नरेश्वर ! एक दिन मेरे द्वारा महातेजस्वी ब्रह्मर्षि नारद ठगे गये, अतः उन्होंने क्रोध से आविष्ट होकर मुझे शाप दे दिया- "तुम
स्थावर वृक्ष की भांति एक जगह पड़े रहो, जब कभी
राजा नल आकर तुम्हें यहां से अन्यत्र ले जायंगे, तभी तुम मेरे शाप से छुटकारा पा सकोगे।"