उमा संहिता में भगवान शिव के लिए तप, दान और ज्ञान का महत्त्व समझाया गया है। यदि निष्काम कर्म से तप किया जाए तो उसकी महिमा स्वयं ही प्रकट हो जाती है। अज्ञान के नाश से ही सिद्धि प्राप्त होती है। 'शिवपुराण' का अध्ययन करने से अज्ञान नष्ट हो जाता है। इस संहिता में विभिन्न प्रकार के पापों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कौन-से पाप करने से कौन-सा नरक प्राप्त होता है। पाप हो जाने पर प्रायश्चित्त के उपाय आदि भी इसमें बताए गए हैं।
पार्वती का चरित्र
'उमा संहिता' में देवी पार्वती के अद्भुत चरित्र तथा उनसे संबंधित लीलाओं का उल्लेख किया गया है। चूंकि पार्वती भगवान शिव के आधे भाग से प्रकट हुई हैं और भगवान शिव का आंशिक स्वरूप हैं, इसीलिए इस संहिता में उमा महिमा का वर्णन कर अप्रत्यक्ष रूप से भगवान शिव के ही अर्द्धनारीश्वर स्वरूप का माहात्म्य प्रस्तुत किया गया है। इसके आरम्भ में शिव-शिवा द्वारा श्रीकृष्ण को अभीष्ट वर देने की कथा है। तदंतर यमलोक की यात्रा, एक सौ चालीस नरकों, नरकों में गिराने वाले पापों और उसके फलस्वरूप मिलने वाली नरक यातनाओं का वर्णन कर मृत्यु के बाद के गूढ़ रहस्य का प्रतिपादन किया गया है।
तत्त्वज्ञान
वेद और पुराणों के स्वाध्याय, विविध प्रकार के दानों की महिमा, मृत्यु के लक्षणों, काल को जीतने के उपाय और विभिन्न सिद्धियों, साधनाओं की महिमा के वर्णन से इस पुराण का सूक्ष्म और मूल तत्त्वज्ञान परिलक्षित होता है। तत्त्वज्ञान के अतिरिक्त इस संहिता में भगवती उमा के कालिका, महालक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, शताक्षी, शाकम्भरी, भ्रामरी आदि लीलावतारों का वर्णन करके उनके द्वारा महिषासुर, मधु, कैटभ, शुम्भ, निशुम्भ, रक्तबीज आदि भयंकर एवं महापराक्रमी दैत्यों के संहार की कथाओं का उल्लेख किया गया है।[1]
इसके अतिरिक्त भगवती के क्रियायोग, विविध पुण्यमय व्रतों, विभिन्न उत्सवों, पूजन विधियों तथा उमा संहिता के श्रवण, पठन एवं चिंतन का विवेचन करके उनके माहात्म्य को दर्शाया गया है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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