"कार्नेलिया सोराबजी": अवतरणों में अंतर
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'''कार्नेलिया सोराबजी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Cornelia Sorabji'', जन्म- [[15 नवम्बर]], [[1866]], [[नासिक]]; मृत्यु- [[6 जुलाई]], [[1954]], [[लंदन]]) [[भारत]] की प्रथम महिला बैरिस्टर थीं। वे एक समाज सुधारक होने के साथ ही साथ एक लेखिका भी थीं। कार्नेलिया सोराबजी ऐसे समय में बैरिस्टर बनी थीं, जब इस क्षेत्र में महिलाओं को वकालत आदि का अधिकार प्राप्त नहीं था। अपनी प्रतिभा की बदौलत उन्होंने महिलाओं को क़ानूनी परामर्श देना आरंभ किया और महिलाओं के लिए वकालत का पेशा खोलने की मांग उठाई। | '''कार्नेलिया सोराबजी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Cornelia Sorabji'', जन्म- [[15 नवम्बर]], [[1866]], [[नासिक]]; मृत्यु- [[6 जुलाई]], [[1954]], [[लंदन]]) [[भारत]] की प्रथम महिला बैरिस्टर थीं। वे एक समाज सुधारक होने के साथ ही साथ एक लेखिका भी थीं। कार्नेलिया सोराबजी ऐसे समय में बैरिस्टर बनी थीं, जब इस क्षेत्र में महिलाओं को वकालत आदि का अधिकार प्राप्त नहीं था। अपनी प्रतिभा की बदौलत उन्होंने महिलाओं को क़ानूनी परामर्श देना आरंभ किया और महिलाओं के लिए वकालत का पेशा खोलने की मांग उठाई। | ||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
कार्नेलिया सोराबजी का जन्म 15 नवम्बर, सन 1866 को नासिक, | कार्नेलिया सोराबजी का जन्म 15 नवम्बर, सन 1866 को [[नासिक]], [[महाराष्ट्र]] में हुआ था। सन [[1892]] में वे नागरिक क़ानून की पढ़ाई करने के लिए विदेश गयीं और [[1894]] में [[भारत]] लौटीं। जब कार्नेलिया भारत लौटी, उस समय समाज में महिलाएं मुखर नहीं थीं और न ही महिलाओं को वकालत का अधिकार था। अपनी प्रतिभा की बदौलत उन्होंने महिलाओं को क़ानूनी परामर्श देना आरंभ किया और महिलाओं के लिए वकालत का पेशा खोलने की माँग उठाई। | ||
====शिक्षा==== | |||
कार्नेलिया सोराबजी ने [[1892]] में ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की थी लेकिन उन्हें डिग्री नहीं मिली। उस समय ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से महिलाओं की डिग्री नहीं दी जाती थी। [[1922]] में ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में महिलाओं को डिग्री मिलनी शुरू हुई। इस कारण वह [[ब्रिटेन]] में वकालत नहीं कर पाईं। इसके बाद वह [[भारत]] आकर कानूनी सलाहकार बन गईं और परदे में रहने वाली महिलाओं के हक़ के लिए लड़ीं। ऐसी महिलाओं को नर्सिंग का प्रशिक्षण दिलाया ताकि ये घर से बाहर निकल काम कर सकें। वह इलाहाबाद हाईकोर्ट बार में शामिल होने वाली पहली महिला भी रहीं। कार्नेलिया सोराबजी ने बॉम्बे विश्वविद्यालय से भी कानून की पढ़ाई पूरी की और [[बिहार]], [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] व [[ओडिशा]] में कई केस लड़े। | |||
==महिला अधिवक्ता== | ==महिला अधिवक्ता== | ||
कार्नेलिया सोराबजी की कोशिशों के फलस्वरूप ही अंतत: [[1907]] के बाद कार्नेलिया सोराबजी को [[बंगाल]], [[बिहार]], [[उड़ीसा]] और [[असम]] की अदालतों में सहायक महिला वकील का पद दिया गया। एक लम्बी जद्दोजहद के बाद [[1924]] में महिलाओं को वकालत से रोकने वाले क़ानून को शिथिल कर उनके लिए भी यह पेशा खोल दिया गया। सन [[1929]] में कार्नेलिया हाईकोर्ट की वरिष्ठ वकील के तौर पर सेवानिवृत्त हुयीं, पर उसके बाद महिलाओं में इतनी जागृति आ चुकी थी कि वे वकालत को एक पेशे के तौर पर अपनाकर अपनी आवाज मुखर करने लगी थीं।[[चित्र:Cornelia-Sorabji-Google-Doodle.jpg|thumb|left|कार्नेलिया सोराबजी पर जारी [[गूगल]] का डूडल]] | |||
कार्नेलिया सोराबजी की कोशिशों के फलस्वरूप ही अंतत: [[1907]] के बाद कार्नेलिया सोराबजी को [[बंगाल]], [[बिहार]], [[उड़ीसा]] और [[असम]] की अदालतों में सहायक महिला वकील का पद दिया गया। एक लम्बी जद्दोजहद के बाद [[1924]] में महिलाओं को वकालत से रोकने वाले क़ानून को शिथिल कर उनके लिए भी यह पेशा खोल दिया गया। सन [[1929]] में कार्नेलिया हाईकोर्ट की वरिष्ठ वकील के तौर पर सेवानिवृत्त हुयीं, पर उसके बाद महिलाओं में इतनी जागृति आ चुकी थी कि वे वकालत को एक पेशे के तौर पर अपनाकर अपनी आवाज मुखर करने लगी थीं। | |||
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12:40, 16 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
कार्नेलिया सोराबजी
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पूरा नाम | कार्नेलिया सोराबजी |
जन्म | 15 नवम्बर, 1866 |
जन्म भूमि | नासिक, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 6 जुलाई, 1954 |
मृत्यु स्थान | लंदन |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | न्यायपालिका |
प्रसिद्धि | प्रथम महिला अधिवक्ता |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | विधि आयोग, भारत के मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय |
अन्य जानकारी | कार्नेलिया सोराबजी ने ही सर्वप्रथम महिलाओं को क़ानूनी परामर्श देना आरंभ किया और महिलाओं के लिए वकालत का पेशा खोलने की माँग उठाई। |
कार्नेलिया सोराबजी (अंग्रेज़ी: Cornelia Sorabji, जन्म- 15 नवम्बर, 1866, नासिक; मृत्यु- 6 जुलाई, 1954, लंदन) भारत की प्रथम महिला बैरिस्टर थीं। वे एक समाज सुधारक होने के साथ ही साथ एक लेखिका भी थीं। कार्नेलिया सोराबजी ऐसे समय में बैरिस्टर बनी थीं, जब इस क्षेत्र में महिलाओं को वकालत आदि का अधिकार प्राप्त नहीं था। अपनी प्रतिभा की बदौलत उन्होंने महिलाओं को क़ानूनी परामर्श देना आरंभ किया और महिलाओं के लिए वकालत का पेशा खोलने की मांग उठाई।
परिचय
कार्नेलिया सोराबजी का जन्म 15 नवम्बर, सन 1866 को नासिक, महाराष्ट्र में हुआ था। सन 1892 में वे नागरिक क़ानून की पढ़ाई करने के लिए विदेश गयीं और 1894 में भारत लौटीं। जब कार्नेलिया भारत लौटी, उस समय समाज में महिलाएं मुखर नहीं थीं और न ही महिलाओं को वकालत का अधिकार था। अपनी प्रतिभा की बदौलत उन्होंने महिलाओं को क़ानूनी परामर्श देना आरंभ किया और महिलाओं के लिए वकालत का पेशा खोलने की माँग उठाई।
शिक्षा
कार्नेलिया सोराबजी ने 1892 में ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की थी लेकिन उन्हें डिग्री नहीं मिली। उस समय ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से महिलाओं की डिग्री नहीं दी जाती थी। 1922 में ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में महिलाओं को डिग्री मिलनी शुरू हुई। इस कारण वह ब्रिटेन में वकालत नहीं कर पाईं। इसके बाद वह भारत आकर कानूनी सलाहकार बन गईं और परदे में रहने वाली महिलाओं के हक़ के लिए लड़ीं। ऐसी महिलाओं को नर्सिंग का प्रशिक्षण दिलाया ताकि ये घर से बाहर निकल काम कर सकें। वह इलाहाबाद हाईकोर्ट बार में शामिल होने वाली पहली महिला भी रहीं। कार्नेलिया सोराबजी ने बॉम्बे विश्वविद्यालय से भी कानून की पढ़ाई पूरी की और बिहार, बंगाल व ओडिशा में कई केस लड़े।
महिला अधिवक्ता
कार्नेलिया सोराबजी की कोशिशों के फलस्वरूप ही अंतत: 1907 के बाद कार्नेलिया सोराबजी को बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम की अदालतों में सहायक महिला वकील का पद दिया गया। एक लम्बी जद्दोजहद के बाद 1924 में महिलाओं को वकालत से रोकने वाले क़ानून को शिथिल कर उनके लिए भी यह पेशा खोल दिया गया। सन 1929 में कार्नेलिया हाईकोर्ट की वरिष्ठ वकील के तौर पर सेवानिवृत्त हुयीं, पर उसके बाद महिलाओं में इतनी जागृति आ चुकी थी कि वे वकालत को एक पेशे के तौर पर अपनाकर अपनी आवाज मुखर करने लगी थीं।

निधन
यद्यपि 6 जुलाई, 1954 में कार्नेलिया सोराबजी का देहावसान हो गया, जब वह लंदन में थीं, पर आज भी उनका नाम वकालत जैसे जटिल और प्रतिष्ठित पेशे में महिलाओं की बुनियाद है।
गूगल का डूडल द्वारा सम्मान
इंटरनेट सर्च इंजन गूगल ने भी भारत की प्रथम महिला वकील कार्नेलिया सोराबजी को 15 नवम्बर, 2017 को 151वीं जयंती पर डूडल बनाकार श्रद्धांजलि दी।
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