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और जहाँ-तहाँ (सूचना देने वाले) दूतों को भेजकर मांगलिक वस्तुएँ मँगाकर फिर हर्ष के साथ आकर [[वशिष्ठ|वशिष्ठ जी]] के चरणों में सिर नवाया॥10 (ख)॥ | और जहाँ-तहाँ (सूचना देने वाले) दूतों को भेजकर मांगलिक वस्तुएँ मँगाकर फिर हर्ष के साथ आकर [[वशिष्ठ|वशिष्ठ जी]] के चरणों में सिर नवाया॥10 (ख)॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=सासुन्ह सबनि मिली बैदेही |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= | {{लेख क्रम4| पिछला=सासुन्ह सबनि मिली बैदेही |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=अवधपुरी अति रुचिर बनाई}} | ||
'''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। | '''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। |
06:58, 6 जून 2016 के समय का अवतरण
जहँ तहँ धावन पठइ पुनि
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
जहँ तहँ धावन पठइ पुनि मंगल द्रब्य मगाइ। |
- भावार्थ
और जहाँ-तहाँ (सूचना देने वाले) दूतों को भेजकर मांगलिक वस्तुएँ मँगाकर फिर हर्ष के साथ आकर वशिष्ठ जी के चरणों में सिर नवाया॥10 (ख)॥
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जहँ तहँ धावन पठइ पुनि | ![]() |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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