"कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़": अवतरणों में अंतर
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==स्थापना== | |||
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14:23, 6 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़
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विवरण | 'कीर्ति स्तम्भ' राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है। यह एक स्तम्भ या मीनार है, जिसका निर्माण महाराणा कुम्भा ने 1448 ई. में करवाया था। इसे 'विजय स्तम्भ' भी कहा जाता है। | ||
राज्य | राजस्थान | ||
ज़िला | चित्तौड़गढ़ | ||
स्थापना | 12वीं सदी | ||
मार्ग स्थिति | कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़ की बूंदी रोड से 4.1 किमी की दूरी पर स्थित है। | ||
कैसे पहुँचें | हवाई जहाज़, रेल, बस आदि | ||
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महाराणा प्रताप हवाई अड्डा | ||
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चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन, चंडेरिया रेलवे स्टेशन, शंभूपुरा रेलवे स्टेशन | ||
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मुरली बस अड्डा | ||
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स्थानीय बस, ऑटो रिक्शा, साईकिल रिक्शा | ||
कहाँ ठहरें | होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह | ||
एस.टी.डी. कोड | 01472 | ||
ए.टी.एम | लगभग सभी | ||
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मानचित्र | ||
संबंधित लेख | चित्तौड़गढ़ क़िला, कलिका माता का मन्दिर, रानी पद्मिनी का महल | भाषा | हिंदी, राजस्थानी, अंग्रेजी |
अन्य नाम | टॉवर ऑफ़ फ़ेम | ||
अन्य जानकारी | कीर्ति स्तम्भ वास्तुकला की दृष्टि से अपने आपमें मंज़िल पर झरोखा होने से इसके भीतरी भाग में भी प्रकाश रहता है। | ||
अद्यतन | 13:56, 29 नवम्बर 2011 (IST)
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कीर्ति स्तम्भ का निर्माण महाराणा कुम्भा ने 1448 ई. में करवाया था। यह स्तम्भ राजस्थान के चित्तौड़गढ़ क़िले में स्थित है। इस शानदार स्तम्भ को 'विजय स्तम्भ' के रूप में भी जाना जाता है। महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूदशाह ख़िलजी को युद्ध में प्रथम बार परास्त कर उसकी यादगार में इष्टदेव विष्णु के निमित्त यह कीर्ति स्तम्भ बनवाया था।
स्थापना
इस स्तम्भ की प्रतिष्ठा सन 1448 (संवत 1505) में हुई थी। भगवान विष्णु को समर्पित यह स्तम्भ 37.19 मीटर ऊँचा है तथा नौ मंजिलों में विभक्त है। कीर्ति स्तम्भ वास्तुकला की दृष्टि से अपने आप में एक अद्भुत मीनार है। मंज़िल पर झरोखा होने से इसके भीतरी भाग में भी प्रकाश रहता है।
शिल्पकारी

इसमें विष्णु के विभिन्न रुपों, जैसे- जनार्दन, अनन्त आदि उनके अवतारों तथा ब्रह्मा, शिव, भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं, अर्धनारीश्वर[1], उमामहेश्वर, लक्ष्मीनारायण, ब्रह्मासावित्री, हरिहर[2], हरिहर पितामह[3], ॠतु, आयुध[4], दिक्पाल तथा रामायण तथा महाभारत के पात्रों की सैकड़ों मूर्तियाँ खुदी हैं। प्रत्येक मूर्ति के ऊपर या नीचे उनका नाम भी खुदा हुआ है। इस प्रकार प्राचीन मूर्तियों के विभिन्न भंगिमाओं का विश्लेषण के लिए यह भवन एक अपूर्व साधन है। कुछ चित्रों में देश की भौगोलिक विचित्रताओं को भी उत्कीर्ण किया गया है। कीर्तिस्तम्भ के ऊपरी मंज़िल से दुर्ग एवं निकटवर्ती क्षेत्रों का विहंगम दृश्य दिखता है।
लेख
चित्तौड़ के शासकों के जीवन तथा उपलब्धियों का विस्तृत क्रमवार लेखा-जोखा सबसे ऊपर की मंज़िल में उत्कीर्ण है, जिसे राणा कुम्भा की सभा के विद्वान् अत्री ने लिखना शुरू किया था तथा बाद में उनके पुत्र महेश ने इसे पूरा किया। कोई भी व्यक्ति आन्तरिक रूप से व्यवस्थित सीढ़ियों द्वारा सबसे ऊपर की मंज़िल तक पहुँच सकता है। इस मीनार के वास्तुविद् सूत्रधार जैता तथा उसके तीन पुत्रों- नापा, पुजा तथा पोमा के नाम पांचवीं मंज़िल में उत्कीर्ण हैं।

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वीथिका
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कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़
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कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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