गीता प्रेस गोरखपुर

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गीता प्रेस गोरखपुर स्थित यह जाना माना प्रतिष्ठान 86 वर्षो से धर्म और आध्यात्म का प्रकाश फैला रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक पुस्तकें छापने वाले, भारत का सम्भवतः सबसे बड़ा मुनाफा रहित प्रकाशन संस्थान 'गीता प्रेस' का व्यवसाय निरंतर बढ रहा है। गीता प्रेस ने वर्ष 2008 - 09 में पुस्तकों की छपाई के लिए 4500 टन काग़ज़ का प्रयोग किया जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 600 टन अधिक है। इस समय में भी गीता प्रेस की पुस्तकों की मांग कम नहीं हुई है। भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म से सम्बन्धित धार्मिक पुस्तकों के प्रचार एवं प्रसार में सबसे बड़ा नाम 'गीता प्रेस प्रकाशन' यह आधुनिक तकनीक अपनाकर आज भी देश एवं विदेश में अपनी अलग पहचान बनाये रखने में सफल है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर महानगर की घनी आबादी वाले इलाके 'रेती रोड' पर स्थित गीता प्रेस अनूठी कार्य संस्कृति को अपनाते हुए धार्मिक पुस्तकों का प्रचार एवं प्रसार कर रहा है।

प्रेस का प्रारम्भ

मात्र दो रुपये में दो इंच की धार्मिक पुस्तक का प्रकाशन इसमें जारी है। सन् 1923 में मात्र कुछ पुस्तकों का प्रकाशन शुरू कर यह संस्था सीमित संसाधनों से कोलकाता में शुरू हुई थी लेकिन आज इस प्रकाशन का मुख्य केन्द्र गोरखपुर में है। मई 1923 को जयदयाल गोयन्दका ने केवल संस्कृत भाषा में इस धार्मिक पुस्तक गीता का प्रकाशन किया था जो आज देश की 15 भाषाओं में प्रकाशित हो रही है। वैसे तो अन्य तमाम धार्मिक पुस्तकें यहां से छप रही है लेकिन गीता की बिक्री का तो जबाव हीं नहीं है।

धार्मिक और पौराणिक पुस्तकों का प्रकाशन

गीता प्रेस के धार्मिक पुस्तकों के विभिन्न संस्करणों में अब तक 45 करोड 45 लाख पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं जिनमें श्रीमद्भगवद्वीता 810 लाख, पुराण, उपनिषद आदि ग्रन्थ 210 लाख, महिलाओं एवं बालपयोगी 1030 लाख, भक्त चरित्र एवं भजन माला 765 लाख, श्री राम चरित मानस एवं तुलसी साहित्य 750 लाख तथा अन्य 980 लाख पुस्तकें शामिल हैं| प्रेस के सूत्रों ने बताया कि अब तक लगभग 32 करोड मूल्य की पुस्तकें लोगों को उपलब्ध करायी गयी हैं, जिसके लिए लगभग 4500 टन काग़ज़ का उपयोग किया गया।

मासिक पत्र

कल्याण, युग कल्याण एवं कल्याण कल्पतरू – ये गीता प्रेस द्वारा तीन मासिक पत्र प्रकाशित किये जाते हैं। हिन्दी में कल्याण और युग कल्याण है तो अंग्रेज़ी में कल्याण कल्पतरू। आध्यात्मिक पत्रिकाओं में सबसे पुरानी 'कल्याण पत्रिका' ने सबसे लम्बी अवधि तक छपने वाली पत्रिका के रूप में कई सम्मान प्राप्त किये। पत्रिका का प्रकाशन 86 वर्ष पूर्व मुम्बई में शुरू हुआ था और वर्तमान में सबसे अधिक बिकने वाली तथा सबसे पुरानी आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक पत्रिका बन गयी है।

संस्थापक

लेटर प्रेस छपाई शुरू करके आज अत्याधुनिक आफसेट प्रिटिंग प्रेस पर छपने वाली इस पत्रिका को प्रख्यात समाजसेवी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने शुरू किया था। अब इस गौरवमयी पत्रिका को प्रकाशित कराने का श्रेय भी गीता प्रेस को ही है। कल्याण की वर्तमान समय में लगभग दो लाख 15 हज़ार प्रतियां छपती है और वर्ष का पहला अंक किसी विषय का विशेषांक होता है। व्यवसायिकता और आधुनिकता के इस युग में किसी आध्यात्मिक पत्रिका की इतनी बिक्री अचंभित करने वाला है।

प्रेस का प्रवेश द्वार

संस्थान के प्रवेश द्वार पर प्रतीकात्मक गीता द्वार का स्वरूप है, जिसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 29 अप्रैल 1955 को किया था। गीता द्वार के निर्माण में देश की गौरवमयी प्राचीन कला और प्राचीन मंदिरों से प्रेरणा ली गयी है। लीला चित्र मंदिर में भगवान श्रीराम और भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं के परम रमणीय 684 चित्रांक के अतिरिक्त समय समय पर गीता प्रेस से प्रकाशित श्रेष्ठ धार्मिक चित्रकारों के द्वारा बनाये हुए अनेक हस्तनिर्मित चित्र हैं।

गीता प्रेस परिसर

गीता प्रेस परिसर में गीता संगमरमर के पत्थरों पर खुदी हुई है एवं संत भक्तों के 700 से अधिक दोहे तथा वाणियां भी खुदी हुई है। प्रेस के प्रोडक्शन मैनेजर का कहना है कि गीता प्रेस हर रोज 50 हज़ार से ज़्यादा किताबें बेचते हैं। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य मुनाफा कमाना नहीं है। सद्प्रचार के लिए पुस्तके छापना हैं। सस्ती होने के कारण गीता प्रेस की पुस्तकों की लोकप्रियता है। पुस्तकों में हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा और शिव चालीसा शामिल है जिसकी कीमत मात्र एक रुपये है। उन्होंने कहा कि गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की मांग इतनी अधिक है कि उन्हें पूरा करना संभव नहीं है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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