"ललिता पवार": अवतरणों में अंतर
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'''ललिता पवार''' ([[अंग्रेज़ी]]: जन्म | '''ललिता पवार''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Lalita Pawar'', जन्म- [[18 अप्रैल]], [[1916]]; मृत्यु- [[24 फ़रवरी]], [[1998]]) [[हिन्दी सिनेमा]] की प्रसिद्ध [[अभिनेत्री]] थीं। जिन्होंने अभिनय की यात्रा का सात दशक लंबा सफर तय किया। भारतीय नारी का जीवन जीते हुए एक संजीदा कलाकार जिन्होंने सिनेमा को कई यादगार फ़िल्में दीं। ‘जंगली’ की सख्त मां, ‘श्री 420’ की केला बेचने वाली, ‘[[आनंद (फ़िल्म)|आनंद]]’ की संवेदनशील मातृछवि और ‘अनाड़ी’ की मिसेज डिसूजा सहित अनेक चरित्रों की जीवंत छवियों को कैसे भूला जा सकता है। [[रामानन्द सागर]] द्वारा निर्मित 'रामायण' धारावाहिक में मंथरा की भूमिका को सजीव भी ललिता पवार ने ही बनाया था। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
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ललिता ने फ़िल्मी | ललिता ने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत बाल-कलाकार की तरह आर्यन फ़िल्म कंपनी के साथ की। मूक प्रोडक्शन वाली फ़िल्मों की मुख्य भूमिका वाले नारी-चरित्रों की भूमिकायें निभाता उनका फ़िल्मी सफर जारी रहा। उस समय फ़िल्मों में उनका स्क्रीन नाम 'अंबू' था। मूक स्टंट फ़िल्म ‘दिलेर जिगर’ उनकी प्रारंभिक सफलतम फ़िल्मों में शुमार है, जिसे ललिता के पति जी.पी. पवार ने निर्देशित किया था। अवाक फ़िल्मों से बोलती फ़िल्मों की यात्रा में सहभागी रहीं ललिता ने टॉकी फ़िल्मों में भी कई मुख्य भूमिकायें निभाईं, जिनमें शामिल हैं- ‘राजकुमारी’ (1938), ‘हिम्मत-ए-मर्द’ (1935) और ‘दुनिया क्या है’ (1937)। ‘दुनिया क्या है’ ललिता की ही निर्माण की हुई फ़िल्म थी।<ref name="srijangatha"/> | ||
====चरित्र प्रधान भूमिकाएँ==== | ====चरित्र प्रधान भूमिकाएँ==== | ||
मुख्य भूमिकायें निभातीं ललिता पवार की किस्मत ने पलटा खाया और एक दुर्घटना ने उनका चेहरा बिगाड़ दिया और उनकी आंखों की रोशनी भी खराब हो गई। लेकिन इन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अभिनय का साथ नहीं छोड़ते हुये चरित्र-प्रधान रोल करने लगीं। फ़िल्म ‘रामशास्त्री’(1944) में अपनी खराब हो चुकी बायीं आंख का कलात्मक प्रयोग क्रूर और परंपरागत सास की भूमिका में किया। उनकी यह भूमिका उनका सर्वाधिक मशहूर स्क्रीन इमेज बन गई। 1960 और 1970 के दशकों में ललिता बहुधा इस छवि में मिल जाती हैं।<ref name="srijangatha"/> | मुख्य भूमिकायें निभातीं ललिता पवार की किस्मत ने पलटा खाया और एक दुर्घटना ने उनका चेहरा बिगाड़ दिया और उनकी आंखों की रोशनी भी खराब हो गई। लेकिन इन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अभिनय का साथ नहीं छोड़ते हुये चरित्र-प्रधान रोल करने लगीं। फ़िल्म ‘रामशास्त्री’(1944) में अपनी खराब हो चुकी बायीं आंख का कलात्मक प्रयोग क्रूर और परंपरागत सास की भूमिका में किया। उनकी यह भूमिका उनका सर्वाधिक मशहूर स्क्रीन इमेज बन गई। [[1960]] और [[1970]] के दशकों में ललिता बहुधा इस छवि में मिल जाती हैं।<ref name="srijangatha"/> | ||
====बहुआयामी प्रतिभा==== | ====बहुआयामी प्रतिभा==== | ||
ललिता पवार बहुआयामी प्रतिभा संपन्न अभिनेत्री थीं जो ऐतिहासिक फ़िल्मों के इतिहास में शामिल हो गईं, पौराणिक फ़िल्मों संग देवी-देवताओं की मायावी छवियां रच गईं, हास्य फ़िल्मों की गुदगुदी बन गईं, थ्रिलर फ़िल्मों की सनसनी और सामाजिक फ़िल्मों की सामाजिक छवि बन गईं। ललिता ने हिंदी सिनेमा को अपनी कई यादगार छवियां दीं। ‘जंगली’ में [[शम्मी कपूर]] की माँ, ‘श्री 420’ में केला बेचने वाली, ‘[[आनंद (फ़िल्म)|आनंद]]’ की संवेदनशील मातृछवि और ‘अनाड़ी’ की गौरव-गुरूर मिसेज डिसूजा को जिसने देखा है वह ललिता पवार को कभी भुला नहीं सकता। ललिता पवार महज एक अभिनेत्री ही नहीं हिंदी सिनेमा के अपने सात दशक लंबे सफर की गाथा का एक हिस्सा थीं। मुख्य भूमिकायें निभातीं सुंदर अभिनेत्री ही नहीं नारी की तमाम अभिव्यक्तियों को अभिनीत करतीं सह-अभिनेत्री थीं।<ref name="srijangatha"/> | ललिता पवार बहुआयामी प्रतिभा संपन्न अभिनेत्री थीं जो ऐतिहासिक फ़िल्मों के इतिहास में शामिल हो गईं, पौराणिक फ़िल्मों संग देवी-देवताओं की मायावी छवियां रच गईं, हास्य फ़िल्मों की गुदगुदी बन गईं, थ्रिलर फ़िल्मों की सनसनी और सामाजिक फ़िल्मों की सामाजिक छवि बन गईं। ललिता ने हिंदी सिनेमा को अपनी कई यादगार छवियां दीं। ‘जंगली’ में [[शम्मी कपूर]] की माँ, ‘श्री 420’ में केला बेचने वाली, ‘[[आनंद (फ़िल्म)|आनंद]]’ की संवेदनशील मातृछवि और ‘अनाड़ी’ की गौरव-गुरूर मिसेज डिसूजा को जिसने देखा है वह ललिता पवार को कभी भुला नहीं सकता। ललिता पवार महज एक अभिनेत्री ही नहीं हिंदी सिनेमा के अपने सात दशक लंबे सफर की गाथा का एक हिस्सा थीं। मुख्य भूमिकायें निभातीं सुंदर अभिनेत्री ही नहीं नारी की तमाम अभिव्यक्तियों को अभिनीत करतीं सह-अभिनेत्री थीं।<ref name="srijangatha"/> | ||
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05:03, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
ललिता पवार
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पूरा नाम | अंबा लक्ष्मण राव शागुन |
प्रसिद्ध नाम | ललिता पवार |
जन्म | 18 अप्रैल, 1916 |
जन्म भूमि | नासिक, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 24 फरवरी, 1998 |
मृत्यु स्थान | पुणे, महाराष्ट्र |
अभिभावक | लक्ष्मण राव शागुन (पिता) |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनेत्री |
मुख्य फ़िल्में | ‘राजकुमारी’ (1938), ‘हिम्मत-ए-मर्द’ (1935), ‘श्री 420’ , ‘आनंद’ ‘अनाड़ी’, सुजाता, हम दोनो आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | फ़िल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री (1959), संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1961) |
नागरिकता | भारतीयता |
अन्य जानकारी | ललिता पवार ने लगभग 600 फ़िल्मों में काम किया और 'शो मस्ट गो ऑन' की भावना को जिया। |
ललिता पवार (अंग्रेज़ी: Lalita Pawar, जन्म- 18 अप्रैल, 1916; मृत्यु- 24 फ़रवरी, 1998) हिन्दी सिनेमा की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। जिन्होंने अभिनय की यात्रा का सात दशक लंबा सफर तय किया। भारतीय नारी का जीवन जीते हुए एक संजीदा कलाकार जिन्होंने सिनेमा को कई यादगार फ़िल्में दीं। ‘जंगली’ की सख्त मां, ‘श्री 420’ की केला बेचने वाली, ‘आनंद’ की संवेदनशील मातृछवि और ‘अनाड़ी’ की मिसेज डिसूजा सहित अनेक चरित्रों की जीवंत छवियों को कैसे भूला जा सकता है। रामानन्द सागर द्वारा निर्मित 'रामायण' धारावाहिक में मंथरा की भूमिका को सजीव भी ललिता पवार ने ही बनाया था।
जीवन परिचय
ललिता पवार (वास्तविक नाम: 'अंबा लक्ष्मण राव शागुन') ने नासिक के नाम से निकट येवले में 18 अप्रैल, 1916 को जन्म लिया। उन्होंने भारतीय सिनेमा में एक लंबा सफर तय किया। वे सिनेमा के आरंभिक दौर से लेकर आधुनिक समय तक की द्रष्टाऔर साक्षी थीं। मूक फ़िल्मों की मौन भाषा से लेकर बोलती फ़िल्मों के वाचाल जादू के दौर को उन्होंने देखा। भारतीय सिनेमा को परवान चढ़ते देखा। इस विकास-क्रम का एक हिस्सा बनीं। स्त्री-जीवन के विविध आयामों को पर्दे पर निभाया। बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक विभिन्न स्त्री-छवियों में ललिता घुल-मिल गईं। भारतीय नारी के हर एक चरित्र में ढल गईं। ललिता पवार हिंदी सिनेमा में भारतीय नारी जीवन की एक महान् कलाकार थीं। इस क्रम में एक परंपरागत सास की छवि को उन्होंने इतना बखूबी निभाया कि यह उनकी पहचान ही बन गई।[1]
फ़िल्मी कैरियर
ललिता ने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत बाल-कलाकार की तरह आर्यन फ़िल्म कंपनी के साथ की। मूक प्रोडक्शन वाली फ़िल्मों की मुख्य भूमिका वाले नारी-चरित्रों की भूमिकायें निभाता उनका फ़िल्मी सफर जारी रहा। उस समय फ़िल्मों में उनका स्क्रीन नाम 'अंबू' था। मूक स्टंट फ़िल्म ‘दिलेर जिगर’ उनकी प्रारंभिक सफलतम फ़िल्मों में शुमार है, जिसे ललिता के पति जी.पी. पवार ने निर्देशित किया था। अवाक फ़िल्मों से बोलती फ़िल्मों की यात्रा में सहभागी रहीं ललिता ने टॉकी फ़िल्मों में भी कई मुख्य भूमिकायें निभाईं, जिनमें शामिल हैं- ‘राजकुमारी’ (1938), ‘हिम्मत-ए-मर्द’ (1935) और ‘दुनिया क्या है’ (1937)। ‘दुनिया क्या है’ ललिता की ही निर्माण की हुई फ़िल्म थी।[1]
चरित्र प्रधान भूमिकाएँ
मुख्य भूमिकायें निभातीं ललिता पवार की किस्मत ने पलटा खाया और एक दुर्घटना ने उनका चेहरा बिगाड़ दिया और उनकी आंखों की रोशनी भी खराब हो गई। लेकिन इन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अभिनय का साथ नहीं छोड़ते हुये चरित्र-प्रधान रोल करने लगीं। फ़िल्म ‘रामशास्त्री’(1944) में अपनी खराब हो चुकी बायीं आंख का कलात्मक प्रयोग क्रूर और परंपरागत सास की भूमिका में किया। उनकी यह भूमिका उनका सर्वाधिक मशहूर स्क्रीन इमेज बन गई। 1960 और 1970 के दशकों में ललिता बहुधा इस छवि में मिल जाती हैं।[1]
बहुआयामी प्रतिभा
ललिता पवार बहुआयामी प्रतिभा संपन्न अभिनेत्री थीं जो ऐतिहासिक फ़िल्मों के इतिहास में शामिल हो गईं, पौराणिक फ़िल्मों संग देवी-देवताओं की मायावी छवियां रच गईं, हास्य फ़िल्मों की गुदगुदी बन गईं, थ्रिलर फ़िल्मों की सनसनी और सामाजिक फ़िल्मों की सामाजिक छवि बन गईं। ललिता ने हिंदी सिनेमा को अपनी कई यादगार छवियां दीं। ‘जंगली’ में शम्मी कपूर की माँ, ‘श्री 420’ में केला बेचने वाली, ‘आनंद’ की संवेदनशील मातृछवि और ‘अनाड़ी’ की गौरव-गुरूर मिसेज डिसूजा को जिसने देखा है वह ललिता पवार को कभी भुला नहीं सकता। ललिता पवार महज एक अभिनेत्री ही नहीं हिंदी सिनेमा के अपने सात दशक लंबे सफर की गाथा का एक हिस्सा थीं। मुख्य भूमिकायें निभातीं सुंदर अभिनेत्री ही नहीं नारी की तमाम अभिव्यक्तियों को अभिनीत करतीं सह-अभिनेत्री थीं।[1]
प्रमुख फ़िल्में

- राम शास्त्री (1944)
- श्री 420 (1955)
- मि. & मिसेज 55 (1955)
- नौ दो ग्यारह (1957)
- अनाड़ी (1959)
- सुजाता (1959)
- हम दोनो (1961)
- प्रोफ़ेसर (1962)
- दूसरी सीता (1974)
- आज का ये घर (1976)
- काली घटा (1980)
- फिर वो ही रात (1980)
- सौ दिन सास के (1980)
सम्मान और पुरस्कार
फ़िल्म ‘अनाड़ी’ (1959) में मिसेज डिसूजा की भूमिका में ललिता ने हिंदी सिनेमा की ईसाई माँ की रूपरेखा गढ़ डाली। इस भूमिका ने उन्हें 1959 का सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का पुरस्कार भी दिलाया। उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1961) भी मिला।
निधन
ललिता पवार की मृत्यु 24 फरवरी, 1998 को पुणे में हुई। ललिता पवार ने लगभग 600 फ़िल्मों में काम किया और 'शो मस्ट गो ऑन' की भावना को जिया। फ़िल्म उद्योग ने उन्हें ज्यादा पुरस्कार नहीं दिए और विस्मृत भी कर दिया है, परंतु उनकी जन्मभूमि में उनकी स्मृति में कुछ किया जाना चाहिए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 पांडेय, प्रमोद कुमार। ललिता पवार की कुछ बातें (हिन्दी) सृजनगाथा। अभिगमन तिथि: 16 नवम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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