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11:57, 24 मई 2018 के समय का अवतरण
अनागामी निर्वाण के पथ पर अर्हत् पद के पहले की भूमि अनागामी की होती है। जब योगी समाधि में सत्ता के अनित्य-अनात्म-दु:ख-स्वरूप का साक्षात्कार कर लेता है तब उसके भवबंधन एक एक कर टूटने लगते हैं। जब सत्काय दृष्टि, विचिकित्सा, शील्व्रातपराभास, कामछंद और व्यापाद्-ये पाँच बंधन नष्ट हो जाते हैं तब वह अनागामी हो जाता है। मरने के बाद वह ऊपर की भूमि में उत्पन्न होता है। वहीं उत्तरोत्तर उन्नत होते हुए अविद्या का नाश कर अर्हत् पद का लाभ करता है। वह इस लोक में फिर जन्म नहीं ग्रहण करता। इसीलिए वह अनागामी कहा जाता है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 113 |