तम्बाकू

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"निकोशियाना" (Nicotiana) जाति के पौधे की बारीक कटि हुई पत्तियाँ, जो कि खाने, पीने तथा सूँघने के काम आती हैं, तम्बाकू कहते हैं। इनका प्रभाव मादक तथा उत्तेजक होता है। किसी अन्य मादक या उत्तेजक पदार्थ की अपेक्षा तम्बाकू का प्रयोग आज सबसे अधिक मात्रा में किया जा रहा है।

उत्पत्ति तथा इतिहास

तम्बाकू की उत्पत्ति कब और कहाँ हुई, इसका ठीक पता नहीं चलता। कहते हैं कि, एक बार पुर्तग़ाल स्थित फ्राँसीसी राजदूत 'जॉन निकोट' ने अपनी रानी के पास तम्बाकू का बीज भेजा और तभी से इस पौधे का प्रवेश प्राचीन संसार में हुआ। निकोट के नाम को अमर रखने के लिये तम्बाकू का वानस्पतिक नाम 'निकोशियाना' रखा गया। तम्बाकू दक्षिणी अमेरिका का पौधा माना जाता है। इसकी खेती ऐतिहासि काल से हाती चली आ रही है। यद्यपि तम्बाकू अयनवृत्तीय पौधा है, तथापि इसकी सफल खेती अन्य स्थानों में भी होती है, क्योंकि यह अपने को विभिन्न प्रकार की भूमि तथा जलवायु के अनुकूल बना लेता है।

विभिन्न जातीयाँ

अब तक संसार में तम्बाकू की 60 विभिन्न जातियाँ मिल चुकी हैं। इनमें से 'निकोशियाना टबैकम' (tabacum) और 'निकोशियाना रस्टिका' की खेती बड़े पैमाने पर होती है। खेती तथा व्यापार की दृष्टि से केवल ये ही दो जातियाँ उपयोगी सिद्ध हुई हैं।

भारत में तम्बाकू का आगमन

ऐसा माना जाता है कि, 17वीं सदी में पुर्तग़ालियों द्वारा भारत में तम्बाकू की खेती का प्रारंभ हुआ। 17वीं, 18वीं सदियों में यूरोपीय यात्रियों ने भारत में तम्बाकू की खेती और उसके उपयोग का उल्लेख किया है। मुग़ल सम्राट जहाँगीर के समय में तम्बाकू की खेती का प्रचार नहीं हो पाया, क्योंकि उन्होंने घोषणा की थी, कि तम्बाकू पीनेवालों के होठों को काट दिया जाएगा। व्हाइटलॉ आइन्स्ली (Whitelaw Ainsle) की लिखी हुई 'मेटिरिया इंडिका' (Materia Indica) नामक पुस्तक में देशी तथा यूरोपीय डॉक्टरों द्वारा भारत में दवा संबंधी प्रयोजनों के लिये तम्बाकू के उपयोग के बारे में लिखा है। सामाजिक रुकावटों के अभाव के कारण अब धूम्रपान सरलता से अपनाई जानेवाली आदत बन गई है।

राजस्व प्राप्ति का साधन

आज विश्वभर में अमेरीका तथा चीन के बाद बड़े पैमाने पर तम्बाकू पैदा करने वाला तीसरा राष्ट्र भारत है। आज भारत तथा विश्व में अन्य राष्ट्रों की सरकारों के लिये तम्बाकू कर के रूप में कामधेनु के समान है। कृषक के लिये तम्बाकू बहुत ही मुख्य नक़द शस्य (फ़सल) है। प्रतिवर्ष अनुमानत: 45 करोड़ रुपए तम्बाकू की खेती से उत्पादकों को मिलते हैं। इसके अतिरिक्त केंद्रीय सरकार को 45 करोड़ रुपये तम्बाकू उत्पादन शुल्क, अनुमानत: दो करोड़ निर्यातकर और देश को 16 करोड़ की मूल्य का विदेशी विनिमय मिलता है। तम्बाकू की खेती करने वाले निर्माता, निर्यातक तथा अनगिनत मध्यवर्ती लोग इससे खूब लाभ उठा रहे हैं। इसके अतिरिक्त तम्बाकू के विभिन्न उद्योगों में लाखों व्यक्ति जीविका पा रहे हैं। भारत तम्बाकू में स्वयं समृद्ध है और अपनी पैदावार का 16-17 प्रतिशत दुनियाँ के विभिन्न भागों को निर्यात करता है।

भारत में तम्बाकू की पैदावार

सब फ़सलों का केवल 0.28 प्रतिशत भाग ही भारत में तम्बाकू की खेती होती है। सन 1959 में तम्बाकू की खेती का क्षेत्र 8,96,000 एकड़ था। इसमें अनुमानत: 5,89,00,000 पाउंड तम्बाकू पैदा हुआ। भारत में आंध्र प्रदेश तम्बाकू उत्पादन का प्रधान केन्द्र है। यहाँ तम्बाकू उत्पादन का 66 प्रतिशत तथा देश के वर्जीनिया सिगरेट तम्बाकू का 95 प्रतिशत पैदा होता है। तम्बाकू पैदा करने वाले अन्य क्षेत्र हैं: महाराष्ट्र, गुजरात, मद्रास, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, हैदराबाद, मैसूर, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब

भारत में तम्बाकू उत्पादन के क्षेत्र

भारत में तम्बाकू उत्पादन निम्नलिखित छह विभिन्न क्षेत्रों में केंद्रित है-

  1. गुँटूर क्षेत्र - इसमें आंध्र प्रदेश के गुंटूर, कृष्णा, पूर्वी गोदावरी तथा पश्चिमी गोदावरी ज़िले तथा हैदराबाद राज्य के कुछ परिक्षेत्र संम्मिलित हैं। इस क्षेत्र में गरम हवा तथा धूप से सिझाए गए विभिन्न प्रकार के वर्जीनिया तम्बाकू तथा अधिकतर नाटू (देशी) तम्बाकू भी उगाया जाता है। लंका नामक तम्बाकू पूर्वी गोदावरी तथा कृष्णा ज़िलों के द्वीपों में उगाया जाता है और छोटी पेंसिल के आकार की हाथ से लपेटी जानेवाली चुरुटों के निर्माण में मुख्यत: इसका उपयोग होता है।
  2. बिहार और बंगाल राज्य - बिहार के मुजफफ्फरपुर, दरभंगा, और पूर्णिया ज़िले तथा पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी, माल्दा, बहरामपुर और दिनाजपुर ज़िले इस प्रदेश में संमिलित हैं। इस क्षेत्र में हुक्के में पीने के लिये उपयोगी तम्बाकू की विविध जातियाँ उगाई जाती हैं। उनके स्थानीय नाम हैं - (१) विलायती, (२) मोतिहारी और (३) जाती।
  3. उत्तर-प्रदेश और पंजाब राज्य - इस क्षेत्र में उत्तर प्रदेश का फ़र्रुख़ाबाद ज़िला तथा पंजाब के जालंधर और फ़िरोज़पुर ज़िले संम्मिलित हैं। इस प्रदेश में हुक्के के लिये तथा खाने के लिये उपयोगी 'फलकतिया' जाति का तम्बाकू उगाया जाता हैं।
  4. चरोत्तर क्षेत्र - इसमें गुजरात राज्य के केरा ज़िले के आनंद, बीर्साद, पेटलाद और नडियाद तालुके संम्मिलित हैं। इस प्रदेश में विविध जातियों की बीड़ी का तम्बाकू उगाया जाता है।
  5. निपानी क्षेत्र - इसमें कोल्हापुर, सांगली तथा मिरज ज़िलों के साथ महाराष्ट्र राज्य के बेलगाँव तथा सतारा ज़िले भी संमिलित हैं। क्षेत्र में मुख्यत: बीड़ी का तम्बाकू उगाया जाता है।
  6. दक्षिणी मद्रास राज्य - इसमें मद्रास राज्य के मदुरा और कोयंवटूर ज़िले संम्मिलित हैं। इस क्षेत्र में सिगार में भरनेवाला, लपेटा जानेवाला तथा खानेवाला तम्बाकू अधिकतर उगाया जाता है।

एन. रस्टिका जाति के तम्बाकू का अधिकांश भाग हुक्के में पीने के लिये प्रयुक्त होता है। एन. टवैकम जाति का तम्बाकू सिगरेट, बीड़ी, सुँधनी और खानेवाले तम्बाकू के काम में आता है। वर्जीनिया तम्बाकू, जो अधिकतर आंध्र प्रदेश राज्य में उगाया जाता है और सिगरेट बनाने के काम में प्रयुक्त होता है, व्यापार की दृष्टि से प्रधान है। बर्ली तम्बाकू का सिगरेटों में संमिश्रण के लिये अधिकतर उपयोग किया जाता है। नाटू (देशी) तम्बाकू, जो की 'चुट्ट' नाम से प्रसिद्ध है, छोटे और हाथ से लपेटे जाने वाले चुरुट बनाने के काम आता है। इस तम्बाकू की हल्की तथा भूरे रंग की पत्तियों का सस्ती सिगरेटों के निर्माण में उपयोग किया जाता है। गहरे भूरे रंग की पत्तियाँ, जो की पाइप में पीने के तम्बाकू की विभिन्न किस्में तैयार करने के लिये यूनाइटेड किंगडम (विलायत) को निर्यात की जाती हैं। दक्षिण मद्रास के दिंडुकल, तिरूचिरापल्ली और कोयंबत्तुर जिलां में उगाया गया, प्रमुख जाति का तम्बाकू चुरुट और सिगार बनाने में तथा खानेवाला तम्बाकू तैयार करन में काम आता है।

तम्बाकू की खेती - यद्यपि तम्बाकू नाम से एक ही फसल का आभास होता है, तथापि भिन्न उपयागों में आनेवाले तंबाकुओं की खेती तथा सिझाई में इतना अंतर है कि उनके भिन्न भिन्न नाम रख दिए गए हैं, जैसे हुक्का तम्बाकू, गरम हवा से सिझाया सिगरेट तम्बाकू, धुप में सुखाया सिगरेट तम्बाकू इत्यादि। सबकी खेती तथा सिझाई का विस्तृत वर्णन स्थानाभाव के कारण यहाँ करना संभव नहीं। केवल सामान्य पद्धति तथा प्रत्येक जाति की विशेषताओं का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है।

तम्बाकू रोपित शस्य है, जिसकी सफलता उसकी पौधशाला पर निर्भर है। यदि सुद्दढ़ स्वस्थ और ए ही अवस्था के पौधे न लगाए जाएँगे तो फसल अच्छी न होती। पौधशाला की भूमि का चुनाव करते समय यह बात ध्यान में रखनी चाहए कि स्थान ऊँचाई पर हो, पानी का निकास अच्छा हो तथा सिंचाई का साधन निकट हो। हर साल एक ही भूमि पर पौधशाला नहीं लेनी चाहिए। भूमि से ४¢ ¢ , ६¢ ¢ उठी और ४ फुट चौड़ी पटरियां पर पौधशाला उगानी चाहिए। पटरियां के बीच १.१/२ फुट चौड़ा रास्ता आने जाने, पानी निकालने और काम करने के लिये छोड़ना चाहिए आवश्यकतानुसार बीज को लेकर, बालू या राख में मिलाकर, बोने के बाद हथेली से पीअ देना चाहिए। पानी देते रहना चाहिए। एन० टब्‌ैकम का आध सेर से एक सेर तक तथा एन० रस्टिका का दो से तीन सेर तक बीज एक एकड़ पौधशाला के लिये पर्याप्त होता है।






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टीका टिप्पणी और संदर्भ