"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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||[[चित्र:Bahu-Fort-Jammu.JPG|right|120px|बाहू क़िला, जम्मू]]जम्मू शहर, [[उत्तर भारत]], [[जम्मू-कश्मीर]] राज्य की शीतकालीन राजधानी है। यह [[श्रीनगर]] के दक्षिण में तवी नदी के किनारे स्थित है। इसके उत्तर में [[शिवालिक पर्वतश्रेणी]] है। अब [[जम्मू]] देश के कई इलाकों से रेलमार्ग द्वारा भी जुड़ चुका है। सर्दियों के समय यहाँ सैलानियों की अधिक भीड़ रहती है। जम्मू की प्राकृतिक सुंदरता और बर्फीली पहाडियों का मनोरम दृश्य अधिक संख्या में पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खीचता है। जम्मू शहर के आस-पास के क्षेत्रों में पहाड़ों पर [[गेहूँ]], [[चावल]], [[मक्का]] और [[जौ]] की खेती मुख्य रूप से होती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जम्मू]] | ||[[चित्र:Bahu-Fort-Jammu.JPG|right|120px|बाहू क़िला, जम्मू]]जम्मू शहर, [[उत्तर भारत]], [[जम्मू-कश्मीर]] राज्य की शीतकालीन राजधानी है। यह [[श्रीनगर]] के दक्षिण में तवी नदी के किनारे स्थित है। इसके उत्तर में [[शिवालिक पर्वतश्रेणी]] है। अब [[जम्मू]] देश के कई इलाकों से रेलमार्ग द्वारा भी जुड़ चुका है। सर्दियों के समय यहाँ सैलानियों की अधिक भीड़ रहती है। जम्मू की प्राकृतिक सुंदरता और बर्फीली पहाडियों का मनोरम दृश्य अधिक संख्या में पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खीचता है। जम्मू शहर के आस-पास के क्षेत्रों में पहाड़ों पर [[गेहूँ]], [[चावल]], [[मक्का]] और [[जौ]] की खेती मुख्य रूप से होती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जम्मू]] | ||
||[[चित्र:Kashmir-Valley.jpg|right|120px|कश्मीर की घाटी]]'कश्मीर' या 'काश्मीर' का प्राचीन नाम 'कश्यपमेरु' या 'कश्यपमीर' (कश्यप का झील) था। एक प्रचलित किंवदंती है कि [[कश्यप|महर्षि कश्यप]] [[श्रीनगर]] से 3 मील {{मील|मील=3}} दूर हरि-पर्वत पर रहते थे, जहाँ आजकल '[[कश्मीर की घाटी]]' है। वहाँ अति प्राचीन [[प्रागैतिहासिक काल]] में एक बहुत बड़ी [[झील]] थी, जिसके पानी को निकाल कर महर्षि कश्यप ने इस स्थान को मनुष्यों के बसने योग्य बनाया था। [[कश्मीर]] को "भारत का स्विट्जरलैण्ड" भी कहा जाता है। भूविद्या-विशारदों के विचारों से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है कि कश्मीर तथा [[हिमालय]] के एक विस्तृत भू-भाग में अब से सहस्त्रों वर्ष पूर्व [[समुद्र]] स्थित था। कश्मीर का इतिहास अतिप्राचीन है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कश्मीर]] | ||[[चित्र:Kashmir-Valley.jpg|right|120px|कश्मीर की घाटी]]'कश्मीर' या 'काश्मीर' का प्राचीन नाम 'कश्यपमेरु' या 'कश्यपमीर' (कश्यप का झील) था। एक प्रचलित किंवदंती है कि [[कश्यप|महर्षि कश्यप]] [[श्रीनगर]] से 3 मील {{मील|मील=3}} दूर हरि-पर्वत पर रहते थे, जहाँ आजकल '[[कश्मीर की घाटी]]' है। वहाँ अति प्राचीन [[प्रागैतिहासिक काल]] में एक बहुत बड़ी [[झील]] थी, जिसके पानी को निकाल कर महर्षि कश्यप ने इस स्थान को मनुष्यों के बसने योग्य बनाया था। [[कश्मीर]] को "भारत का स्विट्जरलैण्ड" भी कहा जाता है। भूविद्या-विशारदों के विचारों से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है कि कश्मीर तथा [[हिमालय]] के एक विस्तृत भू-भाग में अब से सहस्त्रों वर्ष पूर्व [[समुद्र]] स्थित था। कश्मीर का इतिहास अतिप्राचीन है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कश्मीर]] | ||
{निम्नलिखित में से किसके आंकलन के लिए रेटिंग वक्र उपयोगी है? | |||
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-नदी का निस्सरण | |||
-विघटित भार | |||
+धारा का वेग | |||
-जलीय परास | |||
{संसार का सबसे बड़ा [[मरुस्थल]] कौन-सा है?(पृ.सं.- 653 | {संसार का सबसे बड़ा [[मरुस्थल]] कौन-सा है?(पृ.सं.- 653 | ||
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+[[मृत सागर]] | +[[मृत सागर]] | ||
||[[चित्र:Dead-Sea-1.jpg|right|100px|मृत सागर]]'मृत सागर' अपने उच्च घनत्व के लिए जाना जाता है। इस [[सागर]] में तैराकों का डूबना लगभग असम्भव है। आम पानी की तुलना में [[मृत सागर]] के पानी में 20 गुना ज़्यादा [[ब्रोमिन]], 50 गुना ज़्यादा [[मैग्नीशियम]] तथा 10 गुना ज़्यादा [[आयोडिन]] उपस्थित रहता है। इस सागर के भौतिक गुणों का वर्णन स्वयं [[अरस्तु]] ने भी किया है। मृत सागर सदा से ही विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। 65 किलोमीटर लम्बा और 18 किलोमीटर चौड़ा यह सागर अपने उच्च घनत्व के लिए जाना जाता है। यही वजह है कि इस [[सागर]] में किसी का भी डूबना असम्भव है। मृत सागर में मुख्यत: जॉर्डन नदी और अन्य छोटी नदियाँ आकर गिरती हैं। हालाँकि इसमें कोई [[मछली]] जिंदा नहीं रह सकती, लेकिन इसमें [[बैक्टीरिया]] की 11 जातियाँ पाई जाती हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मृत सागर]] | ||[[चित्र:Dead-Sea-1.jpg|right|100px|मृत सागर]]'मृत सागर' अपने उच्च घनत्व के लिए जाना जाता है। इस [[सागर]] में तैराकों का डूबना लगभग असम्भव है। आम पानी की तुलना में [[मृत सागर]] के पानी में 20 गुना ज़्यादा [[ब्रोमिन]], 50 गुना ज़्यादा [[मैग्नीशियम]] तथा 10 गुना ज़्यादा [[आयोडिन]] उपस्थित रहता है। इस सागर के भौतिक गुणों का वर्णन स्वयं [[अरस्तु]] ने भी किया है। मृत सागर सदा से ही विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। 65 किलोमीटर लम्बा और 18 किलोमीटर चौड़ा यह सागर अपने उच्च घनत्व के लिए जाना जाता है। यही वजह है कि इस [[सागर]] में किसी का भी डूबना असम्भव है। मृत सागर में मुख्यत: जॉर्डन नदी और अन्य छोटी नदियाँ आकर गिरती हैं। हालाँकि इसमें कोई [[मछली]] जिंदा नहीं रह सकती, लेकिन इसमें [[बैक्टीरिया]] की 11 जातियाँ पाई जाती हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मृत सागर]] | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सा 'टैगा जीवोम' है? | |||
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-उप-सहारा जीवोम | |||
+उप-ध्रुवीय जीवोम | |||
-सवाना घास | |||
-उपरोक्त में से कोई नहीं | |||
{निम्नलिखित में से कौन-सा [[द्वीप]] प्रवाल द्वीप है? | {निम्नलिखित में से कौन-सा [[द्वीप]] प्रवाल द्वीप है? | ||
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||[[चित्र:Chipko-Movement.jpg|right|80px|चिपको आंदोलन]]'चिपको आंदोलन' पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए किया गया एक महत्त्वपूर्ण आन्दोलन था। आन्दोलन के अंतर्गत [[26 मार्च]], [[1974]] ई. को [[उत्तराखण्ड]], जो पहले [[उत्तर प्रदेश]] का एक भाग था, के वनों में शांत और अहिंसक विरोध प्रदर्शन किया गया। उस साल जब उत्तराखंड के रैंणी गाँव के जंगल के लगभग ढाई हज़ार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई, तो गौरा देवी नामक महिला ने अन्य महिलाओं के साथ इस नीलामी का विरोध किया। इसके बावजूद सरकार और ठेकेदार के निर्णय में कोई बदलाव नहीं आया। जब ठेकेदार के आदमियों ने पेड़ काटने की कोशिश की तो महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा कि पहले हमें काटो फ़िर इन पेड़ों को भी काट लेना। अंतत: ठेकेदार को जाना पड़ा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[उत्तराखण्ड]] | ||[[चित्र:Chipko-Movement.jpg|right|80px|चिपको आंदोलन]]'चिपको आंदोलन' पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए किया गया एक महत्त्वपूर्ण आन्दोलन था। आन्दोलन के अंतर्गत [[26 मार्च]], [[1974]] ई. को [[उत्तराखण्ड]], जो पहले [[उत्तर प्रदेश]] का एक भाग था, के वनों में शांत और अहिंसक विरोध प्रदर्शन किया गया। उस साल जब उत्तराखंड के रैंणी गाँव के जंगल के लगभग ढाई हज़ार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई, तो गौरा देवी नामक महिला ने अन्य महिलाओं के साथ इस नीलामी का विरोध किया। इसके बावजूद सरकार और ठेकेदार के निर्णय में कोई बदलाव नहीं आया। जब ठेकेदार के आदमियों ने पेड़ काटने की कोशिश की तो महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा कि पहले हमें काटो फ़िर इन पेड़ों को भी काट लेना। अंतत: ठेकेदार को जाना पड़ा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[उत्तराखण्ड]] | ||
{ | {शुष्क प्रदेशों में पर्वतपदीय ढलवाँ मार्ग पर नदियों द्वारा निक्षेपित बालू कहलाती है- | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-हमादा | -हमादा | ||
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-पेडिमेंट | -पेडिमेंट | ||
-मरु प्रक्षालन | -मरु प्रक्षालन | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सी बाग़ानी [[कृषि]] नहीं है? | {निम्नलिखित में से कौन-सी बाग़ानी [[कृषि]] नहीं है? | ||
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-[[कॉफ़ी]] की कृषि | -[[कॉफ़ी]] की कृषि | ||
-रबर लेटेक्स की [[कृषि]] | -रबर लेटेक्स की [[कृषि]] | ||
||[[चित्र:Soybean.jpg|right|100px|सोयाबीन]]'सोयाबीन' एक बहुउपयोगी 40 से 50 प्रतिशत तक तेल देने वाली द्विदल फ़सल है। [[भारत]] में इसका उत्पादन [[1975]] के पश्चात निरन्तर बढ़ता जा रहा है। यह मुख्यतः रबी की फ़सल हैं और कम [[वर्षा]] वाले क्षेत्रों में भी पैदा की जा सकती है। प्रारम्भ में पाला [[सोयाबीन]] के लिए घातक नहीं है। इसे अब खरीफ काल में भी बोना आसान है। इसका उपयोग तेल निकालने, प्रोटीनयुक्त पदार्थ, [[प्रोटीन]] व विविध मानव व पशु आहार आदि में होता है, क्योंकि अन्य दलहनों या [[तिलहन|तिलहनों]] की तुलना में इसमें प्रोटीन एवं तेल का अंश बहुत अधिक होता है, अतः [[दूध]] एवं सोया आहार इसी कारण विशेष प्रचलित हो रहे हैं। अब रिफाइण्ड सोयाबीन के तेल की खपत [[मूंगफली]] एवं सरसों के तेल के पश्चात सबसे अधिक होने लगी है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सोयाबीन]] | |||
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07:37, 24 मार्च 2013 का अवतरण
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