पर्दा प्रथा

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पर्दा प्रथा
पर्दा प्रथा के अंतर्गत बुरका पहने एक मुस्लिम युवती
विवरण 'पर्दा प्रथा' सारे विश्व में काफ़ी पुराने समय से प्रचलित है। 'पर्दा' एक इस्लामी शब्द है, जो अरबी भाषा में फ़ारसी भाषा से आया था।
देश सभी मुस्लिम देशों तथा भारत की कुछ हिन्दू जातियों में भी यह प्रथा प्रचलित है।
भारत में शुरुआत इस प्रथा की शुरुआत भारत में12वीं सदी से मानी जाती है।
विशेष इस प्रथा ने मुग़ल शासकों के दौरान अपनी जड़े काफ़ी मज़बूत कर ली थीं। इसका ज्यादातर विस्तार राजस्थान की राजपूत जातियों में हुआ।
अन्य जानकारी 15वीं, 16वीं शताब्दी के आते-आते यह पर्दा उत्तर भारत की स्त्रियों की सामान्य जीवन शैली बन गई। यहाँ तक कि खेती मज़दूरी करने वाले वर्ग की महिलाएं भी पर्दा करने लगी थीं।

पर्दा प्रथा भारत ही नहीं, अपितु विश्व के कई मुस्लिम देशों में काफ़ी पुराने समय से प्रचलित है। 'पर्दा' एक इस्लामी शब्द है, जो अरबी भाषा में फ़ारसी भाषा से आया। इसका अर्थ होता है- "ढकना" या "अलग करना"।

इतिहास

पर्दा प्रथा का एक पहलू है बुर्क़ा का चलन। बुर्का एक तरह का घूँघट है, जो मुस्लिम समुदाय की महिलाएँ और लड़कियाँ कुछ खास जगहों पर खुद को पुरुषों की निगाह से अलग या दूर रखने के लिये इस्तेमाल करती हैं। भारत में हिन्दुओं में पर्दा प्रथा इस्लाम की देन है। इस्लाम के प्रभाव से तथा इस्लामी आक्रमण के समय आक्रमणकारियों से बचाव के लिये हिन्दू स्त्रियाँ भी पर्दा करने लगी थीं। इस प्रथा ने मुग़ल शासकों के दौरान अपनी जड़ें काफ़ी मज़बूत की। वैसे इस प्रथा की शुरुआत भारत में12वीं सदी से मानी जाती है। इसका ज्यादातर विस्तार राजस्थान की राजपूत जाति में था। 20वीं सदी के उतरार्द्ध में इस प्रथा के विरोध के फलस्वरूप इसमें कमी आई।

भारत के बाहर के जगत् पर दृष्टि डालें तो दिखता है कि ईसा के जन्म से 500 वर्ष पूर्व यूनानी स्त्रियां किसी संरक्षक के बिना घर से बाहर अकेले जा नहीं सकती थीं। पति के द्वारा बुलाए अतिथियों से मिलने की अनुमति उन्हें नहीं होती थी। मिनिएंदर ने अपने नाटकों में एक पात्र के द्वारा यह कहलवाया है कि "स्वतंत्रता पूर्वक घूमने वाली स्त्री के लिए गली का द्वार बंद कर देना चाहिए।" स्पार्टा में स्त्रियां सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग नहीं ले सकती थीं। ईसा से 300 वर्ष पूर्व कुलीन-अभिजात वर्ग की असीरियन महिलाओं में पर्दा प्रथा थी। साधारण महिलाओं और वेश्याओं को पर्दे की अनुमति नहीं थी। सीरिया में विवाहित स्त्रियां अपने चेहरे को एक विशेष प्रकार के आवरण से ढके रहती थीं।[1]

भारतीय संदर्भ

भारत के संदर्भ में ईसा से 500 वर्ष पूर्व रचित 'निरुक्त' में इस तरह की प्रथा का वर्णन कहीं नहीं मिलता। निरुक्तों में संपत्ति संबंधी मामले निपटाने के लिए न्यायालयों में स्त्रियों के आने जाने का उल्लेख मिलता है। न्यायालयों में उनकी उपस्थिति के लिए किसी पर्दा व्यवस्था का विवरण ईसा से 200 वर्ष पूर्व तक नहीं मिलता। इस काल के पूर्व के प्राचीन वेदों तथा संहिताओं में पर्दा प्रथा का विवरण नहीं मिलता। ऋग्वेद[2] ने लोगों को विवाह के समय कन्या की ओर देखने को कहा है-

"यह कन्या मंगलमय है, एकत्र हो और इसे देखो, इसे आशीष देकर ही तुम लोग अपने घर जा सकते हो।"

'आश्वलायनगृह्यसूत्र'[3] के अनुसार दुल्हन को अपने घर ले आते समय दूल्हे को चाहिए कि वह प्रत्येक निवेश स्थान (रुकने के स्थान) पर दर्शकों को ऋग्वेद[4] के उपर्युक्त मंत्र के साथ दिखाए।

इससे स्पष्ट है कि उन दिनों वधुओं द्वारा अवगुण्ठन[5] नहीं धारण किया जाता था, प्रत्युत वे सबके सामने निरावगुण्ठन आती थी।[6] पर्दा प्रथा का उल्लेख सबसे पहलेे महाकाव्यों में हुआ है पर उस समय यह केवल कुछ राजपरिवारों तक ही सीमित था।[7]

पर्दा किये पानी लाती एक स्त्री

कुछ विद्वानों के मतानुसार 'रामायण' और 'महाभारत' कालीन स्त्रियां किसी भी स्थान पर पर्दा अथवा घूंघट का प्रयोग नहीं करती थीं। जातक कथाओं, भास के नाटकों तथा भवभूति की रचनाओं में कहीं-कहीं स्त्रियों के पर्दे में रहने का उल्लेख मिलता है। अजंता और सांची की कलाकृतियों में भी स्त्रियों को बिना घूंघट दिखाया गया है। मनु और याज्ञवल्क्य ने स्त्रियों की जीवन शैली के संबंध में कई नियम बनाए हुए हैं, परंतु कहीं भी यह नहीं कहा है कि स्त्रियों को पर्दे में रहना चाहिए। ज्यादातर संस्कृत नाटकों में भी पर्दे का उल्लेख नहीं है। यहां तक कि 10वीं शताब्दी के प्रारंभ में तक भारतीय राज परिवारों की स्त्रियां बिना पर्दे के सभा में तथा घर से बाहर भ्रमण करती थीं, जैसा कि एक अरब यात्री अबू जैद ने वर्णन किया है। स्पष्ट है कि उस समय तक पर्दा प्रथा प्रचलित नहीं थी, जैसी कि अभी नज़र आती है।

मध्य काल में स्त्री की स्थिति

मध्य काल पर नज़र डालें तो 16वीं शताब्दी के रूस में पिता एवं भाई अपनी पुत्री और बहिन का मुख देख नहीं सकते थे। 17वीं शताब्दी तक इंग्लैंड में भी स्त्रियां न तो अकेले यात्रा कर सकती थीं, न ही अपने किसी पुरुष साथी कर्मचारी को घर आमंत्रित कर सकती थीं। अगर कोई स्त्री सार्वजनिक सभा में कोई वक्तव्य दे देती तो वह उसके लिए अत्यंत अपमानजनक माना जाता था।

इतिहासकारों के अनुसार भारत में मुस्लिम साम्राज्य के विस्तार के साथ-साथ पर्दा प्रथा ने भी सामाजिक व्यवस्था में अपने पैर जमा लिए। 'धर्मशास्त्र का इतिहास’ के अनुसार 'उच्च कुल की नारियां बिना अवगुण्ठन के बाहर नहीं आती थीं, किंतु साधारण स्त्रियों के साथ ऐसी बात नहीं थी। उत्तरी भारत एवं पूर्वी भारत में पर्दा की प्रथा जो सर्वसाधारण में पाई जाती है, उसका आरंभ मुसलमानों के आगमन से हुआ।’[8] इसके तीन कारण थे-

  1. हिन्दू स्त्रियों को सुरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से
  2. विजेता शासकों की शैली का चाहे-अनचाहे तरीके से अनुसरण
  3. विपरीत परिस्थितियों के कारण स्त्रियों में बढ़ती अशिक्षा और मुस्लिम शासकों के राज में गिरता स्तर
घूँघट किए एक स्त्री, जोधपुर

सर्वप्रथम हिन्दू सरदारों और उच्च वर्ग ने शासकों का अनुसरण कर अपने अंत:पुरों में इस प्रथा को लागू किया फिर उनका अनुसरण कर समाज के अन्य वर्गों ने भी उसे अपना लिया।

स्त्री शिक्षा समाप्त होने, कम आयु में विवाह होने के कारण अनुभवहीन स्त्रियों का परिवार में सम्मानजनक स्थान नहीं रहा। 15वीं, 16वीं शताब्दी के आते-आते पर्दा उत्तर भारत की स्त्रियों की सामान्य जीवन शैली बन गई, सम्मान और कुलीनता का हिस्सा बन गया। यहां तक कि खेती मज़दूरी करने वाले वर्ग की महिलाएं तक पर्दा करने लगीं। इससे पुरुषों का वर्चस्व बढ़ता चला गया। स्त्रियों का सामाजिक व राजनैतिक गतिविधियों में योगदान समाप्त होता चला गया। यह कैसी विडंबना है कि जो पर्दा स्त्रियों की कुलीनता, सम्मान का प्रतीक था, वही स्त्रियों के लिए दुर्भाग्यशाली बन गया। स्त्रियां दीन हीन जीवन बिताने को बाध्य हो गईं। इस दृष्टि से मध्य काल स्त्रियों के जीवन का काला पन्ना साबित हुआ।

आज भी अभिशाप

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई महिलाओं ने पर्दे का त्याग कर आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था और इसका अनुकरणीय प्रभाव भी पड़ा था। यह शिक्षा का परिणाम था, परंतु, आश्चर्य इस बात का है कि मध्य काल की परिस्थितियों में पैदा हुआ, मुस्लिम एवं ब्रिटिश काल में पला-बढ़ा पर्दा आज भी आधुनिक भारत में पांव जमाए हुए है। आधुनिक भारत की स्त्री इस सड़ी-गली, अमानवीय, महिलाओं की प्रगति में बाधक इस कुप्रथा को अभिशाप की भाँति आज भी क्यों झेल रही है? जो एक प्रकार से भारतीय स्त्री को दोयम दर्जा प्रदान कर रही है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. क्या भारत में पर्दा प्रथा सदा से रही है (हिन्दी) उदयइण्डिया। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2015।
  2. 10/85/33
  3. 1/8/7|(1/8/7
  4. 10/85/33
  5. पर्दा या घुंघट
  6. धर्मशास्त्र का इतिहास पृ.336
  7. देखें उक्त पृ. 336,7
  8. धर्मशास्त्र का इतिहास, पृ. 337

बाहरी कड़ियाँ

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