"हम सब सेवक अति बड़भागी": अवतरणों में अंतर
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हम सब सेवक अत्यंत बड़भागी हैं, जो निरंतर सगुण ब्रह्म (श्री रामजी) में प्रीति रखते हैं॥7॥ | हम सब सेवक अत्यंत बड़भागी हैं, जो निरंतर सगुण ब्रह्म ([[राम|श्री रामजी]]) में प्रीति रखते हैं॥7॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=जामवंत अंगद दुख देखी |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=निज इच्छाँ प्रभु अवतरइ}} | {{लेख क्रम4| पिछला=जामवंत अंगद दुख देखी |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=निज इच्छाँ प्रभु अवतरइ}} | ||
09:36, 27 मई 2016 का अवतरण
हम सब सेवक अति बड़भागी
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | किष्किंधा काण्ड |
हम सब सेवक अति बड़भागी। संतत सगुन ब्रह्म अनुरागी॥7॥ |
- भावार्थ
हम सब सेवक अत्यंत बड़भागी हैं, जो निरंतर सगुण ब्रह्म (श्री रामजी) में प्रीति रखते हैं॥7॥
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हम सब सेवक अति बड़भागी | ![]() |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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