वाई. वी. चंद्रचूड़
वाई. वी. चंद्रचूड़
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पूरा नाम | यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ |
जन्म | 12 जुलाई, 1920 |
जन्म भूमि | पूना, बम्बई प्रेसीडेंसी (आज़ादी पूर्व) |
मृत्यु | 14 जुलाई, 2008 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
पति/पत्नी | प्रभा |
संतान | पुत्री- निर्मला पुत्र- डी. वाई. चंद्रचूड़ |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | न्यायाधीश |
पद | मुख्य न्यायाधीश, भारत- 22 फ़रवरी, 1978 से 11 जुलाई, 1985 तक |
विद्यालय | आईएलएस लॉ कॉलेज, पुणे |
संबंधित लेख | भारत के मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय |
द्वारा नियुक्त | नीलम संजीव रेड्डी |
पूर्वाधिकारी | एम. हमीदुल्ला बेग |
उत्तराधिकारी | प्रफुल्लचंद नटवरलाल भगवती |
अन्य जानकारी | वाई. वी. चंद्रचूड़ के नाम सबसे लंबे समय तक देश का मुख्य न्यायाधीश रहने का रिकॉर्ड दर्ज है। वह 7 साल 4 महीने तक मुख्य न्यायाधीश रहे थे। |
यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ (अंग्रेज़ी: Yeshwant Vishnu Chandrachud, जन्म- 12 जुलाई, 1920; मृत्यु- 14 जुलाई, 2008) भारत के भूतपूर्व 16वें मुख्य न्यायाधीश थे। वह 22 फ़रवरी, 1978 से 11 जुलाई, 1985 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे। इस प्रकार वह सबसे ज़्यादा समय तक भारत के मुख्य न्यायाधीश पद पर रहे। वाई. वी. चंद्रचूड़ के पुत्र डी. वाई. चंद्रचूड़ भी उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश हैं। वह नवम्बर 2022 में यू. यू. ललित के सेवानिवृत्त होने के बाद देश के मुख्य न्यायाधीश का पद सम्भालेंगे।
परिचय
जस्टिस वाई. वी. चंद्रचूड़ का जन्म 12 जुलाई, 1920 को पूना (अब पुणे) में हुआ था। उन्होंने बम्बई (अब मुंबई) स्थित एलफ़िंस्टन कॉलेज से इतिहास और अर्थशास्त्र से स्नातक किया था और बाद में प्रतिष्ठित आईएलएस लॉ कॉलेज, पुणे से कानून की डिग्री हासिल की। वाई. वी. चंद्रचूड़ सन 1943 में बम्बई उच्च न्यायालय में बतौर एक वकील के रूप में दाखिल हुए थे। बाद में उन्हें बम्बई उच्च न्यायालय में बतौर न्यायाधीश नियुक्त किया गया। सन 1972 में वह सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत हुए। वह सात साल और चार महीने तक भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे। यह कार्यकाल किसी भी मुख्य न्यायाधीश का अब तक का सबसे लम्बा कार्यकाल है। वाई. वी. चंद्रचूड़ 1985 में सेवानिवृत्त हो गये।
लंबे समय तक मुख्य न्यायाधीश
वाई. वी. चंद्रचूड़ के नाम सबसे लंबे समय तक देश का मुख्य न्यायाधीश रहने का रिकॉर्ड दर्ज है। वह 7 साल 4 महीने तक मुख्य न्यायाधीश रहे थे। उन्हें 'आयरन हैंड्स' के नाम से भी जाना जाता है। अपने कार्यकाल में उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले दिए। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी को जेल भेजा। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को नजरअंदाज करते हुए मुस्लिम महिलाओं को पति से गुजारा-भत्ता लेने का हक दिया।[1]
किस्सा कुर्सी का
जस्टिस वाई. वी. चंद्रचूड़ को प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता सरकार के कार्यकाल के दौरान भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने 'किस्सा कुर्सी का' मामले में संजय गांधी को जेल भेज दिया था। 'किस्सा कुर्सी का' राजनीति पर व्यंग्य करती हुई फिल्म थी। इसका निर्देशन अमृत नाहटा ने किया था। अमृत नाहटा सांसद भी थे। यह फिल्म इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी की राजनीति पर एक व्यंग्य थी। आपात काल के दौरान भारत सरकार ने इस फिल्म पर बैन लगा दिया था। इसके सभी प्रिंट जब्त कर लिए गए थे। जब कुछ साल बाद इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार दोबारा सत्ता में आई तो जस्टिस वाई. वी. चंद्रचूड़ उसके प्रबल विरोधी बन गए। उन्हें न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए जाना जाता है।
ऐतिहासिक निर्णय
- मिनर्वा मिल्स लिमिटेड बनाम भारत सरकार [(1980) 3 एससीसी 625] - इस मामले में वाई. वी. चंद्रचूड़ ने यह तय किया था कि फंडामेंटल राइट्स और डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स के बीच संतुलन कैसे हासिल किया जाना है।[1]
- गुरबख्श सिंह सिब्बिया बनाम पंजाब सरकार [(1980) 2 एससीसी 565] - वाई. वी. चंद्रचूड़ ने मामले में आपराधिक कानून के प्रति अपनी सहानुभूति दिखाई थी। इस दौरान उन्होंने अग्रिम जमानत को लेकर अहम टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि अग्रिम जमानत लेने का फैसला उन जजों पर छोड़ देना चाहिए जिनके पास समझदारी भरा निर्णय लेने का अनुभव है।
- मो. अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम [(1985) 2 एससीसी 556] - यह फैसला कई मामलों में नजीर बनता रहा है। वाई. वी. चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाया था कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं सिविल प्रोसीजर कोड के तहत पतियों से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार हैं। यह मुस्लिम पर्सनल लॉ को दरकिनार करता था।
- ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन [(1985) 3 एससीसी 545] - इस मामले में वाई. वी. चंद्रचूड़ ने संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का विस्तार झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के लिए किया था। अपना फैसला सुनाते हुए उन्होंने कहा था कि उनके सिर पर छत का अधिकार है।
- हेबियस कॉर्पस केस [(1976) 2 एससीसी 521] - यह केस ए.डी.एम. जलबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला से जुड़ा था। अपने समय का यह मशहूर लेकिन विवादित जजमेंट था। मामले में वाई. वी. चंद्रचूड़ ने न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती के साथ फैसला दिया था कि इमरजेंसी के दौरान जीवन के अधिकार को भी निलंबित किया जा सकता है।[1]
मृत्यु
जस्टिस वाई. वी. चंद्रचूड़ ने 14 जुलाई, 2008 को बॉम्बे अस्पताल में अंतिम सांस ली थी। उनकी पत्नी का नाम प्रभा है। बेटे डी. वाई. चंद्रचूड़ के अलावा उनके निर्मला नाम की बेटी भी है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 नवंबर में डीवाई चंद्रचूड़ संभालेंगे सुप्रीम कोर्ट की कमान... (हिंदी) navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 03 सितंबर, 2021।
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