समाधि प्रथा

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समाधि प्रथा में कोई पुरुष या साधु महात्मा मृत्यु को वरण करने के उद्देश्य से जल समाधि[1] या भू-समाधि[2] ले लिया करते थे। यह कृत्य आत्महत्या के समान था, लेकिन ऐसे पुरुषों को जनता बड़ी श्रद्धा से देखती थी और उनकी पूजा करती थी।

  • सर्वप्रथम जयपुर, राजस्थान के पॉलिटिकल एजेण्ट लुडलो के प्रयासों से सन 1844 में जयपुर राज्य ने समाधि प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया।
  • इस प्रथा को पूर्णरूपेण समाप्त करने के लिए सन 1861 में एक नियम पारित किया गया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. किसी तालाब में पानी में बैठकर अपनी जान दे देना।
  2. जमीन में गड्ढ़ा खोदकर बैठ जाना व उसे मिट्टी से भर देना।

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