हम तुझसे किस हवस की फलक जुस्तुजू करें दिल ही नहीं रहा है जो कुछ आरजू करें। तर-दामनी[1] पे शेख हमारी ना जाईयो दामन निचोड़ दें तो फ़रिश्ते वज़ू करें।[2] सर ता क़दम ज़ुबां हैं जूं शम’अ गो की हम पर यह कहाँ मजाल जो कुछ गुफ्तगू करें। है अपनी यह सलाह की सब ज़ाहिदान-ए-शहर ए दर्द आ की बै’अत-ए-दस्त-ओ-सुबू करें। मिट जाएँ एक आन् में कसरत नुमाईयाँ हम आइने के सामने आके जब हू करें।