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'''आमेर''' [[राजस्थान]] [[राज्य]] के [[जयपुर ज़िला|जयपुर ज़िले]] से छ: मील दूर जयपुर राज्य की प्राचीन राजधानी था। कहा जाता है कि 1129 ई. के लगभग कछवाहा [[राजपूत|राजपूतों]] को [[ग्वालियर]] से परिहारों ने निकाल दिया था। कछवाहा राजकुमार तेजकरों अपनी नवोढ़ा पत्नी सुन्दरी मरोनी के प्रेमपाश में बंध कर राजकाज भूल बैठा था जिसके फलस्वरूप उसके भतीजे परिहार ने उसे राज्यच्युत कर दिया। कछवाहों ने निष्कासित होने के पश्चात् जंगली मीनाओं की सहायता से ढुंढार की रियासत स्थापित की। आमेर ढुंढार ही को राजधानी थी। जयसिंह-द्वितीय के समय तक<ref>1730 ई. के कुछ पूर्व</ref> कछवाहों की राजधानी आमेर नगर में ही रही। जयसिंह द्वितीय ने ही [[जयपुर]] बसाया और अपनी राजधानी नए नगर में बनाई। आमेर में [[अकबर]] के दरबार के [[अकबर के नवरत्न|रत्न]] [[मानसिंह|महाराजा मानसिंह]] द्वारा निर्मित दुर्ग और प्रासाद पहाड़ी के ऊपर स्थित हैं। इनके भीतर दरबार, दीवाने-आम, गणेशपोल, रंगमहल, यशमंदिर, सुहाग मंदिर इत्यादि उल्लेखनीय हैं। कहते हैं कि [[आमेर का क़िला जयपुर|आमेर के भवनों]] की नक़्क़ाशी [[मुग़ल]] सम्राटों को इतनी भायी कि उसी का अनुकरण उन्होंने [[दिल्ली]] और [[आगरा]] के भवनों में किया। आमेर के दुर्ग का शीशमहल [[भारत]] में प्रसिद्ध है; इसी के लिए [[जयसिंह|जयसिंह प्रथम]] के राजकवि [[बिहारीलाल]] ने लिखा था-  
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<blockquote><poem>'प्रतिबिंबित जयसाह दुति दीपत दरपन धाम,  
 
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सब जग जीतन को कियो कामव्यूह मनु काम'।</poem></blockquote>  
 
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आमेर का कालीमंदिर बहुत प्राचीन है। संभवत: कछवाहों के आमेर में बसने के पूर्वकाली यहां रहने वाली मीना जाति की इष्टदेवी थी। आमेर नाम की व्युत्पत्ति भी अंबानगर से जान पड़ती है। श्री न. ला. डे के अनुसार आमेर का असली नाम अंबरीषपुर था और इसे पौराणि क नरेश अंबरीष ने बसाया था।  
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आमेर का '''कालीमंदिर''' बहुत प्राचीन है। संभवत: कछवाहों के आमेर में बसने के पूर्व '''काली''' यहां रहने वाली [[मीणा जनजाति|मीणा जाति]] की इष्टदेवी थी। आमेर नाम की व्युत्पत्ति भी '''अंबानगर''' से जान पड़ती है। श्री न. ला. डे के अनुसार आमेर का असली नाम '''अंबरीषपुर''' था और इसे पौराणिक नरेश [[अंबरीष]] ने बसाया था।  
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*ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 66-67| विजयेन्द्र कुमार माथुर |  वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
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आमेर
Amber-Fort-Rajasthan.jpg
विवरण आमेर राजस्थान राज्य के जयपुर ज़िले से छ: मील दूर जयपुर राज्य की प्राचीन राजधानी था।
राज्य राजस्थान
ज़िला जयपुर
निर्माता महाराजा मानसिंह
Map-icon.gif गूगल मानचित्र
संबंधित लेख राजस्थान, राज्य, जयपुर ज़िले, दिल्ली, आगरा


अद्यतन‎ 05:28, 15 जुलाई 2017 (IST)

आमेर राजस्थान राज्य के जयपुर ज़िले से छ: मील दूर जयपुर राज्य की प्राचीन राजधानी था। कहा जाता है कि 1129 ई. के लगभग कछवाहा राजपूतों को ग्वालियर से परिहारों ने निकाल दिया था। कछवाहा राजकुमार तेजकरों अपनी नवोढ़ा पत्नी सुन्दरी मरोनी के प्रेमपाश में बंध कर राजकाज भूल बैठा था जिसके फलस्वरूप उसके भतीजे परिहार ने उसे राज्यच्युत कर दिया।

कछवाहों ने निष्कासित होने के पश्चात् जंगली मीणाओं की सहायता से ढुंढार की रियासत स्थापित की। आमेर ढुंढार ही की राजधानी थी। जयसिंह-द्वितीय के समय तक[1] कछवाहों की राजधानी आमेर नगर में ही रही। जयसिंह द्वितीय ने ही जयपुर बसाया और अपनी राजधानी नए नगर में बनाई।

आमेर में अकबर के दरबार के रत्न महाराजा मानसिंह द्वारा निर्मित दुर्ग और प्रासाद पहाड़ी के ऊपर स्थित हैं। इनके भीतर दरबार, दीवाने-आम, गणेशपोल, रंगमहल, यशमंदिर, सुहाग मंदिर इत्यादि उल्लेखनीय हैं। कहते हैं कि आमेर के भवनों की नक़्क़ाशी मुग़ल सम्राटों को इतनी भायी कि उसी का अनुकरण उन्होंने दिल्ली और आगरा के भवनों में किया। आमेर के दुर्ग का शीशमहल भारत में प्रसिद्ध है; इसी के लिए जयसिंह प्रथम के राजकवि बिहारीलाल ने लिखा था-

'प्रतिबिंबित जयसाह दुति दीपत दरपन धाम,
सब जग जीतन को कियो कामव्यूह मनु काम'।

आमेर का कालीमंदिर बहुत प्राचीन है। संभवत: कछवाहों के आमेर में बसने के पूर्व काली यहां रहने वाली मीणा जाति की इष्टदेवी थी। आमेर नाम की व्युत्पत्ति भी अंबानगर से जान पड़ती है। श्री न. ला. डे के अनुसार आमेर का असली नाम अंबरीषपुर था और इसे पौराणिक नरेश अंबरीष ने बसाया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 66-67| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार


  1. 1730 ई. के कुछ पूर्व

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख