"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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||[[चित्र:General-Dyer.jpg|right|जनरल डायर]]जनरल डायर ब्रिटिश सरकार का एक सेनाधिकारी था। [[10 अप्रैल]], [[1919]] को [[अमृतसर]] में जो प्रदर्शन हुआ था, वह अधिक उग्र था, जिसमें चार [[अंग्रेज़]] मारे गए थे। एक यूरोपीय [[ईसाई]] पादरी को पीटा गया और कुछ बैंकों और सरकारी भवनों में [[आग]] लगा दी गई। ब्रिटिश सरकार ने तुरन्त बदले की कार्रवाई करने का निश्चय किया और एक घोषणा प्रकाशित कर [[अमृतसर]] में सभाओं आदि पर प्रतिबंध लगा दिया तथा नगर प्रशासन [[जनरल डायर]] के सुपुर्द कर दिया। [[जलियाँवाला बाग़]] में सभा का समाचार पाते ही डायर अपने 90 सशस्त्र सैनिकों के साथ बाग़ आया और बाग़ में प्रवेश एवं निकास के एकमात्र रास्ते को घेर लिया। बिना किसी पूर्व चेतावनी के ही चीख़ते, आतंकित भागते निहत्थे बच्चों, महिलाओं और बूढ़ों की भीड़ पर 10-15 मिनट में ही 1650 गोलियाँ दाग़ दी गईं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जनरल डायर]] | |||
{[[भारत]] को आज़ादी मिलने के बाद [[लक्षद्वीप]] में [[राष्ट्रीय ध्वज]] फहराने के लिए [[भारतीय नौसेना]] का एक जहाज़ किसने भेजा।(भारतकोश) | {[[भारत]] को आज़ादी मिलने के बाद [[लक्षद्वीप]] में [[राष्ट्रीय ध्वज]] फहराने के लिए [[भारतीय नौसेना]] का एक जहाज़ किसने भेजा।(भारतकोश) | ||
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-[[दादा भाई नौरोजी]] | -[[दादा भाई नौरोजी]] | ||
-[[जवाहरलाल नेहरू]] | -[[जवाहरलाल नेहरू]] | ||
||[[चित्र:Sardar-Vallabh-Bhai-Patel.jpg|right|100px|सरदार पटेल]]'सरदार वल्लभ भाई पटेल' भारतीय बैरिस्टर और राजनेता थे। वे [[भारत]] के '[[स्वाधीनता संग्राम]]' के दौरान '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के नेताओं में से एक थे। [[लक्षद्वीप]] समूह को भारत के साथ मिलाने में भी [[सरदार पटेल]] की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस क्षेत्र के लोग देश की मुख्यधारा से कटे हुए थे और उन्हें भारत की आजादी की जानकारी [[15 अगस्त]], [[1947]] के बाद मिली। हालांकि यह क्षेत्र [[पाकिस्तान]] के नजदीक नहीं था, लेकिन पटेल को लगता था कि इस पर पाकिस्तान दावा कर सकता है। इसलिए ऐसी किसी भी स्थिति को टालने के लिए पटेल ने लक्षद्वीप में '[[राष्ट्रीय ध्वज]]' फहराने के लिए [[नौसेना]] का एक जहाज़ भेजा। इसके कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तानी नौसेना के जहाज लक्षद्वीप के आस-पास मंडराते देखे गए, लेकिन वहाँ [[भारत]] का झंडा लहराते देख वे वापस चले गए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सरदार वल्लभ भाई पटेल]] | |||
{एक शासक जिसे [[महाभारत]] में दन्तमित्र, [[बेसनगर]] में दिमित्र एवं [[दिव्यावदान]] में कृमिस कहा जाता है, वह सम्भवत: है-(पृ.सं. 173 | {एक शासक जिसे [[महाभारत]] में दन्तमित्र, [[बेसनगर]] में दिमित्र एवं [[दिव्यावदान]] में कृमिस कहा जाता है, वह सम्भवत: है-(पृ.सं. 173 | ||
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||[[चित्र:Demetrios-Coin.jpg|right|100px|डेमेट्रियस का सिक्का]]डेमेट्रियस अपने [[पिता]] यूथीडेमस की मृत्यु के बाद राजा बना था। सम्भवतः [[सिकन्दर]] के बाद [[डेमेट्रियस]] पहला [[यूनानी]] शासक था, जिसकी सेना भारतीय सीमा में प्रवेश कर सकी थी। उसने एक बड़ी सेना के साथ लगभग 183 ई. पू. में [[हिन्दुकुश पर्वत]] को पार कर [[सिंध]] और [[पंजाब]] पर अधिकार कर लिया था। डेमेट्रियस के भारतीय अभियान की पुष्टि '[[महाभाष्य]]', 'गार्गी संहिता' एवं '[[मालविकाग्निमित्रम्]]' से होती है। इस प्रकार डेमेट्रियास ने पश्चिमोत्तर [[भारत]] में इंडो-यूनानी सत्ता की स्थापना की थी।डेमेट्रियस ने भारतीय राजाओं की उपाधि धारण कर यूनानी तथा खरोष्ठी लिपि में सिक्के भी चलवाये थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[डेमेट्रियस]] | |||
{[[कालिदास]] के निम्न ग्रंथों में से किस [[ग्रंथ]] से [[शुंग वंश|शुंगों]] के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है? (पृ.सं. 173 | {[[कालिदास]] के निम्न ग्रंथों में से किस [[ग्रंथ]] से [[शुंग वंश|शुंगों]] के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है? (पृ.सं. 173 |
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