पृथ्वीनाथ मन्दिर

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पृथ्वीनाथ मन्दिर गोंडा, उत्तर प्रदेश के खरगपुर क्षेत्र में स्थित है। यह मन्दिर ज़िला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर जनपद के एक छोटे-से कस्बे खरगपुर बाज़ार के पश्चिम में है। यह मन्दिर वास्तुकला का सर्वोत्तम नमूना है। पृथ्वीनाथ मन्दिर में स्थापित 'शिवलाट' विश्व की सबसे ऊँची शिवलाट बताई जाती है, जिसे द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान भीम ने स्थापित किया था। पृथ्वीनाथ मन्दिर के दर्शन पाकर सभी भक्त आत्मिक शांति को पाते हैं। मन्दिर के शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट, कलेश दूर हो जाते हैं। भक्तों का अटूट विश्वास इस स्थान की महत्ता को दर्शाता है।

ज़िला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर जनपद के छोटे-से कस्बे खरगुपुर बाजार के पश्चिम में ऐतिहासिक व आस्था का केन्द्र पृथ्वीनाथ मन्दिर स्थित है। भगवान शिव के इस मन्दिर का अपना ही इतिहास है। कहा जाता है कि इसकी एक कथा महाभारत के वनपर्व में मिलती है। इस कथा के अनुसार कौरवों और पांडवों के बीच हुए जुएँ मे हारने के बाद युधिष्ठिर अपने भाईयों और द्रौपदी के साथ वनवास को चले गये। इसमें एक शर्त कौरवों की ओर से पांडवो के समक्ष रखी गयी थी। जिसमें पांडवों को एक वर्ष अज्ञातवास में व्यतीत करना था। इस एक वर्ष के मध्य पहचान लिये जाने उन्हें पुन: चौदह वर्षों का वनवास बिताना पड़ता। इसी अज्ञातवास को बिताने के लिये पांडव छिपते-छिपते कौशल राज्य के वन क्षेत्र पंचारण्य में आ पहुँचे। यहाँ पर पांडवों ने अपने अज्ञातवास में रहने की योजना बनायी तथा पाँचों पांडवों ने भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के लिये अलग-अलग स्थानों पर शिवलिंग स्थापित किये। कहा जाता है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने 'लोमनाथ' (झारखण्डी), 'पंचरत्रनाथ' (पचरन); भीम ने 'महादेव' (पृथ्वीनाथ) तथा नकुल-सहदेव ने आज जहाँ इतरती गाँव है, वहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी। इसके बाद पांडव नेपाल के विराट नगर चले गये, जिसका उल्लेख महाभारत मे मिलता है। इस स्थान के लिये महाभारत में अचिरावती नदी का उल्लेख मिलता है। विज्ञानियों के अनुसार अचिरावती का अपभ्रंश होते-होते 'रावती' हुआ, फिर बाद के समय में यह नाम 'राप्ती' हो गया। राप्ती नदी पृथ्वीनाथ मन्दिर के निकट ही है। यहाँ से कौशल राज्य की राजधानी भी अत्याधिक निकट है। इसी से यह प्रमाणित होता है कि पांडवों ने यहाँ पर अज्ञातवास किया था।[1]

समय बीतता रहा यह शिवलिंग मिट्टी मे दबा रहा जो धीरे-धीरे एक उंचे मिट्टी के टीले मे तब्दील हो गया ऐसा कहा जाता है कि यहॉ पृथ्वी नाथ सिंह अपने शासन काल में यहां पर खुदाई करायी। खुदाई मे यह शिवलिंग मिला। उन्होंने इस स्थान पर एक मन्दिर का निर्माण कराया। उन्ही के नाम पर इस मन्दिर को पृथ्वी नाथ मन्दिर कहा जाता है।

बतात चले आकार मे यह शिवलिंग काफी विशाल है। इस शिवलिंग का निर्माण स्फटिक पथ्तर से हुआ है। इस मन्दिर की प्रसिद्धि देश ही नही अपितु विदेश में भी है। विदेशी पर्यटकों का आवागमन यहां होता है लेकिन खरगपुर कस्बे की उपेक्षा के चलते यह मन्दिर विश्व पर्यटकों से दूर हो गया है। क्षेत्रीय लोगो ने इसे बेहद ही संजो कर रखा है। पर्यटक स्थलों के विकास के लिये लाखों रूपए व्यय भी किए जा रहे हैं। वहीं इस दौ़र मे खरगुपुर बेहद पिछ़ गया है। पृथ्वीनाथ मन्दिर पर्यटन मानचित्र से धूमिल होता चला जा रहा है।

विश्व के मानचित्र पर पर्यटन में अपनी जगह बना चुका गोंडा के खरगुपुर क्षेत्र में स्थित पृथ्वी नाथ मन्दिर उपेक्षाओ का दंश झेल रहा है। इसका एक बहुत बड़ा कारण है खरगपुर कस्बे का उपेक्षित होना। ऐतिहासिक धरोहर को संजोये इस मन्दिर का अपना ही विशेष महत्व है। इस इलाके की उपेक्षा के चलते देश, विदेश से पर्यटकों के आने की संख्या मे प्रतिदिन कमी होती चली जा रही है।


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