आप:

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ऋग्वेद में उल्लेख

ऋग्वेद के [1] मन्त्रों में आप: (जलों) के विविध गुणों की अभिव्यक्ति हुई है। यहाँ आकाशीय जलों की स्तुति की गयी है, उनका स्थान सूर्य के पास है। 'इन दिव्य जलों को स्त्रीरूप माना गया है। वे माता हैं, नवयुवती हैं, अथवा देवियाँ हैं। उनका सोमरस के साथ संयोग होने से इन्द्र का पेय प्रस्तुत होता है। वे धनवान हैं, धन देने वाली हैं, वरदानों की स्वामिनी हैं तथा घी, दूध एवं मधु लाती हैं ।' इन गुणो को हम इस प्रकार मानते हैं कि जल पृथ्वी को उपजाऊ बनाता है, जिससे वह प्रभूत अन्न उत्पन्न करती है। जल पालन करने वाला, शक्ति देने वाला एवं जीवन देने वाला है। वह मनुष्यों को पेय देता है एवं इन्द्र को भी। वह औषधियों का भी भाग है एवं इसी कारण रोगों से मुक्ति देने वाला है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऋग्वेद (7.47.49;10.9,30)