शम्भाजी
शम्भाजी
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पूरा नाम | सम्भाजी राजे भोंसले |
अन्य नाम | शम्भुजी, शम्भु राजा |
जन्म | 14 मई, 1657 |
जन्म भूमि | पुरंदर क़िला, पुणे, महाराष्ट्र |
मृत्यु तिथि | 11 मार्च, 1689 (आयु- 31 वर्ष) |
मृत्यु स्थान | तुलापुर, पुणे, महाराष्ट्र |
पिता/माता | शिवाजी और सई बाई |
पति/पत्नी | येसुबाई |
उपाधि | छत्रपति |
शासन काल | 20 जुलाई 1680 से 11 मार्च 1689 तक |
शा. अवधि | 9 वर्ष |
धार्मिक मान्यता | हिन्दू धर्म |
पूर्वाधिकारी | शिवाजी |
उत्तराधिकारी | राजाराम |
वंश | मराठा |
अन्य जानकारी | धर्म के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले, हिंदवी स्वराज्य का विस्तार कर पूरे हिंदुस्तान में भगवा ध्वज फहराने की इच्छा रखने वाले शम्भाजी राजा इतिहास में अमर हो गए। |
शम्भाजी / शंभू राजे / शम्भुजी (अंग्रेज़ी: Sambhaji Bhosale, जन्म: 14 मई, 1657; मृत्यु: 11 मार्च, 1689) शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र और उत्तराधिकारी थे, जिसने 1680 से 1689 ई. तक राज्य किया। शम्भुजी आरम्भ से ही अभिमानी, क्रोधी एवं भोग विलासी हो गया था। अपनी मृत्यु के समय शिवाजी ने उसे पन्हाला के क़िले में क़ैद कर रखा था। शम्भुजी में अपने पिता की कर्मठता और दृढ़ संकल्प का अभाव था। वह विलास-प्रेमी था, किन्तु उसमें शौर्य की कमी न थी। 4 अप्रैल, 1680 ई. को शिवाजी की मृत्योपरान्त उनकी पत्नि सूर्याबाई ने अपने दस वर्षीय पुत्र राजाराम का अप्रैल, 1680 ई. में रायगढ़ महाराष्ट्र में राज्याभिषेक कर दिया, किन्तु शम्भुजी ने मराठा सेनापति हमीरराव मोहिते को अपने पक्ष में करके आक्रमण कर दिया। उसने सूर्याबाई एवं राजाराम को क़ैद कर लिया और रायगढ़ पर अधिकार करके 30 जुलाई, 1680 ई. को अपना राज्याभिषेक करवाया।
विषय सूची
- 1 शम्भाजी की नीति
- 2 शौर्यवान
- 2.1 स्वराज्य का दूसरा छत्रपति
- 2.2 विश्व के प्रथम बालसाहित्यकार
- 2.3 धर्म परिवर्तन के विरोध में कठोर नीति
- 2.4 हिंदुओं के शुद्धीकरण के लिए निरंतर सजग
- 2.5 पुर्तग़ालियों से मुकाबला
- 2.6 बहनोई गणोजी शिर्के की बेईमानी के कारण घेराव
- 2.7 घेराव तोड़ने का असफल प्रयास
- 2.8 अपनों की बेइमानी के कारण राज का घात
- 2.9 शम्भुजी को देखने के लिए मुग़ल सेना आतुर
- 2.10 प्रखर हिन्दू धर्माभिमानी
- 2.11 शारीरिक एवं मानसिक यातनाएँ
- 2.12 इतिहास में धर्म के लिए अमर
- 2.13 बलिदान के पश्चात् महाराष्ट्र में क्रांति
- 3 हत्या
- 4 टीका टिप्पणी और संदर्भ
- 5 बाहरी कड़ियाँ
- 6 संबंधित लेख
शम्भाजी की नीति
शम्भुजी ने नीलोपन्त को अपना पेशवा बनाया। उसने 1689 ई. तक शासन किया। कालान्तर में शम्भुजी के विरुद्ध राजाराम, सूर्याबाई और अन्नाजी दत्तो ने एक संगठन बना लिया, परन्तु शम्भुजी ने इस संघ को बर्बरतापूर्वक कुचलते हुए सौतेली माँ सूर्याबाई और कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण मराठा सरदारों की हत्या करवा दी। शम्भुजी ने उज्जैन के हिन्दी एवं संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान कविकलश को अपना सलाहकार नियुक्त किया। औरंगज़ेब के विद्रोही पुत्र अकबर को शरण देने के कारण शम्भुजी को मुग़ल सेनाओं के आक्रमण का सामना करना पड़ा। लगभग 9 वर्षों तक वह निरन्तर औरंगज़ेब की विशाल सेनाओं का सफलतापूर्वक सामना करता रहा।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ‘शिवपुत्र संभाजी’, लेखिका – डॉ. (श्रीमती) कमल गोखले
- ↑ राष्ट्र एवं धर्मके लिए आत्मबलिदान करनेवाले छत्रपति संभाजी महाराज ! (हिन्दी) हिन्दू जनजागृति समिति। अभिगमन तिथि: 31 जनवरी, 2015।