"अवगुन मूल सूलप्रद": अवतरणों में अंतर
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अवगुन मूल सूलप्रद प्रमदा सब | अवगुन मूल सूलप्रद प्रमदा सब दु:ख खानि। | ||
ताते कीन्ह निवारन मुनि मैं यह जियँ जानि॥44॥ | ताते कीन्ह निवारन मुनि मैं यह जियँ जानि॥44॥ | ||
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14:01, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
अवगुन मूल सूलप्रद
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अरण्यकाण्ड |
अवगुन मूल सूलप्रद प्रमदा सब दु:ख खानि। |
- भावार्थ
युवती स्त्री अवगुणों की मूल, पीड़ा देने वाली और सब दुःखों की खान है, इसलिए हे मुनि! मैंने जी में ऐसा जानकर तुमको विवाह करने से रोका था॥44॥
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अवगुन मूल सूलप्रद | ![]() |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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