पुस्तकों की संख्या 580 से अधिक बताई है और मिस्र के | इबने अरबी की रचनाओं की संख्या और उनके खंडों के बारे में कुछ भी ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता। अब्दुर्रहमान जामी ने, एक बगदाद वासी वृद्ध सज्जन के कथनानुसार, इबने अरबी की पुस्तकों की संख्या 580 से अधिक बताई है और मिस्र के विद्वान् मुहम्मद रजब हिल्मी ने इनकी संख्या 284 आंकी है। इनकी कृतियों की विश्वसनीय संख्या आमतौर पर अधिक से अधिक 150 के क़रीब मानी जाती है। इबने अरबी ने अपनी रचनाओं का जो भंडार छोड़ा है, वह उस समय की सभी इस्लामिक शिक्षाओं को अपने में समेटे हुए हैं, परन्तु अधिकतर पुस्तकों का विषय सूफीवाद (तसब्बुफ) है। इन सभी पुस्तकों को समय की दृष्टि से क्रमबद्ध करना अत्यन्त कठिन है। इनमें से 'फुतुहोत-मक्कीया' अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, जो उनके परिपक्व मस्तिष्क का दर्पण है। उनके लिखने का ढंग प्रतीकात्मक और व्याख्या अत्यन्त गूढ़ है। कहीं-कहीं जान बूझकर कुछ बातों को उन्होंने दुर्बोध बनाने का प्रयास किया है। ऐसा इसलिए कि वे अपने बहदतुलवुजुदी के सिद्धांत को लोगों से छिपा सकें। फलत: इस्लामिक संसार में उनके सिद्धांतों के विषय में विरोधाभास पाया जाता है। | ||
==दृष्टिकोण== | |||
इबने अरबी ने अपनी रचनाओं का जो भंडार छोड़ा है, वह उस समय की सभी इस्लामिक शिक्षाओं को अपने में समेटे हुए हैं, परन्तु अधिकतर पुस्तकों का विषय सूफीवाद (तसब्बुफ) है। इन सभी पुस्तकों को समय की दृष्टि से क्रमबद्ध करना अत्यन्त कठिन है। इनमें से 'फुतुहोत-मक्कीया' अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, जो उनके परिपक्व मस्तिष्क का दर्पण है। उनके लिखने का ढंग प्रतीकात्मक और व्याख्या अत्यन्त गूढ़ है। कहीं-कहीं जान बूझकर कुछ बातों को उन्होंने दुर्बोध बनाने का प्रयास किया है। ऐसा इसलिए कि वे अपने बहदतुलवुजुदी के सिद्धांत को लोगों से छिपा सकें। फलत: इस्लामिक संसार में उनके सिद्धांतों के विषय में विरोधाभास पाया जाता है। | |||
== | |||
दार्शनिक दृष्टि से इनका सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण योगदान सार्वभौम मानव के प्रत्यय का परिमार्जन है। कहने की आवश्यकता नहीं कि यह संप्रत्यय सूफियों की कृतियों में शनै: शनै: पहले से ही प्रकट होने लग गया था। सार्वभौम (इन्सान-ए-कामिल) मानव का यह संप्रत्यय लोगोस के नव्य प्लोटोनिक प्रत्यय की भांति ईश्वर की सृजनात्मक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है एवं जगत् व ईश्वर के बीच मध्यस्थ शक्ति के रूप में क्रियाशील होने में सक्षम है। इस प्रकार सार्वभौम मानव [[ब्रह्माण्ड|ब्रह्मांड]] एवं मानव के मूल रूप का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक नमूना या आदर्श प्रस्तुत करता है, जिसके अनुरूप हो पाने के लिए मानव सतत प्रयत्नशील रह सकता है। | दार्शनिक दृष्टि से इनका सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण योगदान सार्वभौम मानव के प्रत्यय का परिमार्जन है। कहने की आवश्यकता नहीं कि यह संप्रत्यय सूफियों की कृतियों में शनै: शनै: पहले से ही प्रकट होने लग गया था। सार्वभौम (इन्सान-ए-कामिल) मानव का यह संप्रत्यय लोगोस के नव्य प्लोटोनिक प्रत्यय की भांति ईश्वर की सृजनात्मक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है एवं जगत् व ईश्वर के बीच मध्यस्थ शक्ति के रूप में क्रियाशील होने में सक्षम है। इस प्रकार सार्वभौम मानव [[ब्रह्माण्ड|ब्रह्मांड]] एवं मानव के मूल रूप का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक नमूना या आदर्श प्रस्तुत करता है, जिसके अनुरूप हो पाने के लिए मानव सतत प्रयत्नशील रह सकता है। | ||
इनकी कृतियों में बहुत से पूर्ववर्ती महत्त्वपूर्ण दार्शनिकों एवं वैचारिक गतिविधियों के प्रभाव दिखते हैं। ये विशेष रूप से प्लेटो, [[अरस्तु]], प्लाटीनस एवं नव्य प्लेटोवादियों से प्रभावित थे। इन्होंने अपने समय के अंधविश्वासपूर्ण [[धर्मशास्त्र]] को [[दर्शन]] से सम्बद्ध करने का प्रयास किया है। इनके द्वारा वर्णित सत्ता के घटक रूप एवं भाव हैं, जो अरस्तु के उपादान एवं आकार से सादृश्य रखते हैं। मानव ईश्वर को प्रतिबिम्बित करता है, जिसमें वह अपने को जैसा वह है, देख सकता है। ईश्वर के स्वभाव को प्रतिबिम्बित करने की यह स्थिति नितांत अपूर्ण प्रतिबिम्बों से पूर्ण मानवों<ref>यथा आदम</ref> तथा दूसरे देवदूतों, [[संत|संतों]] आदि द्वारा सम्पन्न नितांत पूर्ण प्रतिबिम्बों तक विस्तृत है। ये अद्वैतावाद में पक्का विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे, जिसके अनुसार ईश्वर एवं जगत् निरपेक्ष सत्ता के दो सह-सम्बन्धी एवं पूरक तत्व हैं। इबने अरबी के पूर्व एक दूसरे | इनकी कृतियों में बहुत से पूर्ववर्ती महत्त्वपूर्ण दार्शनिकों एवं वैचारिक गतिविधियों के प्रभाव दिखते हैं। ये विशेष रूप से [[प्लेटो]], [[अरस्तु]], प्लाटीनस एवं नव्य प्लेटोवादियों से प्रभावित थे। इन्होंने अपने समय के अंधविश्वासपूर्ण [[धर्मशास्त्र]] को [[दर्शन]] से सम्बद्ध करने का प्रयास किया है। इनके द्वारा वर्णित सत्ता के घटक रूप एवं भाव हैं, जो अरस्तु के उपादान एवं आकार से सादृश्य रखते हैं। मानव ईश्वर को प्रतिबिम्बित करता है, जिसमें वह अपने को जैसा वह है, देख सकता है। ईश्वर के स्वभाव को प्रतिबिम्बित करने की यह स्थिति नितांत अपूर्ण प्रतिबिम्बों से पूर्ण मानवों<ref>यथा आदम</ref> तथा दूसरे देवदूतों, [[संत|संतों]] आदि द्वारा सम्पन्न नितांत पूर्ण प्रतिबिम्बों तक विस्तृत है। ये अद्वैतावाद में पक्का विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे, जिसके अनुसार ईश्वर एवं जगत् निरपेक्ष सत्ता के दो सह-सम्बन्धी एवं पूरक तत्व हैं। इबने अरबी के पूर्व एक दूसरे महान् सूफी मंसूर ने 'मैं सत्य (एक मात्र) हूँ' का उद्घोष किया था और इस उद्घोष के लिए उनकी हत्या कर दी गई थी, क्योंकि अंधविश्वासियों के अनुसार उनका यह उद्घोष एक ईश्वर निंदात्मक कथन था। इबने अबरी मंसूर के विचारों से सहमत नहीं हो सके, क्योंकि इनके अनुसार वे विचार प्रतिपाद्य नहीं थे। इनके अनुसार मानव अपूर्ण एवं सीमित है एवं ईश्वर पूर्ण एवं असीमित है और मानव केवल 'एक सत्य' हो सकता है, 'एक मात्र सत्य' नहीं। | ||
दान्ते के स्वर्गारोहण के वर्णन को ध्यान में रखते हुए यह बहुतों का ख्याल है कि अरबी के काव्यात्मक तत्वशास्त्रीय सूफीवाद ने दान्ते को प्रभावित किया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि दान्ते का यह वर्णन जिसमें उन्होंने [[नक्षत्र]] शास्त्रीय सिद्धांतों को [[मुहम्मद]] की स्वर्ग यात्रा से सम्बद्ध किया है। [[मुस्लिम]] मताबलंबियों के एक महत्त्वपूर्ण विश्वास का घटक है। अपने विश्वदेवतावादी सिद्धांतों में इन्होंने मानव को दैनिक सार का अंकुर माना है, जो वास्तव में ईश्वर की ज्ञातव्य होने की इच्छा के कारण अस्तित्व में है। दैनिक सत्ता को अनुभव किये जाने की प्रक्रिया में चिन्तशील मानव अपने ही व्यक्तित्व में ब्रह्मांड की संरचना को प्रतिबिम्बित करता है। 'लोगोस' के सिद्धांत का उपयोग करते हुए इन्होंने उसको ब्रह्मांड में एक सृजनात्मक तत्व के रूप में स्वीकार किया है और उसका तादात्म्य मुहम्मद के आत्मन् से स्थापित किया है। | दान्ते के स्वर्गारोहण के वर्णन को ध्यान में रखते हुए यह बहुतों का ख्याल है कि अरबी के काव्यात्मक तत्वशास्त्रीय सूफीवाद ने दान्ते को प्रभावित किया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि दान्ते का यह वर्णन जिसमें उन्होंने [[नक्षत्र]] शास्त्रीय सिद्धांतों को [[मुहम्मद]] की स्वर्ग यात्रा से सम्बद्ध किया है। [[मुस्लिम]] मताबलंबियों के एक महत्त्वपूर्ण विश्वास का घटक है। अपने विश्वदेवतावादी सिद्धांतों में इन्होंने मानव को दैनिक सार का अंकुर माना है, जो वास्तव में ईश्वर की ज्ञातव्य होने की इच्छा के कारण अस्तित्व में है। दैनिक सत्ता को अनुभव किये जाने की प्रक्रिया में चिन्तशील मानव अपने ही व्यक्तित्व में ब्रह्मांड की संरचना को प्रतिबिम्बित करता है। 'लोगोस' के सिद्धांत का उपयोग करते हुए इन्होंने उसको ब्रह्मांड में एक सृजनात्मक तत्व के रूप में स्वीकार किया है और उसका तादात्म्य मुहम्मद के आत्मन् से स्थापित किया है। | ||
== | ==विचारधारा== | ||
इनकी कृतियां अंधविश्वासी धर्मशास्त्रियों द्वारा पूर्णरूप से उपेक्षित रहीं, तथापि इन्होंने परसियन रहस्यवादी कवियों तथा जमालउद्दीन रूमी (1207-1273) एवं नूरउद्दीन जामी (1414-1482) को महत्त्वपूर्ण सीमा तक प्रभावित किया है। | इनकी कृतियां अंधविश्वासी धर्मशास्त्रियों द्वारा पूर्णरूप से उपेक्षित रहीं, तथापि इन्होंने परसियन रहस्यवादी कवियों तथा जमालउद्दीन रूमी (1207-1273) एवं नूरउद्दीन जामी (1414-1482) को महत्त्वपूर्ण सीमा तक प्रभावित किया है। इबने अरबी का सूफी दर्शन ईश्वर की एकरूपता और सर्वव्यापकता के सिद्धांत पर आधारित है। यह सिद्धांत कुछ शब्दों में इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है: | ||
इबने अरबी का सूफी दर्शन ईश्वर की एकरूपता और सर्वव्यापकता के सिद्धांत पर आधारित है। यह सिद्धांत कुछ शब्दों में इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है: | |||
:महान है वह शक्ति जिसने सबको रचा और जो स्वयं उनके कण कण में समाई हुई है। | :महान है वह शक्ति जिसने सबको रचा और जो स्वयं उनके कण कण में समाई हुई है। | ||
उन्होंने [[अरबी भाषा|अरबी]] में लिखा है, जिसका अनुवाद है | |||
उन्होंने [[अरबी भाषा|अरबी]] में लिखा है, जिसका अनुवाद है 'हे ईश्वर, तूने सब वस्तुओं को उत्पन्न किया है। तू संग्रह करता है, उन सब वस्तुओं का जिन्हें तू उत्पन्न करता है। तू वह हर वस्तु उत्पन्न करता है, जिसका अस्तित्व तुझमें समाकर कभी नष्ट नहीं होता और इसी प्रकार तू ही संकीर्ण भी है और तू ही बृहत् भी।' यह सिद्धांत ईश्वर की एकरूपता और सर्वव्यापकता का ऐसा रूप है, जिसके अनुसार सारा विश्व इस वास्वतिकता का प्रतिबिम्ब मात्र है, जो उसके पीछे छिपा हुआ है और इस प्रकार के तत्व को अनुभव करने का एक मात्र ढंग सूफीयाना ध्यान है। | <blockquote>'हे ईश्वर, तूने सब वस्तुओं को उत्पन्न किया है। तू संग्रह करता है, उन सब वस्तुओं का जिन्हें तू उत्पन्न करता है। तू वह हर वस्तु उत्पन्न करता है, जिसका अस्तित्व तुझमें समाकर कभी नष्ट नहीं होता और इसी प्रकार तू ही संकीर्ण भी है और तू ही बृहत् भी।'</blockquote> | ||
यह सिद्धांत ईश्वर की एकरूपता और सर्वव्यापकता का ऐसा रूप है, जिसके अनुसार सारा विश्व इस वास्वतिकता का प्रतिबिम्ब मात्र है, जो उसके पीछे छिपा हुआ है और इस प्रकार के तत्व को अनुभव करने का एक मात्र ढंग सूफीयाना ध्यान है। | |||
====इबने अरबी के मतानुसार==== | |||
इबने अरबी का कहना है कि जहाँ ईश्वर एक ऐसी अखंड वास्तविकता है, जो हमारे विचारों और व्याख्यानों के घेरे से बाहर है, वहीं एक ऐसी हस्ती भी है, जिस पर विश्वास किया जा सकता है, जिससे मुहब्बत की जा सकती है। यह बात हालांकि इस्लामिक विचारधारा के अत्यन्त समीप है, परन्तु इसे (ईश्वर को) किसी विशेष शक्ल सिद्धांत या [[धर्म]] की सीमा में बांधा नहीं जा सकता। जिस किसी वस्तु की भी पूजा की जाती है, उसकी वास्तविकता इसके अलावा और कुछ भी नहीं है कि वह उन अनगिनत छवियों में से एक है, जिनके द्वारा ईश्वर अपने आपको प्रकट करता है। ईश्वर को केवल एक शक्ल-सूरत की सीमा में बांधना और अन्य सभी सूरतों से अलग अलग करना कुफ्र है। हर पूजने योग्य मूर्ति में उसके अस्तित्व को मान्यता दी गई है और इसी में धर्म की सही आत्मा छिपी हुई है। यह सार्वलौकिक धर्म जिसका उपदेश इबने अरबी ने दिया है, एक ऐसा धर्म है, जिसने सभी धर्मों को अपने में समेट लिया है, जिसके कारण सभी सिद्धांत एक दूसरे में इस प्रकार एकाकार हो गए हैं, जिस प्रकार सच्चा सर्वशक्तिमान सभी वस्तुओं को समेटकर उनको एकीकृत कर लेता है। इस विचार को इबने अरबी ने इस तरह प्रकट किया है- | इबने अरबी का कहना है कि जहाँ ईश्वर एक ऐसी अखंड वास्तविकता है, जो हमारे विचारों और व्याख्यानों के घेरे से बाहर है, वहीं एक ऐसी हस्ती भी है, जिस पर विश्वास किया जा सकता है, जिससे मुहब्बत की जा सकती है। यह बात हालांकि इस्लामिक विचारधारा के अत्यन्त समीप है, परन्तु इसे (ईश्वर को) किसी विशेष शक्ल सिद्धांत या [[धर्म]] की सीमा में बांधा नहीं जा सकता। जिस किसी वस्तु की भी पूजा की जाती है, उसकी वास्तविकता इसके अलावा और कुछ भी नहीं है कि वह उन अनगिनत छवियों में से एक है, जिनके द्वारा ईश्वर अपने आपको प्रकट करता है। ईश्वर को केवल एक शक्ल-सूरत की सीमा में बांधना और अन्य सभी सूरतों से अलग अलग करना कुफ्र है। हर पूजने योग्य मूर्ति में उसके अस्तित्व को मान्यता दी गई है और इसी में धर्म की सही आत्मा छिपी हुई है। यह सार्वलौकिक धर्म जिसका उपदेश इबने अरबी ने दिया है, एक ऐसा धर्म है, जिसने सभी धर्मों को अपने में समेट लिया है, जिसके कारण सभी सिद्धांत एक दूसरे में इस प्रकार एकाकार हो गए हैं, जिस प्रकार सच्चा सर्वशक्तिमान सभी वस्तुओं को समेटकर उनको एकीकृत कर लेता है। इस विचार को इबने अरबी ने इस तरह प्रकट किया है- | ||
:'मेरा हृदय हर एक छवि का बसेरा बन गया है। यह हिरनों के लिए एक चरागाह है, [[ईसाई]] पादरियों के लिए पूजा की वेदी, मूर्तिपूजकों के लिए मन्दिर, हाजियों के लिए [[काबा]] और तउरेत। मैं [[ | :'मेरा हृदय हर एक छवि का बसेरा बन गया है। यह हिरनों के लिए एक चरागाह है, [[ईसाई]] पादरियों के लिए पूजा की वेदी, मूर्तिपूजकों के लिए मन्दिर, हाजियों के लिए [[काबा]] और तउरेत। मैं [[क़ुरआन]] में प्रेम के धर्म को मानने वाला हूँ और उसी ओर चलता हूँ, जिस ओर उसका कारवाँ ले जाए, क्योंकि यही मेरा धर्म है और यही मेरा ईमान।' | ||
इबने अरबी के मतानुसार पूर्ण मनुष्य वह दर्पण है, जिसमें सारी खुदाई प्रतिबिम्बित होती है। वह सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सार है, इस [[पृथ्वी]] पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और एक ऐसी हस्ती है, जिसे ईश्वर के रूप में ढाला गया है। | इबने अरबी के मतानुसार पूर्ण मनुष्य वह दर्पण है, जिसमें सारी खुदाई प्रतिबिम्बित होती है। वह सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सार है, इस [[पृथ्वी]] पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और एक ऐसी हस्ती है, जिसे ईश्वर के रूप में ढाला गया है। | ||
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक= | {{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
{{cite book | last =अमानतुल्लाह | first =श्री एस.एच. | title =विश्व के प्रमुख दार्शनिक | edition = | publisher =वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली | location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिन्दी | pages =59 | chapter = | url = }} | |||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{दार्शनिक}} | |||
[[Category:कवि]] | [[Category:कवि]] | ||
[[Category:दार्शनिक]] | [[Category:दार्शनिक]] | ||
[[Category:सूफ़ी संत]] | |||
[[Category:साहित्यकार]] | |||
[[Category:चरित कोश]] | [[Category:चरित कोश]] | ||
[[Category:साहित्य कोश]] | [[Category:साहित्य कोश]] | ||
[[Category: | [[Category:सूफ़ी कोश]][[Category:धर्म कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
11:43, 3 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
इबने अरबी
| |
पूरा नाम | शेख अबू बकर मोईउद्दीन बिन अली |
अन्य नाम | शेखुल अकबर |
जन्म | 28 जुलाई, 1165 ई. |
जन्म भूमि | मरसिया, स्पेन |
मृत्यु | 10 नवंबर, 1240 ई. |
मृत्यु स्थान | दमिश्क, सीरिया |
कर्म-क्षेत्र | सूफी कवि, साधक और विचारक |
मुख्य रचनाएँ | इनकी कृतियों की विश्वसनीय संख्या आमतौर पर अधिक से अधिक 150 के क़रीब मानी जाती है। |
प्रसिद्धि | दार्शनिक |
अन्य जानकारी | इबने अरबी के मतानुसार पूर्ण मनुष्य वह दर्पण है, जिसमें सारी खुदाई प्रतिबिम्बित होती है। वह सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सार है, इस पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और एक ऐसी हस्ती है, जिसे ईश्वर के रूप में ढाला गया है। |
इबने अरबी (अंग्रेज़ी: Ibn Arabi, पूरा नाम:'शेख अबू बकर मोईउद्दीन बिन अली', जन्म: 28 जुलाई, 1165 ई.; मृत्यु: 10 नवंबर, 1240 ई.) अरबी के प्रसिद्ध सूफी कवि, साधक और विचारक थे। इबने अरबी के सम्बन्ध में लोगों की अलग-अलग धारणाएं हैं। कुछ व्यक्तियों के विचार से वे संन्यासी (वली कामिल) थे और अध्यात्म् पर उनका पूर्ण अधिकार था, जिसमें किसी की कोई आपत्ति नहीं हो सकती। दूसरी ओर एक ऐसा समुदाय भी था, जो उन्हें नास्तिक समझता था। इबने अरबी की पुस्तकों के सम्बन्ध में आज भी ऐसी ही परस्पर विरोधी धारणाएं प्रचलित हैं। ये 'शेखुल अकबर' के नाम से भी प्रसिद्ध है।
जीवन परिचय
17 रमजान सन् 560 हिजरी (28 जुलाई, 1165 ई.) मरसिया में पैदा हुए थे, जो उन्दलुस के दक्षिण पूर्व में स्थित है। उनका सम्बन्ध अरब के एक प्राचीन कबीले 'तय' से था। जगत् विख्यात दानी 'हातिमताई' इसी कबीले के थे। सन 568 हिजरी में इबने अरबी (अशबीलिया) चले गए, जो उन दिनों विद्या और साहित्य का बहुत बड़ा केन्द्र था। यहाँ वे तीस साल तक उस समय के जाने माने विद्वान् से ज्ञान प्राप्ति करते रहे। 38 वर्ष की आयु में वे पूर्वी देश चले गए और वहाँ से फिर कभी स्वदेश नहीं लौटे। सबसे पहले वे मिस्र पहुँचे और कुछ समय वहाँ व्यतीत किया। फिर समीपस्थ पूर्व और एशियाई कोचक (तुर्की) की लम्बी यात्रा में व्यस्त हो गए और इस सिलसिले में बैतुलमकदिस (पोरशलम) मक्का, बगदाद और हलब गए। अन्त में उन्होंने दमिश्क में स्थाई रूप से रहना प्रारम्भ कर दिया और वहीं पर सन् 638 हिजरी (1240 ई.) में उनका देहान्त हो गया। उन्हें कासीउन पर्वत में दफन कर दिया गया।
रचनाएँ
इबने अरबी की रचनाओं की संख्या और उनके खंडों के बारे में कुछ भी ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता। अब्दुर्रहमान जामी ने, एक बगदाद वासी वृद्ध सज्जन के कथनानुसार, इबने अरबी की पुस्तकों की संख्या 580 से अधिक बताई है और मिस्र के विद्वान् मुहम्मद रजब हिल्मी ने इनकी संख्या 284 आंकी है। इनकी कृतियों की विश्वसनीय संख्या आमतौर पर अधिक से अधिक 150 के क़रीब मानी जाती है। इबने अरबी ने अपनी रचनाओं का जो भंडार छोड़ा है, वह उस समय की सभी इस्लामिक शिक्षाओं को अपने में समेटे हुए हैं, परन्तु अधिकतर पुस्तकों का विषय सूफीवाद (तसब्बुफ) है। इन सभी पुस्तकों को समय की दृष्टि से क्रमबद्ध करना अत्यन्त कठिन है। इनमें से 'फुतुहोत-मक्कीया' अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, जो उनके परिपक्व मस्तिष्क का दर्पण है। उनके लिखने का ढंग प्रतीकात्मक और व्याख्या अत्यन्त गूढ़ है। कहीं-कहीं जान बूझकर कुछ बातों को उन्होंने दुर्बोध बनाने का प्रयास किया है। ऐसा इसलिए कि वे अपने बहदतुलवुजुदी के सिद्धांत को लोगों से छिपा सकें। फलत: इस्लामिक संसार में उनके सिद्धांतों के विषय में विरोधाभास पाया जाता है।
दृष्टिकोण
दार्शनिक दृष्टि से इनका सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण योगदान सार्वभौम मानव के प्रत्यय का परिमार्जन है। कहने की आवश्यकता नहीं कि यह संप्रत्यय सूफियों की कृतियों में शनै: शनै: पहले से ही प्रकट होने लग गया था। सार्वभौम (इन्सान-ए-कामिल) मानव का यह संप्रत्यय लोगोस के नव्य प्लोटोनिक प्रत्यय की भांति ईश्वर की सृजनात्मक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है एवं जगत् व ईश्वर के बीच मध्यस्थ शक्ति के रूप में क्रियाशील होने में सक्षम है। इस प्रकार सार्वभौम मानव ब्रह्मांड एवं मानव के मूल रूप का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक नमूना या आदर्श प्रस्तुत करता है, जिसके अनुरूप हो पाने के लिए मानव सतत प्रयत्नशील रह सकता है।
इनकी कृतियों में बहुत से पूर्ववर्ती महत्त्वपूर्ण दार्शनिकों एवं वैचारिक गतिविधियों के प्रभाव दिखते हैं। ये विशेष रूप से प्लेटो, अरस्तु, प्लाटीनस एवं नव्य प्लेटोवादियों से प्रभावित थे। इन्होंने अपने समय के अंधविश्वासपूर्ण धर्मशास्त्र को दर्शन से सम्बद्ध करने का प्रयास किया है। इनके द्वारा वर्णित सत्ता के घटक रूप एवं भाव हैं, जो अरस्तु के उपादान एवं आकार से सादृश्य रखते हैं। मानव ईश्वर को प्रतिबिम्बित करता है, जिसमें वह अपने को जैसा वह है, देख सकता है। ईश्वर के स्वभाव को प्रतिबिम्बित करने की यह स्थिति नितांत अपूर्ण प्रतिबिम्बों से पूर्ण मानवों[1] तथा दूसरे देवदूतों, संतों आदि द्वारा सम्पन्न नितांत पूर्ण प्रतिबिम्बों तक विस्तृत है। ये अद्वैतावाद में पक्का विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे, जिसके अनुसार ईश्वर एवं जगत् निरपेक्ष सत्ता के दो सह-सम्बन्धी एवं पूरक तत्व हैं। इबने अरबी के पूर्व एक दूसरे महान् सूफी मंसूर ने 'मैं सत्य (एक मात्र) हूँ' का उद्घोष किया था और इस उद्घोष के लिए उनकी हत्या कर दी गई थी, क्योंकि अंधविश्वासियों के अनुसार उनका यह उद्घोष एक ईश्वर निंदात्मक कथन था। इबने अबरी मंसूर के विचारों से सहमत नहीं हो सके, क्योंकि इनके अनुसार वे विचार प्रतिपाद्य नहीं थे। इनके अनुसार मानव अपूर्ण एवं सीमित है एवं ईश्वर पूर्ण एवं असीमित है और मानव केवल 'एक सत्य' हो सकता है, 'एक मात्र सत्य' नहीं।
दान्ते के स्वर्गारोहण के वर्णन को ध्यान में रखते हुए यह बहुतों का ख्याल है कि अरबी के काव्यात्मक तत्वशास्त्रीय सूफीवाद ने दान्ते को प्रभावित किया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि दान्ते का यह वर्णन जिसमें उन्होंने नक्षत्र शास्त्रीय सिद्धांतों को मुहम्मद की स्वर्ग यात्रा से सम्बद्ध किया है। मुस्लिम मताबलंबियों के एक महत्त्वपूर्ण विश्वास का घटक है। अपने विश्वदेवतावादी सिद्धांतों में इन्होंने मानव को दैनिक सार का अंकुर माना है, जो वास्तव में ईश्वर की ज्ञातव्य होने की इच्छा के कारण अस्तित्व में है। दैनिक सत्ता को अनुभव किये जाने की प्रक्रिया में चिन्तशील मानव अपने ही व्यक्तित्व में ब्रह्मांड की संरचना को प्रतिबिम्बित करता है। 'लोगोस' के सिद्धांत का उपयोग करते हुए इन्होंने उसको ब्रह्मांड में एक सृजनात्मक तत्व के रूप में स्वीकार किया है और उसका तादात्म्य मुहम्मद के आत्मन् से स्थापित किया है।
विचारधारा
इनकी कृतियां अंधविश्वासी धर्मशास्त्रियों द्वारा पूर्णरूप से उपेक्षित रहीं, तथापि इन्होंने परसियन रहस्यवादी कवियों तथा जमालउद्दीन रूमी (1207-1273) एवं नूरउद्दीन जामी (1414-1482) को महत्त्वपूर्ण सीमा तक प्रभावित किया है। इबने अरबी का सूफी दर्शन ईश्वर की एकरूपता और सर्वव्यापकता के सिद्धांत पर आधारित है। यह सिद्धांत कुछ शब्दों में इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है:
- महान है वह शक्ति जिसने सबको रचा और जो स्वयं उनके कण कण में समाई हुई है।
उन्होंने अरबी में लिखा है, जिसका अनुवाद है
'हे ईश्वर, तूने सब वस्तुओं को उत्पन्न किया है। तू संग्रह करता है, उन सब वस्तुओं का जिन्हें तू उत्पन्न करता है। तू वह हर वस्तु उत्पन्न करता है, जिसका अस्तित्व तुझमें समाकर कभी नष्ट नहीं होता और इसी प्रकार तू ही संकीर्ण भी है और तू ही बृहत् भी।'
यह सिद्धांत ईश्वर की एकरूपता और सर्वव्यापकता का ऐसा रूप है, जिसके अनुसार सारा विश्व इस वास्वतिकता का प्रतिबिम्ब मात्र है, जो उसके पीछे छिपा हुआ है और इस प्रकार के तत्व को अनुभव करने का एक मात्र ढंग सूफीयाना ध्यान है।
इबने अरबी के मतानुसार
इबने अरबी का कहना है कि जहाँ ईश्वर एक ऐसी अखंड वास्तविकता है, जो हमारे विचारों और व्याख्यानों के घेरे से बाहर है, वहीं एक ऐसी हस्ती भी है, जिस पर विश्वास किया जा सकता है, जिससे मुहब्बत की जा सकती है। यह बात हालांकि इस्लामिक विचारधारा के अत्यन्त समीप है, परन्तु इसे (ईश्वर को) किसी विशेष शक्ल सिद्धांत या धर्म की सीमा में बांधा नहीं जा सकता। जिस किसी वस्तु की भी पूजा की जाती है, उसकी वास्तविकता इसके अलावा और कुछ भी नहीं है कि वह उन अनगिनत छवियों में से एक है, जिनके द्वारा ईश्वर अपने आपको प्रकट करता है। ईश्वर को केवल एक शक्ल-सूरत की सीमा में बांधना और अन्य सभी सूरतों से अलग अलग करना कुफ्र है। हर पूजने योग्य मूर्ति में उसके अस्तित्व को मान्यता दी गई है और इसी में धर्म की सही आत्मा छिपी हुई है। यह सार्वलौकिक धर्म जिसका उपदेश इबने अरबी ने दिया है, एक ऐसा धर्म है, जिसने सभी धर्मों को अपने में समेट लिया है, जिसके कारण सभी सिद्धांत एक दूसरे में इस प्रकार एकाकार हो गए हैं, जिस प्रकार सच्चा सर्वशक्तिमान सभी वस्तुओं को समेटकर उनको एकीकृत कर लेता है। इस विचार को इबने अरबी ने इस तरह प्रकट किया है-
- 'मेरा हृदय हर एक छवि का बसेरा बन गया है। यह हिरनों के लिए एक चरागाह है, ईसाई पादरियों के लिए पूजा की वेदी, मूर्तिपूजकों के लिए मन्दिर, हाजियों के लिए काबा और तउरेत। मैं क़ुरआन में प्रेम के धर्म को मानने वाला हूँ और उसी ओर चलता हूँ, जिस ओर उसका कारवाँ ले जाए, क्योंकि यही मेरा धर्म है और यही मेरा ईमान।'
इबने अरबी के मतानुसार पूर्ण मनुष्य वह दर्पण है, जिसमें सारी खुदाई प्रतिबिम्बित होती है। वह सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सार है, इस पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और एक ऐसी हस्ती है, जिसे ईश्वर के रूप में ढाला गया है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
अमानतुल्लाह, श्री एस.एच. विश्व के प्रमुख दार्शनिक (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली, 59।
- ↑ यथा आदम
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख