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कैवल्य

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मोक्ष अथवा मुक्ति की वह अवस्था जब सब उपाधियों से रहित होकर केवल शुद्धमात्र का भाव रह जाता है।[1]

  • पातंजलि के योगसूत्र के अनुसार जब सत्व, रज और तम का कार्य समाप्त हो जाता है, सभा विकारों से रहित वह स्थिति 'कैवल्य' कहलाती है।
  • योगशास्त्र में इसका अर्थ है, आत्मा के वास्तविक स्वरूप का साक्षात्कार।
  • राम भक्ति साहित्य में भी मोक्ष के अर्थ में इसका प्रयोग है।
  • देश के अन्य दर्शनों में भी ज्ञान या विद्या द्वारा आत्मा के स्वरूप के साक्षात्कार को 'कैवल्य' की संज्ञा दी गई है।

इन्हें भी देखें: कैवल्य ज्ञान


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय संस्कृति कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: राजपाल एंड सन्ज, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 242 |

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