बालाजी बाजीराव
बालाजी बाजीराव
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पूरा नाम | बालाजी बाजीराव |
जन्म | 8 दिसम्बर, 1721 ई. |
मृत्यु तिथि | 23 जून, 1761 ई. |
पिता/माता | बाजीराव प्रथम |
प्रसिद्धि | मराठा पेशवा |
युद्ध | 'उदगिरि का युद्ध', 'पानीपत का युद्ध' |
पूर्वाधिकारी | बाजीराव प्रथम |
वंश | मराठा |
शासन काल | 1740 से 1761 ई. |
संबंधित लेख | मराठा, मराठा साम्राज्य, शाहजी भोंसले, शिवाजी, शम्भाजी, शाहू, पेशवा, बालाजी विश्वनाथ, बाजीराव प्रथम, बाजीराव द्वितीय, नाना फड़नवीस, दादाजी कोंडदेव, शिवाजी की शासन व्यवस्था |
अन्य जानकारी | बालाजी बाजीराव ने 1740 ई. में पेशवा का पद प्राप्त किया था। पद प्राप्ति के समय वह 18 वर्ष का नव-युवक था। इसी के समय में अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण हुआ था। |
बालाजी बाजीराव (अंग्रेज़ी: Balaji Bajirao, जन्म- 8 दिसम्बर, 1721 ई.; मृत्यु- 23 जून, 1761 ई.) बाजीराव प्रथम का ज्येष्ठ पुत्र था। वह पिता की मृत्यु के बाद पेशवा बना था। बालाजी विश्वनाथ के समय में ही पेशवा का पद पैतृक बन गया था। 1750 ई. हुई 'संगोली संधि' के बाद पेशवा के हाथ में सारे अधिकार सुरक्षित हो गये। अब 'छत्रपति' (राजा का पद) दिखावे भर का रह गया था। बालाजी बाजीराव ने मराठा शक्ति का उत्तर तथा दक्षिण भारत, दोनों ओर विस्तार किया। इस प्रकार उसके समय कटक से अटक तक मराठा दुदुम्भी बजने लगी। बालाजी ने मालवा तथा बुन्देलखण्ड में मराठों के अधिकार को क़ायम रखते हुए तंजौर प्रदेश को भी जीता। बालाजी बाजीराव ने हैदराबाद के निज़ाम को एक युद्ध में पराजित कर 1752 ई. में 'भलकी की संधि' की, जिसके तहत निज़ाम ने बरार का आधा भाग मराठों को दे दिया। बंगाल पर किये गये आक्रमण के परिणामस्वरूप अलीवर्दी ख़ाँ को बाध्य होकर उड़ीसा त्यागना पड़ा और बंगाल तथा बिहार से चौथ के रूप में 12 लाख रुपया वार्षिक देना स्वीकार करना पड़ा। 1760 ई. में उदगिरि के युद्ध में निज़ाम ने करारी हार खाई। मराठों ने 60 लाख रुपये वार्षिक कर का प्रदेश, जिसमें अहमदनगर, दौलताबाद, बुरहानपुर तथा बीजापुर नगर सम्मिलित थे, प्राप्त कर लिया।
विषय सूची
व्यक्तित्व
बालाजी बाजीराव ने 1740 ई. में पेशवा का पद प्राप्त किया था। पद प्राप्ति के समय वह 18 वर्ष का नव-युवक था। वह विश्राम तथा विलास का प्रेमी था। उसमें अपने पिता बाजीराव प्रथम के समान उच्चतर गुण नहीं थे, परन्तु वह योग्यता में किसी भी प्रकार से शून्य नहीं था। वह अपने पिता की तरह युद्ध संचालन, विशाल सेना के संगठन तथा सामग्री-संग्रह और युद्ध की सभी सामग्री की तैयारी में उत्साहपूर्वक लगा रहता था। उसने अपने पिता के कुछ योग्य एवं अनुभवी अफ़सरों की सेवाएँ प्राप्त की थीं।
साहू का दस्तावेज़
राजा साहू ने 1749 ई. में अपनी मृत्यु से पूर्व एक दस्तावेज़ रख छोड़ा था, जिसमें पेशवा को कुछ बंधनों के साथ राज्य का सर्वोच्च अधिकार सौंप दिया गया था। उसमें यह कहा गया था कि पेशवा राजा के नाम को सदा बनाये रखे तथा ताराबाई के पौत्र एवं उसके वंशजों के द्वारा शिवाजी के वंश की प्रतिष्ठा क़ायम रखे। उसमें यह आदेश भी था कि कोल्हापुर राज्य को स्वतंत्र समझना चाहिए तथा जागीरदारों के मौजूदा अधिकारों को मानना चाहिए। पेशवा को जागीरदारों के साथ ऐसे प्रबन्ध करने का अधिकार रहेगा, जो हिन्दू शक्ति के बढ़ाने तथा देवमन्दिरों, किसानों और प्रत्येक पवित्र अथवा लाभदायक वस्तु की रक्षा करने में लाभकारी हों।
ताराबाई की आपत्ति
साहू द्वारा जारी किये गए दस्तावेज़ पर ताराबाई ने गहरी आपत्ति प्रकट की। उसने दामाजी गायकवाड़ से मिलकर पेशवा बालाजी बाजीराव के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तथा युवक राजा को बन्दी बना लिया। परन्तु बालाजी बाजीराव ने अपने समस्त विपक्षियों को परास्त कर दिया। राजा, पेशवा बालाजी बाजीराव के हाथों में वस्तुत: क़ैदी होकर ही रहा और पेशवा अब से मराठा संघ का वास्तविक प्रधान बन बैठा।