पार्थिव संवत्सर

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पार्थिव हिन्दू धर्म में मान्य संवत्सरों में से एक है। यह 60 संवत्सरों में उन्नीसवाँ है। इस संवत्सर के आने पर विश्व में निरंतर वर्षा होती है और सस्य सम्पत्ति में बढ़ोत्तरी होती है। इस संवत्सर का स्वामी पितरों को माना गया है।

  • पार्थिव संवत्सर में जन्म लेने वाला शिशु धर्म-कर्म में रत रहने वाला, सर्वशास्त्रों में प्रवीण, कलाओं में चतुर, विलासी और कुल का मुखिया होता है।
  • ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरम्भ चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से किया था, अतः नव संवत का प्रारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है।
  • हिन्दू परंपरा में समस्त शुभ कार्यों के आरम्भ में संकल्प करते समय उस समय के संवत्सर का उच्चारण किया जाता है।
  • संवत्सर 60 हैं। जब 60 संवत पूरे हो जाते हैं तो फिर पहले से संवत्सर का प्रारंभ हो जाता है।


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