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जब भी इस भूमि पर [[भगवान]] [[अवतार]] लेते हैं तो उनके साथ उनके पार्षद भी आते हैं। श्री सनातन गोस्वामी ऐसे ही [[संत]] रहे, जिनके साथ हमेशा [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] एवं [[राधा|श्रीराधारानी]] हैं। श्री सनातन गोस्वामी जी का जन्म सन 1466 ई. के लगभग हुआ था। सन 1514 [[अक्टूबर]] में [[चैतन्य महाप्रभु]] सन्न्यास रूप में नीलाचल में विराज रहे थे। श्रीकृष्ण के प्रेम रस से परिपूर्ण श्रीकृष्ण लीलास्थली मधुर [[वृन्दावन]] के [[दर्शन]] की, उनके [[हृदय]] सरोवर में एक भाव तरंग उठी। देखते-देखते वह इतनी विशाल और वेगवती हो गयी कि नीलाचल के प्रेमी [[भक्त|भक्तों]] के नीलाचल छोड़कर न जाने के विनयपूर्ण आग्रह का अतिक्रमण कर उन्हें बहा ले चली, [[वृन्दावन]] के पथ पर साथ चल पड़ी भक्तों की अपार भीड़ भावावेश में उनके साथ [[नृत्य]] और [[कीर्तन]] करती। | जब भी इस भूमि पर [[भगवान]] [[अवतार]] लेते हैं तो उनके साथ उनके पार्षद भी आते हैं। श्री सनातन गोस्वामी ऐसे ही [[संत]] रहे, जिनके साथ हमेशा [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] एवं [[राधा|श्रीराधारानी]] हैं। श्री सनातन गोस्वामी जी का जन्म सन 1466 ई. के लगभग हुआ था। सन 1514 [[अक्टूबर]] में [[चैतन्य महाप्रभु]] सन्न्यास रूप में नीलाचल में विराज रहे थे। श्रीकृष्ण के प्रेम रस से परिपूर्ण श्रीकृष्ण लीलास्थली मधुर [[वृन्दावन]] के [[दर्शन]] की, उनके [[हृदय]] सरोवर में एक भाव तरंग उठी। देखते-देखते वह इतनी विशाल और वेगवती हो गयी कि नीलाचल के प्रेमी [[भक्त|भक्तों]] के नीलाचल छोड़कर न जाने के विनयपूर्ण आग्रह का अतिक्रमण कर उन्हें बहा ले चली, [[वृन्दावन]] के पथ पर साथ चल पड़ी भक्तों की अपार भीड़ भावावेश में उनके साथ [[नृत्य]] और [[कीर्तन]] करती। | ||
{{main|सनातन गोस्वामी का परिचय}} | {{main|सनातन गोस्वामी का परिचय}} | ||
==शिक्षा== | |||
सनातन गोस्वामी के पितामह मुकुन्ददेव दीर्घकाल से गौड़ राज्य में किसी उच्च पद पर आसीन थे। वे रामकेलि में रहते थे। उनके पुत्र श्रीकुमार देव बाकलाचन्द्र द्वीप में रहते थे। कुमारदेव के देहावसान के पश्चात मुकुन्ददेव श्रीरूप-सनातन आदि को रामकेलि ले आये। उन्होंने रूप-सनातन की शिक्षा की सुव्यवस्था की। | |||
{{main|सनातन गोस्वामी का बाल्यकाल और शिक्षा}} | |||
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==वीथिका-गौड़ीय संप्रदाय== | ==वीथिका-गौड़ीय संप्रदाय== |
06:54, 10 दिसम्बर 2015 का अवतरण
सनातन गोस्वामी विषय सूची
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Madan Mohan temple, Vrindavan
जब भी इस भूमि पर भगवान अवतार लेते हैं तो उनके साथ उनके पार्षद भी आते हैं। श्री सनातन गोस्वामी ऐसे ही संत रहे, जिनके साथ हमेशा श्रीकृष्ण एवं श्रीराधारानी हैं। श्री सनातन गोस्वामी जी का जन्म सन 1466 ई. के लगभग हुआ था। सन 1514 अक्टूबर में चैतन्य महाप्रभु सन्न्यास रूप में नीलाचल में विराज रहे थे। श्रीकृष्ण के प्रेम रस से परिपूर्ण श्रीकृष्ण लीलास्थली मधुर वृन्दावन के दर्शन की, उनके हृदय सरोवर में एक भाव तरंग उठी। देखते-देखते वह इतनी विशाल और वेगवती हो गयी कि नीलाचल के प्रेमी भक्तों के नीलाचल छोड़कर न जाने के विनयपूर्ण आग्रह का अतिक्रमण कर उन्हें बहा ले चली, वृन्दावन के पथ पर साथ चल पड़ी भक्तों की अपार भीड़ भावावेश में उनके साथ नृत्य और कीर्तन करती।
शिक्षा
सनातन गोस्वामी के पितामह मुकुन्ददेव दीर्घकाल से गौड़ राज्य में किसी उच्च पद पर आसीन थे। वे रामकेलि में रहते थे। उनके पुत्र श्रीकुमार देव बाकलाचन्द्र द्वीप में रहते थे। कुमारदेव के देहावसान के पश्चात मुकुन्ददेव श्रीरूप-सनातन आदि को रामकेलि ले आये। उन्होंने रूप-सनातन की शिक्षा की सुव्यवस्था की।
वीथिका-गौड़ीय संप्रदाय
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गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा
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गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा
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गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा
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गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा
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गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा
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गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा
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गुरु पूर्णिमा पर भजन-कीर्तन करते श्रद्धालु, गोवर्धन, मथुरा