"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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{[[हड़प्पा सभ्यता]] की मुद्राएँ किससे निर्मित की जाती थीं? | {[[हड़प्पा सभ्यता]] की मुद्राएँ किससे निर्मित की जाती थीं? | ||
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||[[चित्र:Indus-Valley-Civilization-Pottery.jpg|right|100px|हड़प्पा सभ्यता के बर्तन]]'हड़प्पा सभ्यता' के [[अवशेष]] [[पाकिस्तान]] और [[भारत]] के [[पंजाब]], [[सिंध]], [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[हरियाणा]], पश्यिमी [[उत्तर प्रदेश]], [[जम्मू-कश्मीर]] के भागों में पाये जा चुके हैं। इस सभ्यता का फैलाव उत्तर में [[जम्मू]] के 'मांदा' से लेकर दक्षिण में [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] के मुहाने भगतराव तक और पश्चिमी में [[मकरान]] समुद्र तट पर सुत्कागेनडोर से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में [[मेरठ]] तक है। [[हड़प्पा सभ्यता]] का काल निर्धारण मुख्य रूप से मेसोपोटामिया में 'उर' और 'किश' स्थलों पर पाए गए हड़प्पाई मुद्राओं के आधार पर किया गया था। इस क्षेत्र में सर्वप्रथम प्रयास जॉन मार्शल का रहा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हड़प्पा सभ्यता]] | ||[[चित्र:Indus-Valley-Civilization-Pottery.jpg|right|100px|हड़प्पा सभ्यता के बर्तन]]'हड़प्पा सभ्यता' के [[अवशेष]] [[पाकिस्तान]] और [[भारत]] के [[पंजाब]], [[सिंध]], [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[हरियाणा]], पश्यिमी [[उत्तर प्रदेश]], [[जम्मू-कश्मीर]] के भागों में पाये जा चुके हैं। इस सभ्यता का फैलाव उत्तर में [[जम्मू]] के 'मांदा' से लेकर दक्षिण में [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] के मुहाने भगतराव तक और पश्चिमी में [[मकरान]] समुद्र तट पर सुत्कागेनडोर से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में [[मेरठ]] तक है। [[हड़प्पा सभ्यता]] का काल निर्धारण मुख्य रूप से मेसोपोटामिया में 'उर' और 'किश' स्थलों पर पाए गए हड़प्पाई मुद्राओं के आधार पर किया गया था। इस क्षेत्र में सर्वप्रथम प्रयास जॉन मार्शल का रहा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हड़प्पा सभ्यता]] | ||
{[[सुरकोटदा]] किसलिए प्रसिद्ध है? | {[[सुरकोटदा]] किसलिए प्रसिद्ध है? | ||
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-परिपक्व [[हड़प्पा संस्कृति]] के लिए | -परिपक्व [[हड़प्पा संस्कृति]] के लिए | ||
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||[[चित्र:Surkotada.jpg|right|100px|सुरकोटदा]]'सुरकोटदा' या 'सुरकोटडा' [[भारत]] में [[गुजरात]] के [[कच्छ ज़िला|कच्छ ज़िले]] में स्थित है। इस स्थल से [[हड़प्पा सभ्यता]] के विस्तार के प्रमाण मिले हैं। [[सुरकोटदा]] की खोज [[1964]] में जगपति जोशी ने की थी। इस स्थल से [[सिंधु सभ्यता]] के पतन के [[अवशेष]] परिलक्षित होते हैं। यहाँ से प्राप्त होने वाले अवशेषों में महत्त्वपूर्ण हैं- घोड़े की अस्थियाँ एवं एक अनोखी क़ब्रगाह। यहाँ पर एक क़ब्र बड़े आकार की शिला से ढंकी हुई मिली है। यह क़ब्र अभी तक ज्ञात सैंधव शव-विसर्जन परम्परा में सर्वथा नवीन प्रकार की है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुरकोटदा]] | ||[[चित्र:Surkotada.jpg|right|100px|सुरकोटदा]]'सुरकोटदा' या 'सुरकोटडा' [[भारत]] में [[गुजरात]] के [[कच्छ ज़िला|कच्छ ज़िले]] में स्थित है। इस स्थल से [[हड़प्पा सभ्यता]] के विस्तार के प्रमाण मिले हैं। [[सुरकोटदा]] की खोज [[1964]] में जगपति जोशी ने की थी। इस स्थल से [[सिंधु सभ्यता]] के पतन के [[अवशेष]] परिलक्षित होते हैं। यहाँ से प्राप्त होने वाले अवशेषों में महत्त्वपूर्ण हैं- घोड़े की अस्थियाँ एवं एक अनोखी क़ब्रगाह। यहाँ पर एक क़ब्र बड़े आकार की शिला से ढंकी हुई मिली है। यह क़ब्र अभी तक ज्ञात सैंधव शव-विसर्जन परम्परा में सर्वथा नवीन प्रकार की है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुरकोटदा]] | ||
{[[हड़प्पा सभ्यता]] की दो सबसे महत्त्वपूर्ण फसलें कौन सी थीं? | {[[हड़प्पा सभ्यता]] की दो सबसे महत्त्वपूर्ण फसलें कौन सी थीं? | ||
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+[[गेहूँ]] और [[जौ]] | +[[गेहूँ]] और [[जौ]] | ||
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||[[चित्र:Barley-1.jpg|right|100px|जौ]]जौ प्राचीन काल से ही प्रयोग किये जाने वाले अनाजों में प्रमुख है। इसका उपयोग प्राचीन काल से धार्मिक संस्कारों में होता आया है। [[जौ]] को [[संस्कृत]] में 'यव' कहते हैं। [[रूस]], [[अमरीका]], [[जर्मनी]], कनाडा और [[भारत]] में यह मुख्यत: पैदा होता है। हमारे [[ऋषि|ऋषियों]]-[[मुनि|मुनियों]] का प्रमुख आहार जौ ही था। [[वेद|वेदों]] द्वारा [[यज्ञ]] की आहुति के रूप में जौ को स्वीकारा गया है। इसका सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य [[उत्तर प्रदेश]] है, जबकि [[बिहार]] के पाँच प्रतिशत कृषि क्षेत्र में जौ की [[कृषि]] की जाती है। इसके अन्य उत्पादक राज्य [[राजस्थान]], [[मध्य प्रदेश]], [[हरियाणा]] एवं [[पंजाब]] है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जौ]] | ||[[चित्र:Barley-1.jpg|right|100px|जौ]]जौ प्राचीन काल से ही प्रयोग किये जाने वाले अनाजों में प्रमुख है। इसका उपयोग प्राचीन काल से धार्मिक संस्कारों में होता आया है। [[जौ]] को [[संस्कृत]] में 'यव' कहते हैं। [[रूस]], [[अमरीका]], [[जर्मनी]], कनाडा और [[भारत]] में यह मुख्यत: पैदा होता है। हमारे [[ऋषि|ऋषियों]]-[[मुनि|मुनियों]] का प्रमुख आहार जौ ही था। [[वेद|वेदों]] द्वारा [[यज्ञ]] की आहुति के रूप में जौ को स्वीकारा गया है। इसका सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य [[उत्तर प्रदेश]] है, जबकि [[बिहार]] के पाँच प्रतिशत कृषि क्षेत्र में जौ की [[कृषि]] की जाती है। इसके अन्य उत्पादक राज्य [[राजस्थान]], [[मध्य प्रदेश]], [[हरियाणा]] एवं [[पंजाब]] है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जौ]] | ||
{[[वेदान्त|वेदान्त दर्शन]] पर उल्लिखित [[ग्रंथ]] 'खण्डन-खाद्य' की रचना उम्बेक ने की थी। उम्बेक किस विद्वान का छद्दम नाम है? | {[[वेदान्त|वेदान्त दर्शन]] पर उल्लिखित [[ग्रंथ]] 'खण्डन-खाद्य' की रचना उम्बेक ने की थी। उम्बेक किस विद्वान का छद्दम नाम है? | ||
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+[[भवभूति]] | +[[भवभूति]] | ||
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||भवभूति लगभग 700 ई. पूर्व एक प्रसिद्ध भारतीय नाटककार और [[कवि]] थे, जिनके [[संस्कृत भाषा]] में लिखे गये [[नाटक]] अपने रहस्य और सजीव चरित्र चित्रण के लिखे विख्यात हैं। [[भवभूति]] द्वारा लिखे गये नाटक [[महाकवि कालिदास]] के श्रेष्ठ नाटकों की बराबरी करते हैं। भवभूति [[विदर्भ]] ([[महाराष्ट्र]] राज्य) के [[ब्राह्मण]] थे। वे [[कन्नौज]] (प्राचीन '[[कान्यकुब्ज]]', [[उत्तर प्रदेश]] राज्य) के राजा [[यशोवर्मन]] के दरबार में थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भवभूति]] | ||भवभूति लगभग 700 ई. पूर्व एक प्रसिद्ध भारतीय नाटककार और [[कवि]] थे, जिनके [[संस्कृत भाषा]] में लिखे गये [[नाटक]] अपने रहस्य और सजीव चरित्र चित्रण के लिखे विख्यात हैं। [[भवभूति]] द्वारा लिखे गये नाटक [[महाकवि कालिदास]] के श्रेष्ठ नाटकों की बराबरी करते हैं। भवभूति [[विदर्भ]] ([[महाराष्ट्र]] राज्य) के [[ब्राह्मण]] थे। वे [[कन्नौज]] (प्राचीन '[[कान्यकुब्ज]]', [[उत्तर प्रदेश]] राज्य) के राजा [[यशोवर्मन]] के दरबार में थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भवभूति]] | ||
{[[कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र]] को खोज निकालने एवं उस पर प्रामाणिक प्रकाश डालने का श्रेय किस इतिहासकार को प्राप्त है? | {[[कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र]] को खोज निकालने एवं उस पर प्रामाणिक प्रकाश डालने का श्रेय किस इतिहासकार को प्राप्त है? | ||
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-डॉ. जौली | -डॉ. जौली | ||
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||[[चित्र:Chanakya.jpg|right|100px|कौटिल्य]]'कौटिल्य' को 'चाणक्य' एवं 'विष्णुगुप्त' नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने '[[अर्थशास्त्र ग्रंथ|अर्थशास्त्र]]' नामक एक [[ग्रन्थ]] की रचना की थी, जो तत्कालीन राजनीति, अर्थनीति, [[इतिहास]], आचरण शास्त्र, [[धर्म]] आदि पर भली-भाँति प्रकाश डालता है। 'अर्थशास्त्र' [[मौर्य काल]] के समाज का दर्पण है, जिसमें समाज के स्वरूप का सर्वांग देखा जा सकता है। 20वीं शती में शामशास्त्री और गणपति शास्त्री ने अर्थशास्त्र की खोज की और उसे सम्पादित करके प्रकाशित किया। शामशास्त्री ने इसका [[अंग्रेज़ी]] अनुवाद [[1915]] में [[मैसूर]] से प्रकाशित किया था। गणपति शास्त्री ने इस पर एक [[टीका]] [[संस्कृत]] में लिखी थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कौटिल्य]] | ||[[चित्र:Chanakya.jpg|right|100px|कौटिल्य]]'कौटिल्य' को 'चाणक्य' एवं 'विष्णुगुप्त' नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने '[[अर्थशास्त्र ग्रंथ|अर्थशास्त्र]]' नामक एक [[ग्रन्थ]] की रचना की थी, जो तत्कालीन राजनीति, अर्थनीति, [[इतिहास]], आचरण शास्त्र, [[धर्म]] आदि पर भली-भाँति प्रकाश डालता है। 'अर्थशास्त्र' [[मौर्य काल]] के समाज का दर्पण है, जिसमें समाज के स्वरूप का सर्वांग देखा जा सकता है। 20वीं शती में शामशास्त्री और गणपति शास्त्री ने अर्थशास्त्र की खोज की और उसे सम्पादित करके प्रकाशित किया। शामशास्त्री ने इसका [[अंग्रेज़ी]] अनुवाद [[1915]] में [[मैसूर]] से प्रकाशित किया था। गणपति शास्त्री ने इस पर एक [[टीका]] [[संस्कृत]] में लिखी थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कौटिल्य]] | ||
{[[वेदव्यास|कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास]] ने प्रसिद्ध '[[महाभारत]]' ग्रंथ का प्रणयन किया। वह स्थल कौन-सा माना जाता है, जहाँ बैठकर व्यास ने इस [[ग्रंथ]] का प्रणयन किया? | {[[वेदव्यास|कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास]] ने प्रसिद्ध '[[महाभारत]]' ग्रंथ का प्रणयन किया। वह स्थल कौन-सा माना जाता है, जहाँ बैठकर व्यास ने इस [[ग्रंथ]] का प्रणयन किया? | ||
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-[[हिमालय]] | -[[हिमालय]] | ||
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||[[चित्र:Ram-Jhula-Bridge.jpg|right|100px|राम झूला, ऋषिकेश, उत्तराखंड]]'उत्तराखंड' [[भारत]] के उत्तर में स्थित एक राज्य है। वर्ष [[2000]] और [[2006]] के बीच यह [[उत्तरांचल]] के नाम से जाना जाता था। [[9 नवम्बर]], 2000 को [[उत्तराखंड]] भारत गणराज्य के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। प्राचीन धर्मग्रंथों में उत्तराखंड का उल्लेख 'केदारखंड', 'मानसखंड' और 'हिमवंत' के रूप में मिलता है। लोककथा के अनुसार [[पांडव]] यहाँ पर आए थे और विश्व के सबसे बड़े [[महाकाव्य|महाकाव्यों]] [[महाभारत]] व [[रामायण]] की रचना भी यहीं पर हुई थी। प्राचीन काल में यहाँ मानव निवास के प्रमाण मिलने के बावजूद इस इलाक़े के इतिहास के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[उत्तराखंड]] | ||[[चित्र:Ram-Jhula-Bridge.jpg|right|100px|राम झूला, ऋषिकेश, उत्तराखंड]]'उत्तराखंड' [[भारत]] के उत्तर में स्थित एक राज्य है। वर्ष [[2000]] और [[2006]] के बीच यह [[उत्तरांचल]] के नाम से जाना जाता था। [[9 नवम्बर]], 2000 को [[उत्तराखंड]] भारत गणराज्य के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। प्राचीन धर्मग्रंथों में उत्तराखंड का उल्लेख 'केदारखंड', 'मानसखंड' और 'हिमवंत' के रूप में मिलता है। लोककथा के अनुसार [[पांडव]] यहाँ पर आए थे और विश्व के सबसे बड़े [[महाकाव्य|महाकाव्यों]] [[महाभारत]] व [[रामायण]] की रचना भी यहीं पर हुई थी। प्राचीन काल में यहाँ मानव निवास के प्रमाण मिलने के बावजूद इस इलाक़े के इतिहास के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[उत्तराखंड]] | ||
{निम्नलिखित विद्रोहों में से किसको [[बंकिमचंद्र चटर्जी]] ने अपने उपन्यास '[[आनन्दमठ]]' में उल्लेख करके प्रसिद्ध किया? | {निम्नलिखित विद्रोहों में से किसको [[बंकिमचंद्र चटर्जी]] ने अपने उपन्यास '[[आनन्दमठ]]' में उल्लेख करके प्रसिद्ध किया? | ||
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-[[भील विद्रोह]] | -[[भील विद्रोह]] | ||
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||'संन्यासी विद्रोह' [[भारत]] की आज़ादी के लिए [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] में [[अंग्रेज़]] सरकार के विरुद्ध किया गया एक प्रबल विद्रोह था। बंगाल में अंग्रेज़ी हुकूमत के क़ायम होने पर ज़मींदार, कृषक, शिल्पकार सभी की स्थिति बहुत बदतर हो गई थी। इसके अतिरिक्त बंगाल का 1770 ई. का भयानक [[अकाल]] तथा अंग्रेज़ी सरकार द्वारा इसके प्रति बरती गई उदासीनता इस विद्रोह का प्रमुख कारण थी। 'संन्यासी विद्रोह' की स्पष्ट जानकारी [[बंकिमचन्द्र चटर्जी]] के [[उपन्यास]] '[[आनन्दमठ]]' में मिलती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[आनन्दमठ]] | ||'संन्यासी विद्रोह' [[भारत]] की आज़ादी के लिए [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] में [[अंग्रेज़]] सरकार के विरुद्ध किया गया एक प्रबल विद्रोह था। बंगाल में अंग्रेज़ी हुकूमत के क़ायम होने पर ज़मींदार, कृषक, शिल्पकार सभी की स्थिति बहुत बदतर हो गई थी। इसके अतिरिक्त बंगाल का 1770 ई. का भयानक [[अकाल]] तथा अंग्रेज़ी सरकार द्वारा इसके प्रति बरती गई उदासीनता इस विद्रोह का प्रमुख कारण थी। 'संन्यासी विद्रोह' की स्पष्ट जानकारी [[बंकिमचन्द्र चटर्जी]] के [[उपन्यास]] '[[आनन्दमठ]]' में मिलती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[आनन्दमठ]] | ||
{वर्ष [[1946]] में बनी अंतरिम सरकार में [[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] के पास कौन-सा विभाग था? | {वर्ष [[1946]] में बनी अंतरिम सरकार में [[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] के पास कौन-सा विभाग था? | ||
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-[[रक्षा मंत्रालय|रक्षा विभाग]] | -[[रक्षा मंत्रालय|रक्षा विभाग]] | ||
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||[[चित्र:Dr.Rajendra-Prasad.jpg|right|100px|डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]][[भारत]] के प्रथम [[राष्ट्रपति]] [[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी और विद्वान थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद 'इंडियन नेशनल कांग्रेस' के एक से अधिक बार अध्यक्ष रहे थे। सन [[1934]] में [[बम्बई]] में हुए 'इंडियन नेशनल कांग्रेस' के अधिवेशन की अध्यक्षता उन्होंने की थी। [[1946]] में [[जवाहर लाल नेहरू]] के नेतृत्व में बारह मंत्रियों के साथ एक अंतरिम सरकार बनी थी। इसमें राजेन्द्र प्रसाद 'कृषि और खाद्य मंत्री' नियुक्त हुए। यह काम उन्हें पसन्द था और वह तुरन्त काम में जुट गये। देश में इस समय खाद्य पदार्थों की बहुत कमी थी और उन्होंने खाद्य पदार्थों का उत्पादन बढ़ाने के लिये योजना भी बनाई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] | ||[[चित्र:Dr.Rajendra-Prasad.jpg|right|100px|डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]][[भारत]] के प्रथम [[राष्ट्रपति]] [[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी और विद्वान थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद 'इंडियन नेशनल कांग्रेस' के एक से अधिक बार अध्यक्ष रहे थे। सन [[1934]] में [[बम्बई]] में हुए 'इंडियन नेशनल कांग्रेस' के अधिवेशन की अध्यक्षता उन्होंने की थी। [[1946]] में [[जवाहर लाल नेहरू]] के नेतृत्व में बारह मंत्रियों के साथ एक अंतरिम सरकार बनी थी। इसमें राजेन्द्र प्रसाद 'कृषि और खाद्य मंत्री' नियुक्त हुए। यह काम उन्हें पसन्द था और वह तुरन्त काम में जुट गये। देश में इस समय खाद्य पदार्थों की बहुत कमी थी और उन्होंने खाद्य पदार्थों का उत्पादन बढ़ाने के लिये योजना भी बनाई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] | ||
{[[भगत सिंह]] एवं [[बटुकेश्वर दत्त]] ने 'असेम्बली बमकांड' की घटना को कब अंजाम दिया? | {[[भगत सिंह]] एवं [[बटुकेश्वर दत्त]] ने 'असेम्बली बमकांड' की घटना को कब अंजाम दिया? | ||
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+[[8 अप्रैल]], [[1929]] | +[[8 अप्रैल]], [[1929]] | ||
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||[[चित्र:Bhagat-Singh.gif|right|100px|भगत सिंह]]भगत सिंह [[भारत]] के अमर शहीद क्रांतिकारियों में गिने जाते हैं। [[अंग्रेज़]] सरकार [[दिल्ली]] की असेंबली में 'पब्लिक सेफ्टी बिल' और 'ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल' लाने की तैयारी में थी। ये बहुत ही दमनकारी क़ानून थे और अंग्रेज़ सरकार इन्हें पास करने का फैसला कर चुकी थी। क्रांतिकारियों द्वारा [[8 अप्रैल]], [[1929]] का दिन असेंबली में बम फेंकने के लिए तय हुआ और इस कार्य के लिए [[भगत सिंह]] एवं [[बटुकेश्वर दत्त]] निश्चित हुए। यह भी तय हुआ कि जब [[वायसराय]] 'पब्लिक सेफ्टी बिल' को क़ानून बनाने के लिए प्रस्तुत करे, ठीक उसी समय धमाका किया जाए और ऐसा ही किया भी गया। जैसे ही बिल संबंधी घोषणा की गई तभी भगत सिंह ने बम फेंका।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भगत सिंह]] एवं [[बटुकेश्वर दत्त]] | ||[[चित्र:Bhagat-Singh.gif|right|100px|भगत सिंह]]भगत सिंह [[भारत]] के अमर शहीद क्रांतिकारियों में गिने जाते हैं। [[अंग्रेज़]] सरकार [[दिल्ली]] की असेंबली में 'पब्लिक सेफ्टी बिल' और 'ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल' लाने की तैयारी में थी। ये बहुत ही दमनकारी क़ानून थे और अंग्रेज़ सरकार इन्हें पास करने का फैसला कर चुकी थी। क्रांतिकारियों द्वारा [[8 अप्रैल]], [[1929]] का दिन असेंबली में बम फेंकने के लिए तय हुआ और इस कार्य के लिए [[भगत सिंह]] एवं [[बटुकेश्वर दत्त]] निश्चित हुए। यह भी तय हुआ कि जब [[वायसराय]] 'पब्लिक सेफ्टी बिल' को क़ानून बनाने के लिए प्रस्तुत करे, ठीक उसी समय धमाका किया जाए और ऐसा ही किया भी गया। जैसे ही बिल संबंधी घोषणा की गई तभी भगत सिंह ने बम फेंका।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भगत सिंह]] एवं [[बटुकेश्वर दत्त]] | ||
{निम्नलिखित में से कौन '[[जलियाँवाला बाग़|जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड]]' के लिए ज़िम्मेदार था? | {निम्नलिखित में से कौन '[[जलियाँवाला बाग़|जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड]]' के लिए ज़िम्मेदार था? | ||
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-[[सर चार्ल्स मैटकाफ़|चार्ल्स मैटकाफ़]] | -[[सर चार्ल्स मैटकाफ़|चार्ल्स मैटकाफ़]] | ||
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||[[चित्र:General-Dyer.jpg|100px|right|जनरल डायर]]जनरल डायर ब्रिटिश सरकार का एक सेनाधिकारी था। [[10 अप्रैल]], [[1919]] को [[अमृतसर]] में जो प्रदर्शन हुआ था, वह अधिक उग्र था, जिसमें चार [[अंग्रेज़]] मारे गए थे। एक यूरोपीय [[ईसाई]] पादरी को पीटा गया और कुछ बैंकों और सरकारी भवनों में [[आग]] लगा दी गई। ब्रिटिश सरकार ने तुरन्त बदले की कार्रवाई करने का निश्चय किया और एक घोषणा प्रकाशित कर [[अमृतसर]] में सभाओं आदि पर प्रतिबंध लगा दिया तथा नगर प्रशासन [[जनरल डायर]] के सुपुर्द कर दिया। [[जलियाँवाला बाग़]] में सभा का समाचार पाते ही डायर अपने 90 सशस्त्र सैनिकों के साथ बाग़ आया और बाग़ में प्रवेश एवं निकास के एकमात्र रास्ते को घेर लिया। बिना किसी पूर्व चेतावनी के ही चीख़ते, आतंकित भागते निहत्थे बच्चों, महिलाओं और बूढ़ों की भीड़ पर 10-15 मिनट में ही 1650 गोलियाँ दाग़ दी गईं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जनरल डायर]] | ||[[चित्र:General-Dyer.jpg|100px|right|जनरल डायर]]जनरल डायर ब्रिटिश सरकार का एक सेनाधिकारी था। [[10 अप्रैल]], [[1919]] को [[अमृतसर]] में जो प्रदर्शन हुआ था, वह अधिक उग्र था, जिसमें चार [[अंग्रेज़]] मारे गए थे। एक यूरोपीय [[ईसाई]] पादरी को पीटा गया और कुछ बैंकों और सरकारी भवनों में [[आग]] लगा दी गई। ब्रिटिश सरकार ने तुरन्त बदले की कार्रवाई करने का निश्चय किया और एक घोषणा प्रकाशित कर [[अमृतसर]] में सभाओं आदि पर प्रतिबंध लगा दिया तथा नगर प्रशासन [[जनरल डायर]] के सुपुर्द कर दिया। [[जलियाँवाला बाग़]] में सभा का समाचार पाते ही डायर अपने 90 सशस्त्र सैनिकों के साथ बाग़ आया और बाग़ में प्रवेश एवं निकास के एकमात्र रास्ते को घेर लिया। बिना किसी पूर्व चेतावनी के ही चीख़ते, आतंकित भागते निहत्थे बच्चों, महिलाओं और बूढ़ों की भीड़ पर 10-15 मिनट में ही 1650 गोलियाँ दाग़ दी गईं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जनरल डायर]] | ||
{[[भारत]] को आज़ादी मिलने के बाद [[लक्षद्वीप]] में [[राष्ट्रीय ध्वज]] फहराने के लिए [[भारतीय नौसेना]] का एक जहाज़ किसने भेजा। | {[[भारत]] को आज़ादी मिलने के बाद [[लक्षद्वीप]] में [[राष्ट्रीय ध्वज]] फहराने के लिए [[भारतीय नौसेना]] का एक जहाज़ किसने भेजा। | ||
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+[[सरदार वल्लभ भाई पटेल]] | +[[सरदार वल्लभ भाई पटेल]] | ||
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||[[चित्र:Sardar-Vallabh-Bhai-Patel.jpg|right|100px|सरदार पटेल]]'सरदार वल्लभ भाई पटेल' भारतीय बैरिस्टर और राजनेता थे। वे [[भारत]] के '[[स्वाधीनता संग्राम]]' के दौरान '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के नेताओं में से एक थे। [[लक्षद्वीप]] समूह को भारत के साथ मिलाने में भी [[सरदार पटेल]] की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस क्षेत्र के लोग देश की मुख्यधारा से कटे हुए थे और उन्हें भारत की आजादी की जानकारी [[15 अगस्त]], [[1947]] के बाद मिली। हालांकि यह क्षेत्र [[पाकिस्तान]] के नजदीक नहीं था, लेकिन पटेल को लगता था कि इस पर पाकिस्तान दावा कर सकता है। इसलिए ऐसी किसी भी स्थिति को टालने के लिए पटेल ने लक्षद्वीप में '[[राष्ट्रीय ध्वज]]' फहराने के लिए [[नौसेना]] का एक जहाज़ भेजा। इसके कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तानी नौसेना के जहाज लक्षद्वीप के आस-पास मंडराते देखे गए, लेकिन वहाँ [[भारत]] का झंडा लहराते देख वे वापस चले गए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सरदार वल्लभ भाई पटेल]] | ||[[चित्र:Sardar-Vallabh-Bhai-Patel.jpg|right|100px|सरदार पटेल]]'सरदार वल्लभ भाई पटेल' भारतीय बैरिस्टर और राजनेता थे। वे [[भारत]] के '[[स्वाधीनता संग्राम]]' के दौरान '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के नेताओं में से एक थे। [[लक्षद्वीप]] समूह को भारत के साथ मिलाने में भी [[सरदार पटेल]] की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस क्षेत्र के लोग देश की मुख्यधारा से कटे हुए थे और उन्हें भारत की आजादी की जानकारी [[15 अगस्त]], [[1947]] के बाद मिली। हालांकि यह क्षेत्र [[पाकिस्तान]] के नजदीक नहीं था, लेकिन पटेल को लगता था कि इस पर पाकिस्तान दावा कर सकता है। इसलिए ऐसी किसी भी स्थिति को टालने के लिए पटेल ने लक्षद्वीप में '[[राष्ट्रीय ध्वज]]' फहराने के लिए [[नौसेना]] का एक जहाज़ भेजा। इसके कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तानी नौसेना के जहाज लक्षद्वीप के आस-पास मंडराते देखे गए, लेकिन वहाँ [[भारत]] का झंडा लहराते देख वे वापस चले गए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सरदार वल्लभ भाई पटेल]] | ||
{एक शासक जिसे [[महाभारत]] में दन्तमित्र, [[बेसनगर]] में दिमित्र एवं [[दिव्यावदान]] में कृमिस कहा जाता है, वह सम्भवत: है- | {एक शासक जिसे [[महाभारत]] में दन्तमित्र, [[बेसनगर]] में दिमित्र एवं [[दिव्यावदान]] में कृमिस कहा जाता है, वह सम्भवत: है- | ||
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-[[मेनेण्डर]] | -[[मेनेण्डर]] | ||
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||[[चित्र:Demetrios-Coin.jpg|right|100px|डेमेट्रियस का सिक्का]]डेमेट्रियस अपने [[पिता]] यूथीडेमस की मृत्यु के बाद राजा बना था। सम्भवतः [[सिकन्दर]] के बाद [[डेमेट्रियस]] पहला [[यूनानी]] शासक था, जिसकी सेना भारतीय सीमा में प्रवेश कर सकी थी। उसने एक बड़ी सेना के साथ लगभग 183 ई. पू. में [[हिन्दुकुश पर्वत]] को पार कर [[सिंध]] और [[पंजाब]] पर अधिकार कर लिया था। डेमेट्रियस के भारतीय अभियान की पुष्टि '[[महाभाष्य]]', 'गार्गी संहिता' एवं '[[मालविकाग्निमित्रम्]]' से होती है। इस प्रकार डेमेट्रियास ने पश्चिमोत्तर [[भारत]] में इंडो-यूनानी सत्ता की स्थापना की थी।डेमेट्रियस ने भारतीय राजाओं की उपाधि धारण कर यूनानी तथा खरोष्ठी लिपि में सिक्के भी चलवाये थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[डेमेट्रियस]] | ||[[चित्र:Demetrios-Coin.jpg|right|100px|डेमेट्रियस का सिक्का]]डेमेट्रियस अपने [[पिता]] यूथीडेमस की मृत्यु के बाद राजा बना था। सम्भवतः [[सिकन्दर]] के बाद [[डेमेट्रियस]] पहला [[यूनानी]] शासक था, जिसकी सेना भारतीय सीमा में प्रवेश कर सकी थी। उसने एक बड़ी सेना के साथ लगभग 183 ई. पू. में [[हिन्दुकुश पर्वत]] को पार कर [[सिंध]] और [[पंजाब]] पर अधिकार कर लिया था। डेमेट्रियस के भारतीय अभियान की पुष्टि '[[महाभाष्य]]', 'गार्गी संहिता' एवं '[[मालविकाग्निमित्रम्]]' से होती है। इस प्रकार डेमेट्रियास ने पश्चिमोत्तर [[भारत]] में इंडो-यूनानी सत्ता की स्थापना की थी।डेमेट्रियस ने भारतीय राजाओं की उपाधि धारण कर यूनानी तथा खरोष्ठी लिपि में सिक्के भी चलवाये थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[डेमेट्रियस]] | ||
{[[कालिदास]] के निम्न ग्रंथों में से किस [[ग्रंथ]] से [[शुंग वंश|शुंगों]] के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है? | {वह कौन-सा [[ग्रंथ]] है, जिसके आधार पर मैथ्यू अर्नाल्ड ने 'लाइट ऑफ़ एशिया' नामक ग्रंथ का प्रणयन किया? | ||
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-[[अंगुत्तर निकाय]] | |||
-महापरिनिब्बानसुत | |||
+[[ललितविस्तर]] | |||
-[[बुद्धचरित]] | |||
||'ललितविस्तर' वैपुल्यसूत्रों में एक अन्यतम और पवित्रतम महायानसूत्र माना जाता है। इसमें सम्पूर्ण '[[बुद्धचरित]]' का वर्णन है। [[महात्मा बुद्ध]] ने [[पृथ्वी]] पर जो-जो क्रीड़ा (ललित) कीं, उनका वर्णन होने के कारण ही इसे '[[ललितविस्तर]]' कहा जाता है। इसे 'महाव्यूह' के नाम से भी जानते हैं। 'ललितविस्तर' में कुल 27 अध्याय हैं, जिन्हें 'परिवर्त' कहा जाता है। तिब्बती भाषा में भी इसका अनुवाद उपलब्ध है। समग्र मूल [[ग्रन्थ]] का सम्पादन डॉ. एस. लेफमान ने किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ललितविस्तर]] | |||
{[[कालिदास]] के निम्न ग्रंथों में से किस [[ग्रंथ]] से [[शुंग वंश|शुंगों]] के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है? | |||
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-[[कुमारसम्भव]] | -[[कुमारसम्भव]] | ||
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+[[मालविकाग्निमित्रम्]] | +[[मालविकाग्निमित्रम्]] | ||
||[[चित्र:Poet-Kalidasa.jpg|right|100px|कालिदास]]चौथी शताब्दी के उत्तरार्द्ध एवं पाँचवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में [[कालिदास]] द्वारा रचित '[[मालविकाग्निमित्रम्]]' [[संस्कृत]] ग्रंथ से [[पुष्यमित्र शुंग]] एवं उसके पुत्र [[अग्निमित्र]] के समय के राजनीतिक घटनाचक्र तथा [[शुंग वंश|शुंग]] एवं [[यवन]] संघर्ष का उल्लेख मिलता है। 'मालविकाग्निमित्रम्' श्रृंगार रस प्रधान पाँच अंकों का [[नाटक]] है। यह महाकवि कालिदास की प्रथम नाट्य कृति है; इसलिए इसमें वह लालित्य, माधुर्य एवं भावगाम्भीर्य दृष्टिगोचर नहीं होता, जो '[[विक्रमोर्वशीय]]' अथवा '[[अभिज्ञानशाकुन्तलम]]' में है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मालविकाग्निमित्रम्]] | ||[[चित्र:Poet-Kalidasa.jpg|right|100px|कालिदास]]चौथी शताब्दी के उत्तरार्द्ध एवं पाँचवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में [[कालिदास]] द्वारा रचित '[[मालविकाग्निमित्रम्]]' [[संस्कृत]] ग्रंथ से [[पुष्यमित्र शुंग]] एवं उसके पुत्र [[अग्निमित्र]] के समय के राजनीतिक घटनाचक्र तथा [[शुंग वंश|शुंग]] एवं [[यवन]] संघर्ष का उल्लेख मिलता है। 'मालविकाग्निमित्रम्' श्रृंगार रस प्रधान पाँच अंकों का [[नाटक]] है। यह महाकवि कालिदास की प्रथम नाट्य कृति है; इसलिए इसमें वह लालित्य, माधुर्य एवं भावगाम्भीर्य दृष्टिगोचर नहीं होता, जो '[[विक्रमोर्वशीय]]' अथवा '[[अभिज्ञानशाकुन्तलम]]' में है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मालविकाग्निमित्रम्]] | ||
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11:19, 13 मार्च 2013 का अवतरण
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