मसनवी
मसनवी का शाब्दिक अर्थ 'दो' होता है। यह काव्य का ऐसा रूप है, जिसके हर शेर के दोनों मिस्रे एक ही 'रदीफ़'[1] और 'क़ाफ़िए' में होते हैं। हर शेर का रदीफ़ और क़ाफ़िया आपस में अलग-अलग भी हो सकता है। इसलिए मसनवी में शायर को क्रमबद्ध विषय वर्णन में बड़ी आसानी होती है। क़सीदा या ग़ज़ल में सब शेरों में एक ही रदीफ़ और क़ाफ़िये की पाबन्दी के कारण क्रमबद्ध वर्णन कठिन होता है, परंतु मसनवी में यह पाबन्दी नहीं है।[2]
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शेरों की संख्या
मसनवी के लिए सात बह्रें नियत हैं। इन्हीं सात बह्रों में मसनवी लिखी जा सकती है। मसनवी में शेरों की संख्या की कोई सीमा नहीं है। छोटी मसनवियाँ आठ, दस, बारह शेरों की भी हैं और बड़ी मसनवियों में शेरों की संख्या हज़ारों तक पायी जाती है। फ़ारसी में फ़िरदौसी का प्रसिद्ध 'शाहनामा' मसनवी ही है। इसमें साठ हज़ार शेर हैं।
विषय
मसनवी में विषय की भी कोई सीमा नहीं है। कवि जिस विषय पर चाहे, मसनवी लिख सकता है। उर्दू मसनवी लिखने वालों ने मसनवियों में आख्यान भी लिखे हैं, भगवान की प्रशंसा भी की है तथा साहित्यिक तत्त्वों और प्राकृतिक दृश्यों को भी चित्रित किया है।[2]
विशेषता
मसनवी की विशेषता यह है कि जिस घटना या वृत्त का वर्णन किया जाय, उसे सरलता तथा विस्तार के साथ इस प्रकार वर्णित किया जाय कि वह घटना आँखों के सामने फिरने लगे और पूरा वातावरण चलचित्र की तरह सामने आ जाय। उर्दू की मसनवियों से साहित्यिक तत्वों के साथ बहादुरी की घटनाओं तथा उन सामाजिक स्थितियों का ज्ञान होता है, जो तत्कालीन रहन-सहन, रीति-रिवाज का यथातथ्य परिचय देती हैं।
प्रेमाख्यानक काव्य
हिन्दी के प्रेमाख्यानक काव्य की परम्परा में इसी काव्य रूप को अपनाया गया है। मलिक मुहम्मद जायसी का 'पद्मावत' मसनवी ही है। इस दृष्टि से मसनवी को भी एक ऐसे कथा काव्य का प्रतिरूप कह सकते हैं, जो महाकाव्य के निकट पहुँच सकता है।
कवि
उर्दू के अधिकतर कवियों ने छोटी-बड़ी मसनवियाँ लिखी हैं। इनमें 'मीर', 'मीरहसन', 'दयाशंकर', 'नसीम', मिर्ज़ा 'शौक' और 'कलक' मशहूर हैं। रामायण तथा श्रीमद्भगवद गीता के उर्दू में जितने अनुवाद हुए हैं, वे सब मसनवी के रूप में ही हैं। उर्दू के नये कवियों ने भी मसनवियाँ लिखी हैं। उनमें नयी सामाजिक और राजनीतिक चेतना मिलती है। इनमें इकबाल का 'साकीनामा' और सरदार जाफ़री का 'नयी दुनिया को सलाम' अधिक प्रसिद्ध हैं।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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