गीता 10:30

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गीता अध्याय-10 श्लोक-30 / Gita Chapter-10 Verse-30


प्रह्रादश्चास्मि दैत्यानां काल: कलयतामहम् ।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ।।30।।



मैं दैत्यों में प्रह्लाद और गणना करने वालों का समय हूँ तथा पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में गरुड़ हूँ ।।30।।

Among the daityas, I am the great devotee Prahlada; and among reckoners, I am time. So among quadrupeds, I am the lion; and among birds, I am Garuda. (30)


दैत्यानाम् = दैत्यों में; कलयताम् = गिनती करने वालों में; काल: =समय; मृगाणाम् = पशुओं में; मृगेन्द्र: = मृगराज(सिंह); पक्षिणाम् = पक्षियों में; वैनतेय: =गरुड़



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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