श्रीनग
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श्रीनग अथवा 'श्रीशैल' (श्रीपर्वत)। जैन तीर्थ के रूप में इसका उल्लेख 'तीर्थमालाचैत्यवंदन' में है-
'विंध्यस्थंभन शीट्ठमीट्ठ नगरे राजद्रहे श्रीनगे।'[1]
इन्हें भी देखें: जैन धर्म, तीर्थंकर एवं जैन दर्शन का उद्भव और विकास
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 919 |