रामाज्ञा प्रश्न

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रामाज्ञा प्रश्न
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कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक 'रामाज्ञा प्रश्न'
देश भारत
भाषा अवधी
विषय शुभाशुभ फल विचार
भाग सात-सात सप्तकों के सात सर्ग।
टिप्पणी कथानक की दृष्टि से 'रामाज्ञा-प्रश्न' 'रामचरितमानस' से कुछ विस्तारों में भिन्न है, जैसे- इसमें विवाह के पूर्व का राम-सीता का पुष्म-वाटिका प्रसंग नहीं है।

रामाज्ञा प्रश्न गोस्वामी तुलसीदास की एक ऐसी रचना है, जो शुभाशुभ फल विचार के लिए रची गयी है, किंतु यह फल-विचार तुलसीदास ने राम-कथा की सहायता से प्रस्तुत किया है। तुलसीदास की यह रचना दोहों में हैं। सात-सात सप्तकों के सात सर्गों के लिए पुस्तक खोलने पर जो दोहा मिलता है, उसके पूर्वार्द्ध में राम-कथा का कोई प्रसंग आता है और उत्तरार्ध में शुभाशुभ फल। कथा की दृष्टि से यह 'रामचरितमानस' से कुछ विस्तारों में भिन्न है। 'रामाज्ञा प्रश्न' पर 'वाल्मीकि रामायण' तथा 'रघुवंश' का अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव ज्ञात होता है।

भाषा तथा रचना काल

तुलसीदास द्वारा रचित 'रामाज्ञा-प्रश्न' की रचना अवधी भाषा में है। यह तुलसीदास जी की प्रारम्भिक कृतियों में से एक है। इसका रचना काल तथा तिथि निम्नलिखित दोहे में आती है-

"सगुन सत्य ससिनयन गुन अवधि अधिक नय बान।
होई सुफल सुभ जासु जस प्रीति प्रतीति प्रमान॥[1]

इस प्रकार रचना की तिथि संवत 1621 है।

संक्षिप्त कथा

कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपने परिचित गंगाराम ज्योतिषी के लिये 'रामाज्ञा-प्रश्न' की रचना की थी। गंगाराम ज्योतिषी काशी में प्रह्लादघाट पर रहते थे। वे प्रतिदिन सायं काल श्रीगोस्वामी जी के साथ संध्या करने गंगा के तट पर जाया करते थे। एक दिन गोस्वामी जी ने कहा- "आप पधारें, मैं आज गंगा किनारे नहीं जा सकूँगा।" गोस्वामी जी ने पूछा- "आप बहुत उदास दीखते हैं, कारण क्या है?" ज्योतिषीजी ने बतलाया- "राजघाट पर दो गढ़बार-वंशीय नरेश हैं, उनके राजकुमार आखेट के लिये गये थे, किन्तु लौटे नहीं। समाचार मिला है कि आखेट में जो लोग गये थे, उनमें से एक को बाघ ने मार दिया है। राजा ने मुझे आज बुलाया था। मुझसे पूछा गया कि उनका पुत्र सकुशल है या नहीं, किन्तु ये बात राजाओं की ठहरी, कहा गया है कि उत्तर ठीक निकला तो भारी पुरस्कार मिलेगा अन्यथा प्राणदण्ड दिया जायगा। मैं एक दिन का समय माँगकर घर आ गया हूँ, किन्तु मेरा ज्योतिष-ज्ञान इतना नहीं कि निश्चयात्मक उत्तर दे सकूँ। पता नहीं कल क्या होगा।" दु:खी ब्राह्मण पर तुलसीदास को दया आ गयी। उन्होंने कहा- "आप चिन्ता न करें। श्रीरघुनाथ जी सब मंगल करेंगे।"[2]

आश्वासन मिलने पर गंगाराम गोस्वामी जी के साथ संध्या करने गये। संध्या करके लौटने पर गोस्वामी जी यह ग्रन्थ लिखने बैठ गये। उस समय उनके पास स्याही नहीं थी। कत्था घोलकर सरकण्डे की कलम से छ: घंटे में यह ग्रन्थ गोस्वामी जी ने लिखा और गंगाराम को दे दिया। दूसरे दिन ज्योतिषी गंगाराम राजा के समीप गये। ग्रन्थ से शकुन देखकर उन्होंने बता दिया- "राजकुमार सकुशल हैं।" राजकुमार सकुशल थे। उनके किसी साथी को बाघ ने मारा था, किन्तु राजकुमार के लौटने तक राजा ने गंगाराम को बन्दी गृह में बन्द रखा। जब राजकुमार घर लौट आये, तब राजा ने ज्योतिषी गंगाराम को कारागार से छोड़ा, क्षमा माँगी और बहुत अधिक सम्पत्ति दी। वह सब धन गंगाराम ने गोस्वामी तुलसीदास के चरणों में लाकर रख दिया। गोस्वामी जी को धन का क्या करना था, किन्तु गंगाराम का बहुत अधिक आग्रह देखकर उनके सन्तोष के लिये दस हजार रुपये उसमें से लेकर उनसे हनुमान के दस मन्दिर गोस्वामी जी ने बनवाये। उन मन्दिरों में दक्षिणाभिमुख हनुमान जी की मूर्तियाँ हैं।

यह ग्रन्थ सात सर्गों में समाप्त हुआ है। प्रत्येक सर्ग में सात-सात सप्तक हैं और प्रत्येक सप्तक में सात-सात दोहे हैं। इसमें 'रामचरितमानस' की कथा वर्णित है; किन्तु क्रम भिन्न हैं। प्रथम सर्ग तथा चतुर्थ सर्ग में 'बालकाण्ड' की कथा है। द्वितीय सर्ग में 'अयोध्याकाण्ड' तथा कुछ 'अरण्यकाण्ड' की भी। तृतीय सर्ग में 'अरण्यकाण्ड' तथा 'किष्किन्धाकाण्ड' की कथा है। पञ्चम सर्ग में 'सुन्दरकाण्ड' तथा 'लंकाकाण्ड' की, षष्ठ सर्ग में राज्याभिषेक की कथा तथा कुछ अन्य कथाएँ हैं। सप्तम सर्ग में स्फुट दोहे हैं और शकुन देखने की विधि है।

कला कौशल

इसमें स्वभावत: वह परिपक्वता नहीं है, जो 'मानस' अथवा अन्य परवर्ती रचनाओं में है। प्रबन्ध-निर्वाह में तो त्रुटि प्रकट है। तीसरे सर्ग तक कथा राम जन्म से सुन्दर-काण्ड के वानरसम्पाती-मिलन तक आकर लौट पड़ती है और आगे के तीन सर्गों में पुन: रामजन्म से प्रारम्भ होकर सीता अवनि प्रवेश तक चलती है। सातवाँ सर्ग बहुत स्फुट ढंग पर लिखा गया है, उसके छठे सप्तक में राम के वनगमन की कथा आती है, किंतु शेष छ: सप्तकों में कथा न देकर राम भक्ति मात्र कक सहारा लिया गया है।

कथानक

कथानक की दृष्टि से 'रामाज्ञा-प्रश्न' 'रामचरितमानस' से कुछ विस्तारों में भिन्न है। जैसे इसमें विवाह के पूर्व का राम-सीता का पुष्म-वाटिका प्रसंग नहीं है। धनुर्भंग के बाद राम-विवाह का निमंत्रण लेकर जनक की ओर से दशरथ के पास शतानन्द जाते हैं। परशुराम-राम मिलन स्वयंवर-भूमि में न होकर बारात के लौटते समय मार्ग में होता है। वनवास में राम का प्रथम पड़ाव तमसा नदी के तट पर न होकर सुरसरि तट पर होता है। चित्रकूट में जनक का आगमन नहीं होता। सीता की खोज में जाने पर विभीषण से हनुमान की भेंट नहीं होती।

सेतुबंध के अवसर पर शिवलिंग की स्थापना का उल्लेख नहीं है। बालि के पुत्र अंगद को रावण के पास दूतत्त्व के लिए नहीं भेजा जाता है। साथ ही, इसमें सीता-राम के अयोध्या लौटने पर सीता के अवध प्रवेश तक के कुछ ऐसे कथा-प्रसंग आते हैं, जो 'मानस' में नहीं हैं। जैसे मृत ब्राह्मण बालक को जीवन-दान (6,516), बक-उलूक तथा यती-श्वान विवादों का समाधान (6-6-1-3), सीता-त्याग और लव-कुश जन्म (6-6-4-6) तथा (7-4) और सीता का अवनि-प्रवेश (6-7-6)। इन अंतरों पर विचार करने से ज्ञात होता है कि कवि पर 'रामाज्ञा प्रश्न' की रचना तक' 'प्रसन्न राघव नाटक', 'हनुमन्नाटक' तथा 'अध्यात्म रामायण' का उतना प्रभाव नहीं था, जितना बाद को 'मानस' की रचना के समय हुआ। 'रामाज्ञा-प्रश्न' पर 'वाल्मीकि रामायण' तथा 'रघुवंश' का अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव ज्ञात होता है।

रचना की तिथि

रचना की तिथि निश्चित होने से यह ज्ञात होता है कि 'मानस' के पूर्व राम-कथा का कौन सा रूप कवि के मानस में था, इसलिए इसकी सहायता से तुलसीदास की ऐसी रचनाओं के काल-निर्माण में सहायक हो सकी है, जिनमें रचना-तिथि नहीं आती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शशि=1, नयन=2, गुण=6, नय=4 तथा बाण= 5 और दोनों का आधिक्य (अंतर) =1
  2. रामाज्ञा-प्रश्न (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 07 अक्टूबर, 2013।

धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 525।

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