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भांगरे वंश

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भांगरे महाराष्ट्र में पाई जाने वाली कोली जाती का गोत्र (वंश) है। ब्रिटिश कालीन कुछ दस्तावेजों में 'भांगरे' शब्द को कभी-कभी 'भांगरिया' भी लिखा गया है। भांगरे गोत्र के कोली मराठा काल से लेकर ब्रिटिश काल तक अपनी मौजूदगी दाख़िल करते आए हैं। भांगरे कोलीयों ने पेशवा के खिलाफ, हैदराबाद के निज़ाम, अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए थे। मराठा साम्राज्य में भांगरे कोली नायक और सरदार भी थे, लेकिन उनका उल्लेख मुख्यत विरोधी के रूप में ही मिला है।

  • भांगरे कोलीयों ने काफी उद्दंड इतिहास बनाया है, क्योंकि वो हमेशा से लड़ते ही आए हैं। जिनमें से एक तो यह है कि 1761 में गामाजी भांगरे नाम के एक साधारण से कोली ने हैदराबाद के निज़ाम के खिलाफ मोर्चा खोला था। गामाजी भांगरे ने अन्य कोलीयों के सिथ मिलकर निज़ाम से ट्रिम्बक किला छीन लिया और पेशवा के हवाले कर दिया। फलस्वरूप पेशवा ने भांगरे को काफी जमीन दी और 'देशमुख' की उपाधि से सम्मानित किया।
  • 1776 में खोड भांगरे नाम के एक कोली ने जावजी बोमले के साथ मिलकर पेशवा से तीन किले छीन लिए जो बाद में इंदौर के महाराजा तुकोजी होल्कर के कहने पर बापिस लोटा दिए।
  • 1844 में रामजी के बेटे बापूजी भांगरे ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए। बापूजी ने ब्रिटिश अधिकृत क्षेत्रों पर हमला किया और सरकारी खजाने को लूट लिया। सन 1845 में कैप्टन गिवर्न के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने हमला किया और उसे फांसी की सज़ा सुनाई गई।
  • सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी राघोजी भांगरे ने अंग्रेजों की कमर तोड़ कर रख दी। राघोजी ने सतारा के शासक छत्रपति प्रतापसिंह भोंसले को सतारा की राजगद्दी पर पुनःस्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राघोजी भांगरे ने अंग्रेजों का साथ दे रहे वनिया, पारसी और तेली लोगों के कान और नाक काट दिए थे। अंग्रेजी सरकार ने राघोजी पर 5000 का इनाम घोषित किया था। 2 मई, 1848 को ब्रिटिश सरकार ने राघोजी भांगरे को फांसी दे दी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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