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द्विजेंद्र नारायण झा

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द्विजेंद्र नारायण झा
डी.एन. झा
पूरा नाम द्विजेंद्र नारायण झा
जन्म 1940
मृत्यु 4 फ़रवरी, 2021
मृत्यु स्थान नई दिल्ली
कर्म भूमि भारत
मुख्य रचनाएँ द मिथ ऑफ़ होली काउ, रीथिन्किंग हंदु आइडेन्टिडी
विद्यालय प्रेसिडेंसी कॉलेज, कोलकाता; पटना विश्वविद्यालय
प्रसिद्धि इतिहासकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी डी.एन. झा उन चार इतिहासकारों में से एक थे, जिन्होंने 'रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद: ए हिस्टॉरियन्स रिपोर्ट टू द नेशन' रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

द्विजेंद्र नारायण झा (अंग्रेज़ी: Dwijendra Narayan Jha, जन्म- 1940; मृत्यु- 4 फ़रवरी, 2021) प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय इतिहास के विशेषज्ञ माने जाते थे। वह 'भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद' के सदस्य भी रहे थे। प्रोफेसर डी.एन. झा साक्ष्यों की बदौलत अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे। उन्होंने प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय इतिहास पर काफ़ी काम किया। डी.एन. झा उन चार इतिहासकारों में से एक थे, जिन्होंने 'रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद: ए हिस्टॉरियन्स रिपोर्ट टू द नेशन' रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। अपनी इस रिपोर्ट में उन्होंने अपनी उस मान्यता को ख़ारिज किया था, जिसमें कहा जाता है कि बाबरी मस्जिद के नीचे एक हिंदू मंदिर था।

परिचय

डी.एन. झा ने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से इतिहास में ग्रेजुएट किया था और पटना विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री ली। अपने तीन दशक से अधिक के कॅरियर में डी.एन. झा प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास के सांप्रदायिक रंग के खिलाफ जीवन भर लड़ते रहे। वह साक्ष्यों की बदौलत भारतीय इतिहास की विकृतियों को उजागर करते रहे। दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग में चेयरमैन रहे प्रोफेसर डी.एन. झा को प्राचीन इतिहास और मध्यकालीन भारत पर विशेषज्ञता हासिल थी। उन्होंने हमेशा भारतीय इतिहास की विकृतियों को रेखांकित किया।

लेखन कार्य

  • प्रोफ़ेसर डी.एन. झा 'द मिथ ऑफ़ होली काउ' नाम की अपनी किताब के लिए चर्चा में रहे थे। ये किताब इतनी पॉपुलर हुई कि साल 2002 से लेकर साल 2017 के बीच इस किताब के 26 एडिशन छापे गए।
  • 'रीथिन्किंग हंदु आइडेन्टिडी' नाम से लिखी गई उनकी किताब भी काफी पढ़ी गई थी। इसमें उन्होंने लिखा था कि हिन्दू धर्म दूसरे धर्मों की अपेक्षा नया है और इसे असहिष्णु कहना मिथक होगा।
  • 'द मिथ ऑफ़ होली काउ' में उन्होंने साबित किया कि प्राचीन भारत में गोमांस खाया जाता था और प्राचीन भारत में स्वर्ण युग था, ये विचार उन्नीसवीं सदी के आख़िर में ही उपजा था।

स्वर्ण युग पर विचार

डी.एन. झा का कहना था कि ऐतिहासिक साक्ष्य ये कहते हैं कि भारतीय इतिहास में कोई स्वर्ण युग नहीं था। प्राचीन काल को हम सामाजिक सद्भाव और संपन्नता का दौर नहीं मान सकते। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि प्राचीन भारत में जाति व्यवस्था बहुत सख़्त थी। गैर-ब्राह्मणों पर सामाजिक, क़ानूनी और आर्थिक रूप से पंगु बनाने वाली कई पाबंदियां लगाई जाती थीं। ख़ासतौर से शूद्र या अछूत इसके शिकार थे। इसकी वजह से प्राचीन भारतीय समाज में काफ़ी तनातनी रहती थी।[1]

प्राचीन भारत में स्वर्ण युग था, ये विचार उन्नीसवीं सदी के आख़िर से उपजा था। बीसवीं सदी की शुरुआत में इतिहासकार ये कहने लगे कि गुप्त राजवंश ने राष्ट्रवाद को फिर से ज़िंदा किया। गुप्त शासकों के दौर को स्वर्ण युग कहा जाता है।

मृत्यु

प्रोफ़ेसर डी.एन. झा का निधन 4 फ़रवरी, 2021 को नई दिल्ली में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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