पी. सी. वैद्य

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पी. सी. वैद्य
पी. सी. वैद्य
पूरा नाम प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य
जन्म 23 मई, 1918
जन्म भूमि शाहपुर, ज़िला जूनागढ़, गुजरात
मृत्यु 12 मार्च, 2010
मृत्यु स्थान अहमदाबाद, गुजरात
पति/पत्नी विद्यादेवी वैद्य
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र भौतिक विज्ञान, गणित
विद्यालय बम्बई विश्वविद्यालय

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय

प्रसिद्धि गणितज्ञ, शिक्षाविद
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य ने विष्णु वासुदेव नार्लीकर के दिशा-निर्देशन में सापेक्षता सिद्धांत पर शोधकार्य शुरू कर दिया तथा ‘वैद्य सॉल्यूशन’ प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त की प्रासंगिकता को मान्यता साठ के दशक में मिली।

प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य (अंग्रेजी: Prahalad Chunnilal Vaidya, जन्म- 23 मई, 1918; मृत्यु- 12 मार्च, 2010) भारत के उन गिने-चुने गणितज्ञों में से एक रहे, जिन्होंने गणित के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण व दूरगामी योगदान दिया था। वह न सिर्फ एक मशहूर गणितज्ञ थे बल्कि एक शिक्षाविद भी थे। वे चाहते थे और प्रयास करते थे कि गणित बच्चों के लिए सुगम व रुचिकर बने। वे मानते थे कि गणित सिखाना शायद कठिन है, मगर गणित सीखना कठिन नहीं है क्योंकि गणित तो हमारी संस्कृति का अंग है।

परिचय

प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य का जन्म 23 मई, 1918 को गुजरात के जूनागढ़ जिले के शाहपुर में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा भावनगर में संपन्न हुई। गणित में विशेष रुचि होने के कारण उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय से अनुप्रयुक्त गणित में विशेषज्ञता के साथ एम.एस.सी. की डिग्री प्राप्त की। प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य अपने समय के प्रसिद्ध भौतिकविद और शिक्षाविद विष्णु वासुदेव नार्लीकर से बहुत प्रभावित थे।[1]

'वैद्य सॉल्यूशन'

उस दौर में विष्णु वासुदेव नार्लीकर के साथ कार्य करने वाले शोधार्थियों के समूह की पहचान सापेक्षता केन्द्र के रूप में विख्यात हो चुकी थी। प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य भी उनके दिशा-निर्देश में इस क्षेत्र में शोधकार्य करना चाहते थे। इसलिए वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय गए। वहां उन्होंने विष्णु वासुदेव नार्लीकर के दिशा-निर्देशन में सापेक्षता सिद्धांत पर शोधकार्य शुरू कर दिया तथा ‘वैद्य सॉल्यूशन’ प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त की प्रासंगिकता को मान्यता साठ के दशक में मिली, जब खगोल-विज्ञानियों ने ऊर्जा के घने, मगर शक्तिशाली उत्सर्जकों की खोज की। जैसे ही सापेक्षतावादी खगोल भौतिकी को मान्यता मिली, वैसे ही ‘वैद्य सॉल्यूशन’ को सहज ही अपना स्थान हासिल हो गया और विज्ञान के क्षेत्र में प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य को ख्याति मिली।

शिक्षाविद

प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य एक मशहूर गणितज्ञ होने के साथ ही एक शिक्षाविद भी थे। वह चाहते थे कि गणित बच्चों के लिए सुगम व रुचिकर बने। इसके लिए उन्होंने अनेक प्रयास किए। उनका मानना था कि गणित सिखाना शायद कठिन है, मगर गणित सीखना कठिन नहीं है क्योंकि यह हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। उन्होंने गुजराती तथा अंग्रेज़ी में विज्ञान और गणित की कई प्रसिद्ध पुस्तकों का लेखन किया, जैसे, ‘अखिल ब्राह्मांडमैन’, जिसका अर्थ है सम्पूर्ण ब्रह्मांड में, तथा ‘व्हाट इज मॉडर्न मैथमेटिक्स’।

वर्ष 1947 तक प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य ने सूरत, राजकोट, मुम्बई आदि जगहों पर गणित के शिक्षक के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने अपनी शिक्षा भी जारी रखी। वर्ष 1948 में उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय से अपनी पी.एच.डी. पूरी कर ली। अपना रिसर्च कार्य उन्होंने नव स्थापित टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान से किया। यहीं उनकी मुलाकात प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा से हुई थी।[1]

समर्पित शिक्षक

कुछ समय बाद मुम्बई छोड़कर प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य अपने गृह राज्य गुजरात लौट आए। वर्ष 1948 में उन्होंने बल्लभनगर के विट्ठल महाविद्यालय में कुछ समय तक शिक्षण कार्य किया। फिर वह गुजरात विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर नियुक्त हुए। वैद्य ने अपना पूरा जीवन एक समर्पित शिक्षक के रूप में बिताया। वह हमेशा खुद को एक गणित शिक्षक कहे जाने पर गर्वान्वित महसूस करते थे। प्रशासनिक प्रतिबद्धताओं के बावजूद वह विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए समय निकाल ही लेते थे।

उच्च पदों पर कार्य

वर्ष 1971 में उन्हें गुजरात लोकसेवा आयोग का सभापति नियुक्त किया गया। फिर वर्ष 1977-1978 के बीच वह केन्द्रीय लोकसेवा आयोग के भी सदस्य रहे। 1978-1980 के दौरान वह गुजरात विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। वैद्य ने गुजरात गणितीय सोसायटी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विक्रम साराभाई कम्यूनिटी साइंस सेंटर के विकास में भी उनका अहम योगदान था। इंडियन एसोसिएशन फॉर जनरल रिलेटिविटी ऐंड ग्रेविटेशन (आईएजीआरजी) की स्थापना में भी वैद्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। वर्ष 1969 में स्थापित इस संस्था के संस्थापक अध्यक्ष सर विष्णु वासुदेव नार्लीकर थे।

प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य को स्वतंत्रता के बाद भारत में गांधीवादी दर्शन के अनुयायी के रूप में जाना जाता है। प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य गांधीजी के विचारों से प्रेरित होकर आजादी के आन्दोलन में भी शामिल रहे। उन्होंने गांधीवादी विचारों को अपनाते हुए खादी का कुर्ता और टोपी को धारण किया। उपकुलपति के पद पर रहते हुए भी सरकारी कार का उपयोग करने से मना कर दिया और विश्वविद्यालय आने-जाने के लिए साइकिल का ही उपयोग करते रहे।[1]

मृत्यु

12 मार्च, 2010 को 91 वर्ष की आयु में प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य का निधन हो गया। प्रहलाद चुन्नीलाल वैद्य के योगदान को देखते हुए विज्ञान संचार के लिए समर्पित संस्था विज्ञान प्रसार द्वारा उन पर एक वृत्तचित्र का भी निर्माण किया गया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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